हिन्दी कविता : फिर भी रहना है सावधान....
डॉ. रामकृष्ण सिंगी
बेशक, सिर काटने वाले हाथों को हमने तोड़ दिया है।
आतंकी दांत दिखाने वाले जबड़ों को भी मरोड़ दिया है।।
बिन उकसाए बम बरसाने वाले छुपे बंकरी ठिकानों को,
आतंकियों के लॉन्च-पेडों को एकबारगी फोड़ दिया है।।1।।
फिर भी इस ऑक्टोपस दुश्मन के जहरीले पंजे,
रह-रहकर चुभ जाएंगे।
आतंकी रावणी दानव के सिर
फिर-फिर कर उग आएंगे।
इसलिए निरंतर चौकस रहकर
निपटना होगा इस नासूर से।
उसका खतरा तो बना रहना है
सतत पास से, दूर से।।2।।
जरूरी है कि अथक अभियान में
सारा देश एक संकल्प, एक रूह हो।
और देशद्रोही कथित बुद्धिवादियों का
बहिष्कार हो, काला मुंह हो।।
पत्थर फेंकने वाले हाथों को
यों ही जीप के आगे बांधा जाए।
अलगाववादियों के बाहरी फंडिंग पर
कारगर शिकंजा कसा जाए।।3।।