'द लास्ट मुगल' : भारतीयों के लिए एक इतिहास
लंदन। ब्रिटिश लेखक विलियम डैलरिम्पल की पुस्तक 'द लास्ट मुगल' इन दिनों चर्चा में है। इस पुस्तक ने भारत में इतिहास लेखन के बारे में भी खासी बहस छेड़ दी है। डैलरिम्पल कहते हैं कि भारतीय इतिहासकार ज्यादातर अपने बीच के चंद लोगों के लिए ही इतिहास लिखते रहे हैं, न कि आम लोगों के लिए। उनकी इस बात से जहाँ कुछ भारतीय इतिहासकार सहमत हैं, वहीं कुछ दूसरे इतिहासकारों ने उनकी आलोचना भी की है। उनके आलोचक उन पर लोकप्रियता हासिल करने वाला इतिहासकार होने का आरोप लगाते हैं। गत अक्टूबर में इस पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद से ही इसने आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद तो भारत और विदेशों में भी इस किताब की समीक्षाओं का जैसे अंबार लग गया। जफर पर केंद्रित : डैलरिम्पल की यह किताब 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान हिन्दुस्तान के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के नाटकीय पतन को जानने का प्रयास करती है। भारत में प्रायः इस विद्रोह को ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई के रूप में वर्णित किया जाता रहाहै। किताब की सफलता दिखाती है कि भारत में आम लोगों की पहुँच के भीतर होने वाले इतिहास लिखे जाने की किस कदर जरूरत है। वे आगे कहते हैं कि 'भारत के बारे में एक विचित्र-सी बात यह है कि यहाँ के सिर्फ चंद इतिहासकारों ने ही आम पाठकों तक पहुँचने की कोशिश की है। भारत मेधावी इतिहासकारों से भरा पड़ा है, लेकिन इस समय वे केवल अपने पेशेवर साथी इतिहासकारों के लिए ही लिख रहे हैं। भारत में साइमन, स्कामा, एंथोनी बीवर या ऑरलैंडों फिजेस जैसा कोई इतिहासकार नहीं है।' दस दिनों के भीतर ही इस किताब की करीब 35 हजार प्रतियाँ बिक चुकी हैं। डैलरिम्पल के मुताबिक यह संख्या दिखाती है कि भारतीय अकादमिक इतिहासकार यहाँ के आम पाठकों की भूख नहीं शांत कर पाए हैं। डैलरिम्पल ने अपनी किताब के प्रचार-प्रसार के लिए कोलकाता में कुछ समय बिताया है। -
बीबीसी