मंगलवार, 8 जुलाई 2025
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ऑनर किलिंग पर हमें शर्म नहीं आती?

डॉ. अभिषेक सिंघवी

ऑनर किलिंग
ND
जब पहली बार मैंने ऑनर किलिंग शब्द सुना तो मुझे अत्यंत विस्मय और आश्चर्य हुआ। पहली बार यह शब्द मैंने पाकिस्तान में हत्या या मृत्युदंड के संदर्भ में सुना था। उस वक्त मैंने सोचा कि कानून के तहत हत्या करना या हत्या जैसे शब्द हमेशा गैरकानूनी या अवैध ढंग से किसी की जान लेने को कहा जाता है।

यानि परिभाषा में ही हत्या या उसके अलग-अलग पहलू गैरकानूनी है और हत्या किसी भी नाम या परिभाषा से पुकारा जाए वह गैरकानूनी ही होगा। किसी भी बालिग और अपने जीवन का फैसला स्वयं कर लेने वाले की हत्या करके उसे ऑनर किलिंग का नाम देना और परोक्ष रूप से वैध करार देना असंभव है।

ND
वैसे भी जब किसी की हत्या की जा रही है तो उसे ऑनर किलिंग का नाम किस तरह दिया जा सकता है? यह कैसी हत्या है जो किसी परिवार और समाज की प्रतिष्ठा के नाम पर की जा रही है? किसी की हत्या करने के कई कारण हो सकते हैं पर किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन जीने के फैसले को बर्दाश्त नहीं करके उसकी हत्या करना गैरकानूनी है।

भारतीय दंड संहिता की दफा 302 से 304 के तहत हत्या के लिए सजा का प्रावधान है। यह प्रावधान यह नहीं देखता कि हत्या किस उद्देश्य या किस मकसद से की गई है और उसके लिए सजा बराबर है।

समाज से यह गलतफहमी दूर होना बेहद जरूरी है कि हत्या चाहे जिस वजह से हो वह कानून की नजर में अपराध है। इसलिए जो लोग यह समझते हैं कि वे अच्छे कारणों से किसी की हत्या कर सकते हैं या ऐसा दोषपूर्ण नहीं होगा, वे मिथ्या के सहारे जी रहे हैं। निश्चित रूप से ऑनर किलिंग हत्याओं की वह श्रेणी है जो बहुत हद तक सामाजिक एवं ऐतिहासिक कारणों से रूढ़िग्रस्त हो गई है। कानून की नजर में उसका दंड भी किसी प्रकार से कम नहीं है।

ऑनर किलिंग को हत्याओं की सूची में सबसे ज्यादा गंभीर, दोषपूर्ण और जघन्य अपराध मानना चाहिए। ऑनर किलिंग एक प्रकार से अकारण ही की जाती है। यह सिर्फ दो बालिग व्यक्तियों के निजी, वैध और कानूनी फैसले को मान नहीं सकने या स्वीकार नहीं कर पाने का परिणाम होता है जिसमें अहंकार भी छुपा होता है।

उन दो बालिग व्यक्तियों की न तो किसी से दुश्मनी होती है और न ही उनके साथ रहने के फैसले से किसी को नुकसान पहुँच रहा है। न ही इसमें कोई संपत्ति विवाद है फिर भी उनकी हत्या इसलिए कर दी जाती है कि उनके फैसले से उनके परिवारवाले और समाज असहमत होते हैं। किसी के फैसले से असहमत होने पर उसकी हत्या क्या न्यायसंगत है?

ND
यह एक ऐसा गंभीर मुद्दा है जिस पर हर सभ्य समाज सोचने पर मजबूर होना चाहिए । 2010 में भी हम केवल इसलिए किसी बालिग पुरुष और महिला की हत्या कर देते हैं कि हम उसके स्वतंत्र निजी और कानूनी तौर पर सही फैसले को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकते।

हिंदू विवाह अधिनियम में सगोत्र विवाह यानि पिता की तरफ से सात और माँ की तरफ से पाँच पीढ़ी (प्रोहिबिटेड डिग्री) में विवाह अवैध माना जाता है पर इसका मतलब यह नहीं है कि जिसने ऐसा कदम उठा लिया हो उसे समाज का सबसे बड़ा अपराधी मानते हुए मौत की सजा दे दी जाए! कुछ लोग जानबूझ कर इस तरह का मिथ्या प्रचार कर रहे हैं कि जो ऑनर किलिंग के विरोध में खड़े हैं वह प्रोहिबिटेड डिग्री में विवाह का समर्थन करते हैं। यह कुतर्क है। इन दो बातों में कोई संबंध ही नहीं है।

ऑनर किलिंग को रोकने के लिए मौजूदा कानून को ही सख्ती से लागू किया जा सकता है यह बात आंशिक तौर पर सच है, लेकिन उसके साथ ही पूरे देश में यह संदेश जाना जरूरी है कि नया कानून इसलिए बनाया जा रहा है कि हम इस मुद्दे को एक श्राप समझते हैं और जिसे उखाड़कर फेंकना बहुत जरूरी है। नए प्रस्तावित कानून में ऑनर किलिंग को रोकने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं जिसकी कमी मौजूदा कानून में देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए कानून में ऐसा प्रावधान किया जा रहा है कि यदि कोई व्यक्ति परिवार या रिश्तेदारों के बीच ऑनर किलिंग की योजना पहले से जानता हो तो वह भी इस कानून की गिरफ्त में आएगा।

ऑनर किलिंग के नाम पर युवक-युवतियों के मन में भय पैदा करके सगोत्र विवाह करने के उनके फैसले और हौसले को तोड़ा जा रहा है। 80 फीसदी हत्याएँ सगोत्र विवाह के नाम पर अंतरजातीय विवाह करने वालों की हुई है। किसी भी अंतरजातीय विवाह को सगोत्र विवाह का नाम देकर विवाहित युगल की हत्या कर दी जाती है।

इसलिए अभी यह कहना मुश्किल है कि ऑनर किलिंग को रोकने के लिए जो कानून बनाया जा रहा है उसके लिए प्रस्तावित विधेयक का मसौदा क्या होगा पर इतना कहा जा सकता है कि ऑनर किलिंग के संदर्भ में कई ऐसे मुद्दे हैं जिसके लिए नया कानून न्यायसंगत होगा।

मैं निजी तौर पर मानता हूँ कि भारत 2010 में 1950 की तुलना में इतना शिक्षित और आर्थिक तौर पर इतना समर्थ है कि कई सामाजिक मिथ्याएँ धीर-धीरे समाप्त हो रही हैं। आशा और विश्वास किया जा सकता है कि 2030-2050 में इस प्रकार की कुरीतियाँ भी खत्म हो जाएँगी। लेकिन यह तभी हो सकता है जब सामूहिक रूप से पूरा देश ऑनर किलिंग के मुद्दे को लज्जा भरी नजरों से देखे और देश में कहीं भी ऐसी घटना होने पर पूरा सभ्य समाज एक स्वर में उसकी भर्त्सना करे।

(डॉ. अभिषेक सिंघवी, सांसद, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता है, भारत के पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं।)