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हिन्दी कविता : मैं एक मजदूर हूं...

poem on mazdoor
मैं एक मजदूर हूं
भगवान की आंखों से मैं दूर हूं


 
छत खुला आकाश है
हो रहा वज्रपात है
फिर भी नित दिन मैं
गाता राम धुन हूं
गुरु हथौड़ा हाथ में
कर रहा प्रहार है
सामने पड़ा हुआ
बच्चा कराह रहा है
फिर भी अपने में मगन
कर्म में तल्लीन हूं
मैं एक मजदूर हूं
भगवान की आंखों से मैं दूर हूं।
 
आत्मसंतोष को मैंने
जीवन का लक्ष्य बनाया
चिथड़े-फटे कपड़ों में
सूट पहनने का सुख पाया
मानवता जीवन को
सुख-दुख का संगीत है
मैं एक मजदूर हूं
भगवान की आंखों से मैं दूर हूं।