मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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कविता : मोहे हर जनम बिटिया ही कीजो

कविता : मोहे हर जनम बिटिया ही कीजो। Poem on Daughter - Poem on Daughter
मोहे हर जनम बिटिया ही कीजो,
वही मेरे बाबुल का आंगन दीजो,
वही नीम छैयां सा कानन दीजो,
भीगता था जहां प्यारा-सा बचपन,
वही मेरे सपनों का सावन दीजो!!
 
वही मां ममता की मूरत दीजो,
वही अम्मा की भोली सूरत दीजो, 
छुपा लेती थी जो मुझे पलकों में, 
वही मां के चरणों का तीरथ दीजो!!
 
वही बहनों की अठखेलियां दीजो,
वही मेरी सखी सहेलियां दीजो,
बातों की राजेदारी होती थी जिनसे,
वही शक्ल बहना की हूबहू दीजो!!
 
वही भइया की मुस्कान दीजो,
वही मेरे पीहर का मान दीजो,
डोली में बैठा के जो करे विदा,
उस भैया के कंधों में जान दीजो,
 
वही मेरा छोटा-सा मकान दीजो,
वही जुगाड़पंती का सामान दीजो, 
छोटी-छोटी बातें छोटी-सी खुशियां 
वही मेरे शहर का आबोदाना दीजो,
 
वही मेरे साजन का द्वार दीजो,
वही सारे सोलह श्रृंगार दीजो, 
खुद के वजूद पर इतरा जाऊं,
वही गलबहियों के हार दीजो।
 
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