नई कविता - किताबी ज्ञान भी
देवेंन्द्र सोनी
कहते हैं -
कहीं से भी मिले ज्ञान
आत्मसात करना चाहिए उसे
पर साथ ही इसके
जरूरी है किताबी ज्ञान भी
नींव होता है यह
जीवन की आधारशिला का
पैठ कर ही इसमें हुआ है, हम को
धर्म-कर्म और अध्यात्म का भान
हुए हैं इसी से अन्वेषण नित नए
जिनसे निकलती है वह राह जो
करती है हमारे लिए -
सुख-सुविधा, स्वास्थ्य, शिक्षा और
आधुनिकता का मार्ग प्रशस्त ।
किताबी ज्ञान से ही निकला है
मोबाइल, कम्प्यूटर और लैपटाप
बदल कर रख दी है जिसने
दुनिया हमारी
किताबों से ही सीखा है हमने
जोड़-घटाना और गुणा -भाग
जो तय करता है
जिंदगी का फलसफा हमारी
किताबी ज्ञान महज ज्ञान या
किवदंती नहीं है
यह करता है अच्छे और बुरे
कर्मों का हमारे प्रतिपल हिसाब भी
जरूरी है
अनुभव के साथ लें और दें हम
किताबी ज्ञान भी
जो रखे जिंदा हमारी संस्कृति
और इतिहास को
नई पीढ़ी को भटकने से बचाने के लिए
दें वह सब किताबी ज्ञान
जिसकी जरूरत है आज उन्हें सबसे ज्यादा
और यह मिलेगा केवल
किताबों से
जो हमारी धरोहर हैं