छायावाद के एक प्रमुख स्तंभ थे पंत
पुण्यतिथि 28 दिसंबर पर विशेष
छायावाद दौर के तीन प्रमुख स्तंभों में से एक सुमित्रानंदन पंत की रचनाओं में मधुर एवं कोमल शब्द और प्रकृति का सौन्दर्य प्रमुखता से उभर कर आता है तथा उनके गीत आज भी काव्य प्रेमियों को आकर्षित करते हैं।आलोचकों के अनुसार प्रसाद निराला और पंत छायावाद के तीन प्रमुख स्तंभ थे लेकिन प्रकृति का जितना विषद वर्णन पंत ने किया है उतना उनके समकालीन कवियों में नहीं मिलता। निराला की तरह पंत ने भी छंदों के साथ तमाम प्रयोग किये।साहित्य आलोचक एवं दिल्ली के जानकी देवी महाविद्यालय की पूर्व प्रधानाध्यापिक हेम भटनागर ने बताया कि पंत छायावादी धारा के महत्वपूर्ण कवियों में एक थे। उनकी कविताओं में तत्सम शब्दों की भरमार होने के बावजूद गेयता काफी होती थी। उनके गीतों में अभिव्यक्ति का गुण इतना जबरदस्त होता है कि बच्चे तक इसका अर्थ आसानी से समझ सकते हैं। उन्होंने पंत से जुडे़ अपने संस्मरणों को याद करते हुए वह इलाहाबाद में बेली रोड पर अपने किसी रिश्तेदार के साथ रहते थे। अविवाहित पंत के सुंदर और लंबे केश थे। वह कवि सम्मेलनों में जाते थे और बेहद धीमे स्वर में कविता पाठ करते थे। हेम भटनागर ने कहा कि पंत की कविताओं में प्रकृति का सौन्दर्य विभिन्न स्वरूपों में आता है। पहाड़ की सर्द हवाओं की तरह उनकी कविताओं में सूक्ष्म अनुभूति देखने को मिलती है। वह शब्दों के साथ प्रयोग करते हैं और अपने अधिकतर बिंब प्रकृति में ही खोजते हैं।
कुमाऊँ पर्वतीय क्षेत्र के प्राकृतिक रूप से बेहद सुंदर गाँव कौसानी में 20 मई 1900 को जन्मे पंत का मूल नाम गुँसाई दत्त था। उनकी आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई। किशोरावस्था में वह अपने बड़े भाई के पास काशी आ गये और वहाँ के क्विंस कालेज में पढ़े। बाद में उन्होंने अपना नाम बदल कर सुमित्रानंदन पंत कर लिया।आजादी के आंदोलन में पंत ने महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आंदोलन के कारण शिक्षा छोड़ दी। उनकी रचनाओं में गाँधी के दर्शन का प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।महात्मा गाँधी के अलावा पंत को जिस एक अन्य हस्ती ने प्रभावित किया वह थे महर्षि अरविन्द। महान क्रांतिकारी विचारक कवि और आध्यात्मिक नेता अरविन्द से पंत को प्रकृति के बारे में एक नयी दृष्टि मिली। अरविन्द के दर्शन से प्रभावित होने से पहले तक पंत प्रकृति से बेहद प्रभावित रहते थे और वह प्रकृति के सुकुमार पक्ष को ही चित्रित करने के पक्ष में रहते थे।लेकिन अरविंद के दर्शन को पढ़कर वह समझे कि प्रकृति का विनाशक पक्ष भी हो सकता है तथा प्रकृति कभी ईश्वर का स्वरूप नहीं ले सकती। कुछ आलोचकों का मानना है कि पंत की कविता में गेयता और छंद हावी होने के कारण काव्य पक्ष कई बार कमजोर पड़ने लगता है। हालाँकि अंतिम दौर में पंत ने अपनी रचनाओं में कविता की नयी प्रवृतियों को अपना लिया था।पंत की प्रमुख कृतियों में चिदंबरा, वीणा, पल्लव, गुँजन, ग्राम्या, युगांत, युगवाणी, लोकायतन तथा कला और बूढ़ा चाँद शामिल हैं। उन्हें चिदँबरा के लिए 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। कला और बूढ़ा चाँद के लिए उन्हें 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी प्रकार लोकायतन के लिए उन्हें नेहरू शांति पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था। छायावाद के इस प्रमुख स्तंभ का 28 दिसंबर 1977 में निधन हुआ।