दामिनी हूं मैं
फेसबुक से मलिक राजकुमार
हां दामिनी हूं मैंअपनी चमक और कड़क के साथ पोत दी है कालिख उन चेहरों पर जो कहते नहीं थकतेहोने देना था बलात्कारऔर लेना था मज़ामूर्खो वो जिस्म नहीं अधिकार की लड़ाई थीआज़ादी की मांग थीकैसे मार देती मैं अपनी ही आत्मा को क्यों कोई मेरी आज़ादी काक़त्ल करे सरे आम यूं हीनहीं लुंगी अन्न का दाना भीजब तक फांसी नहीं मिलती सारे अपराधियों कोकटवा दी अपनी आंतें नहीं पीउंगी पानी की बूँद तक कंदील मार्च वालों पानी की कैनन वालों लाठियों ,अश्रु गैस वालोंबंद रहो अपने कमरों में मीडिया बढाएं अपनी टीआरपीसरकार बनाएं अपने कानूनन्यायाधीश पढ़ें धाराएं मैंने सुन्न कर लिया है दिमाग कोरोक ली हैं दिल की धडकनें और लिख दी है सजा हैंग देम फ्रॉम नक् टिल डेथ और कर दिए हस्ताक्षर अपनी मौत से जा रही हूंकि मुझे देख करनाक भौं न सिकोड़े हेय न समझे न शर्मिंदा हों मेरे अपने हीठहराए अपराधी मुझे हीउस अपराध के लिए जो मैंने किया ही नहींजो दोस्त हैंभाई या चाचा मामा हैं मनाएं सोग जाते साल की लाश परन करें स्वागत नए वर्ष का खड़े हो मेरे मां बाप के साथ कि दामिनी कुछ हमारी भी लगती है....