• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Madhu Geeti
Written By

नियति की नाटकी प्रवृति !

हिन्दी कविता
गोपाल बघेल 'मधु'
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा
(मधुगीति १७०६२४ ब)
 
नियति की नाटकी प्रवृति, निवृत्ति से ही तो आई है, 
प्रकृति वह ही बनाई है, प्रगति जग वही लाई है !
 
नियंता कहां कुछ करता, संतुलन मात्र वह करता,
ज्योति आत्मा किसी देता, कम किए लौ कोई चलता !
न्याय करना उसे पड़ता, उचित संयत न जब होता, 
समय बदलाव को देता, स्वल्प आघात तब करता !
 
स्वचालित संतुलित संस्थित, क्रियान्वित सजग शुभ प्रहरित, 
सृष्टि संयम नियम रहती, नृत्य हर ताल करवाती !
प्रवृति दे ज्ञान करवाती, क्रियति कर मर्म सुधवाती,  
भेद कर्त्ता का मिटवाती, प्रभु से 'मधु' को मिलवाती !
ये भी पढ़ें
हिन्दी साहित्य : कविता जलाई गई