• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. साहित्य
  4. »
  5. कथा-सागर
Written By WD

कर्म और धर्म

लघुकथा

कर्म और धर्म -
अंजुल कंसल
WDWD
समुद्र की इठलाती मचलती लहरें वेग से आतीं और तट की चट्‍टानों से टकराकर लौट जातीं।

हर मिनट दो मिनट बाद फिर यही क्रम जारी रहता पड़वा से पूनम तक यह लहरें और जोर से हिलोरें मार कर वापिस चली जातीं।

एक दिन लहर इतराकर चट्‍टान से बोली - मैं अपनी आदत से मजबूर हूँ। वेग से उफनती आती हूँ, तुम्हें भिगोती हूँ फिर दूर चली जाती हूँ लेकिन तुम हो कि हिलते ही नहीं, जस के तस डटे रहते हो।

चट्‍टान ने कहा - मैं तुम्हारे वेग को सहन कर भी अटल हूँ और तुम हो कि मचलती रहती हो फिर भी नहीं थकती।

लहर बोली मचलकर - टकराना मेरा कर्म है ।

चट्‍टान बोली गर्व से - अडिग बने रहना मेरा धर्म है।

साभार : लेखिका 08