• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Poetry, politics, Dr. Ramkrishna Singhi

कविता : राजनीति के रंगमंच से...

कविता : राजनीति के रंगमंच से... - Poetry, politics, Dr. Ramkrishna Singhi
यू.पी. में हुए बेआबरू,
वैसे ही बेइज्जत बिहार में। 
गुजरात में डावांडोल,  
अवमूल्यित दिल्ली के सियासी बाजार में।।  
'सल्तनत' गई फिर भी अब तक है 
'सुल्तान' सी हेकड़ व्यवहार में। ( जयराम रमेश )
बेचारी उस बूढ़ी पार्टी की नाव का 
कोई न खेवनहार मझधार  में ।।1।। 
 
दिग्विजयसिंह से धुरंधर,
सिंधिया, कमलनाथ से समर्थ अनेक। 
मनमोहन, गुलामनबी, एन्थोनी से 
माहिर योद्धा एक से एक ।। 
परिवारवाद के घुप्प अँधेरे में सब,
बैठे हैं आँखे मीचे। 
यथार्थ की धूप में बाहर आने की 
कोई तो उन्हें सलाह दे नेक ।।2।। 
 
अपने भ्रम में दृढ़, आत्ममुग्ध (बिहार में)
वे बैठे रहे आँखे मीचे से। 
जब तक उनको समझ पड़ी,
दरी खिंच गई नीचे से।। 
ली न सीख यू. पी. से उन्होंने,
माया-अखिलेश की दुर्गत से,
शायद ही कोई बच पाएगा अब 
मोदी-शाह पर कीचड़ उलीचे से ।।3।। 
 
और अन्त में -
गुजरात का राज्य सभा चुनाव,
लिख गया काला इतिहास। 
दोनों पार्टियों ने किया,
जनतन्त्र का सत्यानाश ।।1।। 
 
विधायकों का कैदीकरण ,
वोटर बने (चौसर की) पासे/गोट। 
दोनों तरफ की हर चाल थी,
जनतन्त्र की अस्मिता पर चोंट ।।2।। 
 
न बची हमारी नज़रों में, 
किसी के भी चेहरे की आब। 
सारे घटना क्रम ने किया,
मुँह का स्वाद खराब ।।3।।