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Last Updated : सोमवार, 26 फ़रवरी 2018 (16:56 IST)

मुझे अपने किरदारों के बेडरूम में झांकना पसंद नहीं है : मालती जोशी

मुझे अपने किरदारों के बेडरूम में झांकना पसंद नहीं है : मालती जोशी - Indian literature Malti Joshi
- हर्षवर्धन प्रकाश

इंदौर। इन दिनों भारतीय समाज के साथ कला-साहित्य जगत में भी स्त्री देह की आजादी और यौन संबंधों के खुलेपन की बहस जोरों पर है, लेकिन 'पद्मश्री' सम्मान के लिए चुनी गई मशहूर हिन्दी कहानीकार मालती जोशी मानती हैं कि 'उग्र नारीवाद' का झंडा उठाए बगैर भी पूरी शिद्दत से आधी आबादी का पक्ष रखा जा सकता है। मालती जोशी ने कहा कि हिन्दी साहित्य में स्त्री देह का विमर्श और बोल्डनेस (बिंदासपन) बढ़ गई है, लेकिन मैंने हमेशा पारिवारिक कहानियां लिखी हैं।

मेरी कहानियों में आपको कहीं भी बेडरूम सीन नहीं मिलेगा। 83 वर्षीय लेखिका ने कहा कि जितना परहेज मैं अपने बेटे-बहू के कमरे में जाने में करती हूं, उतना ही परहेज अपने पात्रों के बेडरूम में जाने में करती हूं। उन्होंने कहा कि मैं अपनी कहानियों में स्त्री-पुरुष के अंतरंग ​संबंधों का विस्तृत ब्योरा नहीं देती। कुछ बातें हमें पाठकों की कल्पना और समझ पर भी छोड़ देनी चाहिए। 

इस सिलसिले में वह अपनी एक रचना के अंश के हवाले से मिसाल देती हैं, 'कमरा बंद हुआ। ढाई घंटे बाद कमरा खुला। वह लड़की अब शरीर और मन से एकदम अलग थी।' समकालीन साहित्य में उग्र नारीवाद के उभार पर मालती ने कहा कि नारीवाद के नाम पर हर बार नारेबाजी करनी जरूरी नहीं है। विनम्रता के साथ भी स्त्रियों का पक्ष अच्छी तरह रखा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि कई लेखिकाओं की रचनाओं में अंतरंग दृश्यों का सजीव ब्योरा पढ़कर मैं दंग रह गई। मैं सोचने लगी कि वे इस तरह लिख कैसे सकती हैं। आत्मकथाओं में मिर्च-मसाला डालने के लिए भी अंतरंग संबंधों का विस्तृत विवरण दिया जाता किया जाता है। मुझे तो यह सब अजीब लगता है। मालती मानती हैं कि उनके लेखन पर उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का स्वाभाविक प्रभाव है। 

उन्होंने बताया कि मैं एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी। खासकर शादी से पहले बाहरी दुनिया से मेरा संपर्क बहुत कम था। शादी के बाद भी मैं गृहिणी की भूमिका में ही रही, लेकिन मेरे पति और परिवार ने मुझे लेखन के लिये हमेशा प्रोत्साहित किया। वे बताती हैं कि किस तरह उन्होंने अपने परिवार में सदियों पुरानी परम्परा बदलने के लिये 'विनम्र प्रतिरोध' किया। 

उन्होंने बताया कि पारंपरिक मराठी परिवारों में ससुराल में नवविवाहिता का नाम आमतौर पर बदल दिया जाता है। नाम बदलने की बाकायदा एक रस्म होती है। शादी के बाद मेरे पति ने मुझसे पूछा कि मुझे कौन-सा नया नाम पसंद है। इस पर मैंने उन्हें धीरे से कहा कि मेरे मौजूदा नाम में भला क्या खराबी है।  मालती ने कहा कि आखिरकार शादी के बाद मेरा नाम नहीं बदला गया। मैंने अपनी बहुओं का नाम भी नहीं बदलने दिया। नाम बदलने से स्त्री की पूरी पहचान बदल जाती है।
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