गुरुवार, 10 जुलाई 2025
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कविता : याद फिजा में रहती है...

Hindi Kavita
- कैलाश प्रसाद यादव 'सनातन'


 
आती-जाती सांसें मुझसे, चुपके से कुछ कहती हैं,
आनी-जानी काया, लेकिन याद फिजा में रहती है...
 
अंग-अंग में घाव लगे हों, पोर-पोर भी घायल हो,
मन भारी हो धरा के जितना, फिर भी सब कुछ सहती हैं,
आनी-जानी काया, लेकिन याद फिजा में रहती हैं...
 
इन नयनों से जो कुछ दिखता, वो तो केवल नश्वर है,
भूख, प्यास, एहसास शाश्वत, इन्हीं की नदियां बहती हैं,
आनी-जानी काया, लेकिन याद फिजा में रहती हैं...
 
दूर कहीं से बिन बोले ही, बांह पसारे आती है,
गोद बिठाकर सबको इक दिन, दूर कहीं ले जाती है,
 
सदियों से वो लगी हुई है, सब कुछ करके देख लिया,
नींद भी संग में ले गई अपने, सपने यहीं पे छूट गए,
 
आशा-तृष्णा बचीं यहीं पर, आस-पास ही रहती हैं,
आनी-जानी काया, लेकिन याद फिजा में रहती हैं...
 
आती-जाती लहरें तट पर, ठहर-ठहर कुछ कहती हैं,
संग चलो पाताल दिखा दूं, आसमान से कहती हैं, 
 
मंद-मंद पवन के झोंके, कलियों से कुछ कहते हैं,
फूलों के संग-संग भंवरे भी, घाव सदा ही सहते हैं,
 
पत्थर दिल इंसानों में भी, सपने अक्सर नर्म हुए,
दिल में ठंडा बर्फ है फिर भी, आंसू अक्सर गर्म हुए,
 
ऋतुएं तो आनी-जानी हैं, यहां तो खुशबू बहती हैं,
आनी-जानी काया, लेकिन याद फिजा में रहती हैं...।