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कहानी : फ्रॉड ऑफिस

कहानी : फ्रॉड ऑफिस - Fraud Office
ठक-ठक- राजू देखो तो कोई आया है। 


 
राजू बड़ी तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ता है। दरवाजा खोलकर देखता है तो सामने पिताजी दिखाई देते हैं। पिताजी आज फूलमालाओं से ढंके हुए हैं। समझने का प्रयास करता है, तब तक पिताजी बोलते हैं, राजू की मां, देखो मैं सेवानिवृत्त होकर आ गया हूं। राजू की मां दौड़कर आती है और कहती है, अरे मुझे तो याद ही नहीं था कि आज 30 अप्रैल है। 
 
शिवकुमार शर्मा कोल इंडिया के बड़े बाबू एक बच्चे राजू और दो बच्चियों के पिता हैं। 60 वर्ष की आयु पूरी होकर आज सेवानिवृत्त हो गए हैं, किंतु जिम्मेदारियां जस की तस पड़ी हैं। हां, बड़ी बच्ची का विवाह अवश्य कर चुके हैं, लेकिन जमाई बेरोजगार है तो वह भी अपना अधिकतर समय शर्माजी के साथ ही बिताती है। छोटी बेटी गीता विवाह योग्य हो गई है, लेकिन विवाह योग्य लड़के मिलते कहां हैं? और रहा सबसे छोटा राजू, जिसने स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की है।
 
पिताजी, आपको पता चला कि कल मैंने रोजगार दफ्तर में अपना नाम लिखवा लिया। 
 
अरे, उससे क्या होगा? मैं तुमसे कई बार कह चुका कि प्रतियोगी परीक्षा में बैठो। 
 
अरे, आपको पता नहीं, मुख्यमंत्रीजी ने 500 रु. बेरोजगारी भत्ता देने का आश्वासन दिया है। चलो ठीक है, देखते हैं, कब तक मिलता है?
 
इसी बीच में राजू की मां कमरे में प्रवेश करती है। मैंने गर्म-गर्म कचोरियां बनाई हैं। 
 
नाश्ता करने के बाद शर्माजी ने कहा- भाई राजू की मां, कल से फंड लेने के लिए फंड दफ्तर जाना पड़ेगा। वैसे टाइम ऑफिस के बाबू मिश्राजी से मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि करीब 3 लाख के आसपास मुझे फंड मिलेगा। अगर एक महीने में मिल जाए तो गीता के विवाह का प्रस्ताव आगे बढ़ा सकता हूं।
 
दूसरे दिन सुबह वे नाश्ता कर फंड दफ्तर के सामने खड़े थे। एक आलीशान इमारत के सामने एक बोर्ड लगा था- 'समाज के हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए तत्पर एक संगठन फंड ऑफिस'। 
 
उन्हें लगा कि जैसे उन्हें उनकी मंजिल मिल गई है। वे आगे बढ़ गए। देखा तमाम लोग सीढ़ियों से नीचे उतर रहे हैं। उन्हीं में से एक वृद्ध वृद्धि से जब उन्होंने पूछा- दादा बताओ, काम करवाए खातिर किससे हमें मिलना चाहिए? बच्चा, वर्माजी से मिलो। बहुत पुराने बाबू हैं और ऑफिस के नेता भी हैं। 
 
दादा की सलाह मानकर वे ऑफिस में वर्माजी के पास आ गए। वर्माजी ने बड़े अपनत्व से पूछा- मान्यवर, आप कहां कार्य करते थे? 
 
जी, कोल ‍इंडिया में, धीरे से शर्माजी ने जवाब दिया। 
 
अच्‍छा-अच्‍छा, तो रिटायर होने के बाद फंड निकलवाने आए हैं?
 
जी हां, बड़ी किल्लत में हूं। अगर आप जल्दी से निकलवा दें तो बड़ी कृपा होगी। 
 
तब तक सामने खड़े व्यक्ति ने कहा, आप सही जगह पर आए हैं। श्रीमान वर्मा इस कार्यालय के सबसे वरिष्ठ लिपिक ही नहीं, बल्कि वरिष्ठ नेता भी हैं। 
 
अरे नहीं, भाई मैं क्या हूं, आप सबकी सेवा की इच्छा रखता हूं। करने वाला तो भगवान है, मैं तो निमित्त मात्र हूं।
 
जी हां, यह तो सच है, लेकिन अगर आप मदद कर देंगे तो बड़ा सहयोग होगा। 
 
जी, जरूर करूंगा। ऐसा कह वर्माजी ने एक फॉर्म निकालकर उन्हें दिया और कहा- इसे भरकर तुरंत ले आइए।
 
शर्माजी की प्रसन्नता की सीमा न थी। जल्दी-जल्दी सीढ़ियों से उतरकर कार्यालय से बाहर पहुंचे और रिक्शे पर सवार होकर घर पहुंच गए। घर का दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा खुलने के बाद राजू की मां सामने खड़ी थी। 
 
बड़े प्रसन्न नजर आ रहे हो, क्या कोई विशेष बात है? राजू की मां ने पूछा।
 
अरे बैठो भी, कुछ पानी-वानी पिलाओ तो बताता हूं।
 
पानी सामने लाकर राजू की मां ने कहा, हां अब बताओ।
 
वे बोले- अरे भाई राजू की मां, तुम तो जानती ही हो कि मैं पूरे जीवनभर कितना ईमानदार रहा। सारा दफ्तर जानता था कि शर्माजी किसी के एक पैसे के गुनाहगार जीवनपर्यंत नहीं रहे, तो ईश्वर ने भी मेरी सहायता के लिए एक समाजवादी वर्माजी को भेज दिया। उन्होंने मुझे मेरा पैसा जल्दी निकाल देने का वादा किया है। हां भाई, इस संसार में अच्‍छे व्यक्ति भी हैं, तभी तो दुनिया चल रही है।
 
बातचीत करते हुए शर्माजी ने बताया कि सोचता हूं ‍कि 20 हजार रुपए राजू को कम्प्यूटर के लिए दे दूं, आजकल बहुत जरूरी है।
 
जैसी आपकी इच्छा, श्रीमती शर्मा ने कहा- किसी तरह बात करते-करते शर्माजी की कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला और जब आंख खुली तो मुर्गे की कुकड़ू-कूं सुनाई दे रही थी।
 
शर्माजी स्नान-ध्यान कर पुन: फंड दफ्तर जाने को तैयार खड़े थे। वर्माजी के शब्द 'जी जरूर करूंगा' ने उनके पैरों की गति बढ़ा दी थी और थोड़ी देर में वे वर्माजी के सामने खड़े थे। 
 
आ गए शर्माजी, फॉर्म ले आए? जी भरकर ले आया हूं, आप देख लीजिए।
 
सिंह साहब इनका फॉर्म देख लीजिए और क्या प्रपत्र इसके साथ लगाना है, यह शर्माजी को बता दीजिए।
 
'सब कुछ ठीक वर्माजी', सिंह साहब ने ऐसा कह फॉर्म वर्माजी के हाथों में दे दिया।
 
वर्माजी ने कहा- अच्छा शर्माजी दो दिन बाद मिलिए, तो कुछ बात करेंगे।
 
शर्माजी घर को चले गए। दो दिन कैसे बीत गए, शर्माजी को पता ही नहीं चला और रात को फोन की घंटी बजी। 
 
अरे वर्माजी, आप धन्य भाग, जो आपने फोन किया। हमारा कार्य हो रहा है न? 
 
दूरभाष से दूसरी तरफ से जो बात कही गई, उससे शर्माजी के हाथ कांप उठे। उन्होंने मुश्किल से कहा- 'जी ठीक है' और फोन रख दिया।
 
दूसरे दिन सुबह नहा-धोकर शर्माजी फंड ऑफिस जाने को तैयार थे और उन्होंने तेज आवाज में कहा- राजू की मां, कम्प्यूटर के लिए जो 10 हजार रुपए रखे हैं, उसे निकाल लाओ। 
 
अरे, तुम तो कह रहे थे कि इससे राजू को कम्प्यूटर खरीद तकनीकी रूप से शिक्षित बनाओगे?
 
अरे नहीं, अभी इस देश में लाखों पढ़े-लिखे अशिक्षित बैठे हैं, यह उनको शिक्षित करेगा, ऐसा कह वे ऑफिस की तरफ चले गए।
 
एक ऐसा व्यक्ति जो जीवनपर्यंत मूल्यों के लिए लड़ता रहा, वह मूल्यों की शवयात्रा को निकलते देख रहा था। 
 
सामने वर्माजी मुस्कुराते खड़े थे। 
 
वाह-वाह आ गए शर्माजी। आपको पता है समाजवाद क्या है। लाभ में प्रत्येक व्यक्ति को उसकी हैसियत के अनुसार हिस्सेदारी आप जो करेंगे, उससे अफसर से लेकर नौकर तक 13 व्यक्ति उपकृत होंगे।
 
जी, थोड़ा जल्दी कर दीजिए, ऐसा कह शर्माजी ने लिफाफा वर्माजी के हाथों में पकड़ा दिया।
 
वर्माजी ने शर्माजी को भविष्यनिधि का चेक देने का आदेश दिया जिसे लेकर शर्माजी बिना किसी को देखे कार्यालय की सीढ़ियों से नीचे उतर आए। 
 
शाम का धुंधलका छा गया था। वे बड़े प्रयास से ऑफिस के सामने लगे बोर्ड को पढ़ने का प्रयास कर रहे थे और अंत में धीरे से बुदबुदाए- 'फ्रॉड ऑफिस'। 
 
(इस कहानी के सारे पात्र काल्पनिक हैं। इसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।)