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गुरुवार, 18 अगस्त 2022
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काश, देख लेती तुम
काश, देख लेती तुम
ND
ND
शबनम की बूँद नही
ं,
नन्ही एक रेत हूँ
लहलहाती बगिया नही
ं,
गरीब एक खेत हूँ
कभी खत्म ना हो, ऐसा लंबा पतझड़ हूँ
शब्दों का साथ मिला नहीं,ऐसा एक अनपढ़ हूँ
यादों के रेतीले तुफान में, खड़ा हूँ अकेला
तुम
आकर ले जाओ, यादों का यह मेला
फूलों के रंग से की थी मैंने मोहब्बत
काँटों से भी निभ ना सकी मेरी चाहत
रोज एक कश्ती, कहती है मुझसे
बहा ले जाओ, खड़ी हूँ मै
ं
कब से
आज अँगुलियों से,दर्द मेरा रिसता है
इन लफ्जों में, नाम तुम्हारा चीखता है
।
जाते हुए एक बार, का
श,
देख लेती तुम
WD|
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अनुराग वैद्
य
कितना कितना रोया हूँ, का
श,
देख लेती तुम।
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