• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. आलेख
  4. Now the technical torture on women

अब महिलाओं पर तकनीकी अत्याचार

अब महिलाओं पर तकनीकी अत्याचार - Now the technical torture on women
-प्रज्ञा पाठक


28 मार्च के अखबार में एक समाचार पढ़ा-पुणे के एक उच्च शिक्षित पति महोदय काम में परफेक्शन को लेकर इतने दुराग्रही थे कि वे पत्नी की बनाई प्रत्येक रोटी को इस पैमाने पर नापते कि वह पूर्णतः गोल हो और उसका व्यास 20 सेंटीमीटर ही हो।उन्होंने पत्नी को एक एक्सलशीट बनाकर दी,जिसमें पत्नी को प्रतिदिन उन्हें पूर्ण हुए काम,अधूरे काम और अन्य जारी कामों की सूचना देनी होती। पति ही घर में आने वाली प्रत्येक वस्तु की खरीद और उपयोग की मात्रा तय करता। अपने द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल में तनिक भी विघ्न पैदा होने पर वह पत्नी और 6 वर्षीय बेटी को पीटता। लंबे समय तक ये अत्याचार झेलने के बाद पत्नी की सहनशक्ति जवाब दे गई और अब तलाक का मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
 
इस समाचार ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। कैसे एक इंसान, दूसरे इंसान के प्रति इतनी क्रूरता से पेश आ सकता है? जब उच्च शिक्षित तबके के ये हाल हैं, तो अल्पशिक्षित और अशिक्षित वर्ग में तो महिलाओं की दशा और अधिक शोचनीय होगी। ये समाचार अपनी तरह से अलग हो सकता है, किन्तु महिलाओं के साथ घर और बाहर हिंसा होना आम बात है।
 
हमारे देश के धर्मग्रंथ, साहित्य और संस्कृति महिलाओं को सम्माननीय दर्जा देने की बातों से भरे पड़े हैं और हम स्वयं भी अत्यंत गर्व से सम्बन्धित उक्तियों, सूत्रों और श्लोकों को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने में अपनी शान समझते हैं। तो फिर ऐसी घटनाओं को स्वयं अंजाम देते या होते हुए देखने में शर्म महसूस क्यों नहीं करते? क्यों तब ये बात विस्मृत कर जाते हैं कि ऐसा करने से हमारे महान भारत की महान संस्कृति को कलंक लगेगा?
 
अच्छा चलिए, संस्कृति को अलग रखते हैं। हम मनुष्य तो हैं, फिर मानवीयता से हीन क्यों हो जाते हैं? पत्नी पर हाथ उठाते समय ,किसी महिला या बच्ची से दुष्कृत्य करते समय क्यों मन में यह भाव नहीं आता कि मैं ऐसा कर अपने मनुष्य होने पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहा हूँ? स्वयं ही स्वयं को कलंकित करना भला कहाँ की समझदारी है?
 
तेजी से हाईटेक होते इस युग में मानव के अंतर्मन की यात्रा पर भी चिंतन करने की गंभीर आवश्यकता है। वह दिमाग से तो बहुत समृद्ध होता जा रहा है, लेकिन दिल से निरंतर निर्धन होता जा रहा है। उसकी संवेदनाएं मरने लगी हैं, भावनाएं सूखने लगी हैं।
 
यदि इस स्थिति को नहीं संभाला,तो महिलाओं व बच्चों का जीवन दिन-प्रतिदिन नारकीय होता जायेगा।फिर कैसे हम 'परिवार' बनाएंगे?कैसे 'घर' का अतुलनीय सुख भोगेंगे?
 
बेहतर होगा कि अपने सुपुत्रों को अभी से यह शिक्षा देना आरम्भ कर दें कि प्रत्येक महिला चाहे वह मित्र हो, बहन हो, माँ हो अथवा पत्नी, हर रिश्ते में सम्माननीय है। साथ ही यह भी कि विवाह के बाद पत्नी तुम्हारी मित्र बनकर आएगी, सहचर बनकर जीवन-यात्रा में साथ चलेगी न कि तुम्हारी दासी या अधीनस्थ बनकर रहेगी। उन्हें यह शिक्षा देने के साथ-साथ घर के पुरुष भी उनके समक्ष उदाहरण बनें- अपनी पत्नी से समानता का सद्व्यवहार करके। किसी को दबाकर जीने से 'सुख' मिल सकता है, 'सुकून' नहीं। वह तो स्नेह, सद्भाव और सम्मान देने से ही मिलेगा और मेरी दृष्टि में वही मानव-जीवन का अंतिम लक्ष्य होता है।