30 नवंबर : ऑस्कर वाइल्ड स्मरण
ऑस्कर वाइल्ड एक ऐसी शख्सियत का नाम है, जिसने सारी दुनिया में अपने अदभुत लेखन से हलचल मचा दी थी। शेक्सपीयर के उपरांत ऑस्कर वाइल्ड सर्वाधिक चर्चित लेख माने गए। ना सिर्फ उपन्यासकार, कवि और नाटककार, बल्कि वे एक संवेदनशील मानव थे। उनके लेखन में जीवन की गहरी अनुभूतियां मिलती हैं, रिश्तों के रहस्य दिखाई देते हैं, प्रेम के पवित्र सौन्दर्य की खूबसूरत व्याख्या है, मानवीय धड़कनों की मर्मस्पर्शी कहानी है।
उनके जीवन का मूल्यांकन एक व्यापक फैलाव से गुजरकर ही किया जा सकता है। अपने धूपछाँही जीवन में उथल-पुथल और संघर्ष को समेटे 'ऑस्कर फिंगाल ओं फ्लाहर्टी विल्स वाइल्ड' मात्र 46 वर्ष पूरे कर अनंत आकाश में विलीन हो गए।
ऑस्कर वाइल्ड 'कीरो' के समकालीन थे। एक बार भविष्यवक्ता कीरो किसी संभ्रांत महिला के यहां भोज पर आमंत्रित थे। काफी संख्या में प्रतिष्ठित लोग मौजूद थे। कीरो उपस्थित हों, और भविष्य न पूछा जाए, भला यह कैसे संभव होता। एक दिलचस्प अंदाज में भविष्य दर्शन का कार्यक्रम आरंभ हुआ। एक लाल मखमली पर्दा लगाया गया।
उसके पीछे से कई हाथ पेश किए गए। यह सब इसलिए ताकि कीरो को पता न चल सके कि कौन सा हाथ किसका है? दो सुस्पष्ट, सुंदर हाथ उनके सामने आए। उन हाथों को कीरो देखकर हैरान रह गए। दोनों में बड़ा अंतर था। जहां बाएं हाथ की रेखाएं कह रही थीं कि व्यक्ति असाधारण बुद्धि और अपार ख्याति का मालिक है।
वहीं दायां हाथ..? कीरो ने कहा 'दायां हाथ ऐसे शख्स का है जो अपने को स्वयं देश निकाला देगा और किसी अनजान जगह एकाकी और मित्रविहीन मरेगा। कीरो ने यह भी कहा कि 41 से 42वें वर्ष के बीच यह निष्कासन होगा और उसके कुछ वर्षों बाद मृत्यु हो जाएगी। यह दोनों हाथ लंदन के सर्वाधिक चर्चित व्यक्ति ऑस्कर वाइल्ड के थे। संयोग की बात कि उसी रात एक महान नाटक 'ए वुमन ऑफ नो इम्पोर्टेंस' मंचित किया गया। उसके रचयिता भी और कोई नहीं ऑस्कर वाइल्ड ही थे।
बहरहाल, 15 अक्टूबर 1854 को ऑस्कर वाइल्ड जन्मे थे। कीरो की भविष्यवाणी पर दृष्टिपात करें तो 1895 में ऑस्कर वाइल्ड ने समाज के नैतिक नियमों का उल्लंघन कर दिया। फलस्वरूप समाज में उनकी अब तक अर्जित प्रतिष्ठा, मान-सम्मान और सारी उपलब्धियां ध्वस्त हो गईं। यहां तक कि उन्हें दो वर्ष का कठोर कारावास भी भुगतना पड़ा। जब ऑस्कर वाइल्ड ने अपने सौभाग्य के चमकते सितारे को डूबते हुए और अपनी कीर्ति पताका को झुकते हुए देखा तो उनके धैर्य ने जवाब दे दिया।
अब वे अपने उसी गौरव और प्रभुता के साथ समाज के बीच खड़े नहीं हो सकते थे। हताशा की हालत में उन्होंने स्वयं को देश निकाला दे दिया। वे पेरिस चले गए और अकेले गुमनामी की जिंदगी गुजारने लगे। कुछ वर्षों बाद 30 नवंबर 1900 को पेरिस में ही उनकी मृत्यु हो गई। उस समय उनके पास कोई मित्र नहीं था। यदि कुछ था तो सिर्फ सघन अकेलापन और पिछले सम्मानित जीवन की स्मृतियों के बचे टुकड़े।
ऑस्कर वाइल्ड का पूरा नाम बहुत लंबा था, लेकिन वे सारी दुनिया में केवल ऑस्कर वाइल्ड के नाम से ही जाने गए। उनके पिता सर्जन थे और मां कवयित्री। कविता के संस्कार उन्हें अपनी मां से ही मिले थे।