नई सदी के रंग में ढलकर हम याराना भूल गए सबने ढूँढे अपने रस्ते साथ निभाना भूल गए। शाम ढले इक रोशन चेहरा क्या देखा इन आँखों ने दिल में जागीं नई उमंगें दर्द पुराना भूल गए। ईद, दशहरा, दीवाली का रंग है फीका-फीका सा त्योहारों में इक दूजे को गले लगाना भूल गए। वो भी कैसे दीवाने थे खून से चिट्ठी लिखते थे आज के आशिक राहे-वफा में जान लुटाना भूल गए।