हिन्दी कविता : मिलावटखोरी
अक्षय आजाद भंडारी
अपने देश में मिलावट खोर पल रहे हैं
क्यों अपने ही अपने को छल रहे हैं
न जाने देखकर भी नजरें खामोश हो जाती है
दो पल की हंसी खुशी के लिए
सेहत को ताक पर रख जाते हैं
फिर भी अंदर से क्रोध जागता है
लेकिन क्या करें, अब झुठी हंसी खुशी में
दो पल का ही नुकसान है
बस जी करता है सुनो सरकार
अब यही फरमान है
यह मातृभूमि पवित्र है
यहां पाप मत बढ़ाओ
वरना एक दिन सब
सर्वनाश हो जाएगा
मिली दुनिया फिर नहीं मिलेगी
अब नहीं समझे कब सरकार जगेगी मालूम है
उन्हें पर क्यों गूंगी बहरी से लगती है
जी करता है अब सेहत के दुश्मनों को
हर चौराहे पर फांसी पर लटका दूं
इस देश में पल रहे मिलावटखोरों को
ऐसे ही सबक सिखला दूं।