माओत्से-तुंग : चीन का लाल सितारा
मील के पत्थर- 4
मानव-सभ्यता के विकास के समय से ही नेतृत्व करने वाले 'नायक' की भूमिका प्रमुख रही है। मनुष्य के सामुदायिक और सामाजिक जीवन को उसी के समूह में से उभरे किसी व्यक्ति ने दिशा-निर्देशित और संचालित किया है। समस्त समुदाय और उस सभ्यता का विकास नेतृत्व करने वाले व्यक्ति की सोच, समझ, व्यक्तित्व और कृतित्व पर ही निर्भर रहा है। धरती पर रेखाएं खिंची और कबीले के सरदार राष्ट्रनायकों में परिवर्तित हुए। 100 साल की लंबी अवधि में पसरी बीसवीं सदी में इन राष्ट्रनायकों ने प्रमुख किरदार निभाया। एक तरह से तमाम सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों की बागडोर ही इन महारथियों के हाथ में रही। राजतंत्र, उपनिवेशवाद और लोकतंत्र के संधिकाल वाली इस सदी में अपने-अपने देश का परचम थामे इन राजनेताओं ने विश्व इतिहास की इबारत अपने हाथों से लिखी। इस श्रृंखला में वर्णित राजनेताओं की खासियत यह है कि उन्होंने अपने देश को एक राष्ट्र के रूप में विश्व के मानचित्र पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कड़ी में पेश है माओत्से-तुंग- बीसवीं सदी के आरंभ में भूख, बेकारी, भ्रष्टाचार और अव्यवस्था से बिखराव के कगार पर खड़े चीन और बीसवीं सदी के अंत में साम्यवाद का लाल परचम थामे, विकसित, एकीकृत और आत्मनिर्भर गणराज्य के रूप में मौजूद चीन के बीच में यदि कोई एक सफल व्यक्ति खड़ा रहा तो वह था माओत्से-तुंग। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में 26 दिसंबर 1893 को जब एक किसान परिवार में माओत्से-तुंग का जन्म हुआ, तब चीन पर 2 हजार वर्षों से भी अधिक पुराने सामंती राजतंत्र का शासन था। खेती का काम देखने के अलावा माओ को अपने स्कूल जाने के लिए रोज 20 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था।
शायद इसी पैदल यात्रा ने माओ को क्विंग राजतंत्र के अत्याचारों और बिखराव के कगार पर खड़े चीन की वास्तविकताओं से परिचित करवाया। इसी पैदल यात्रा में शायद आगे चलकर ऐतिहासिक 'लांग वॉक टू फ्रीडम' (स्वतंत्रता के लिए लंबी यात्रा) का स्वरूप ले लिया। 1911 में चीन के महान क्रांतिकारी अग्रदूत डॉ. सन यान सन की रहनुमाई में हुई क्रांति से चीन में राजतंत्र का तख्ता पलट गया। इसका माओ के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस तख्तापलट के बावजूद एक देश के रूप में चीन की दिशाहीनता ने माओ को व्यथित कर दिया।