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हिन्दी क‍विता : एक अभागा देश...

हिन्दी क‍विता : एक अभागा देश... - poem on democracy
एक देश ऐसा है, जो अपने देश में ही गुलाम है।
आर्मी के आदेश पर जहां की सुबह और शाम है।।
प्रशासन भ्रष्ट, नेता सब दोगले और नाकारा,
अपढ़, धर्मांध, गरीब, अज्ञान, जहां का अवाम है।।1।।
 
'भारत विरोध' है, जहां की राजनीति का ऑक्सीजन,
अर्थव्यवस्था गिरकर चली गई है पाताल में।
कर्जों के बोझ से निरंतर दिवालिया होता राष्ट्र,
बहुत बड़ी जमीन गई धोखे से चीनी ड्रेगन के गाल में।।2।। 
 
पुराने सब प्रेसीडेंट/पीएम जेल में या जमानत पर,
हाय! यह कैसा नकली प्रजातंत्र है।
भारत जैसे सफल महाप्रजातंत्र से सटा हुआ,
कैसा यह अभागा, जर्जर, अपनों से ही गुलाम राष्ट्र,
केवल ऊपर से कहने/दिखने को ही स्वतंत्र है।।3।।

 
बदलावों के लिए छटपटाते इमरान खान की सांसें,
क़ैद हैं महाअपराधी आतंकियों के पिंजरों में।
अपने पाले हुए अज़गर ही डस रहे हैं उस अभागे राष्ट्र को,
जबकि सारे पड़ोसी देश तैर रहे हैं निरंतर विकास की लहरों में।।4।।
 
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