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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 9 अप्रैल 2024 (14:39 IST)

Gudi Padwa Essay : गुड़ी पड़वा पर रोचक निबंध हिन्दी में

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, गुड़ी पड़वा पर निबंध

Gudi Padwa Essay : गुड़ी पड़वा पर रोचक निबंध हिन्दी में - Essay Gudi Padwa
Gudi Padwa Nibandh 
HIGHLIGHTS
 
• भारतभर में गुड़ी पड़वा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
• गुड़ी पड़वा पर हिन्दी में निबंध। 
• सृष्टि की संरचना का दिन गुड़ी पड़वा।
Gudi Padwa: भारतभर में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक 'गुड़ी पड़वा' है। यह दिन सृष्‍टि के आरंभ का दिन माना जाता है कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने प्रतिपदा तिथि को सर्वोत्तम तिथि कहा था इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। हिंदू नव वर्ष यानी गुड़ी पड़वा को भारत भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का होता है, जो कि ऐतिहासिक दृष्‍टि से बहुत महत्व रखता है। 
 
भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नव वर्ष का आरंभ होता है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है।

जीवन का मुख्य आधार सोमरस चंद्रमा ही औषधियों, वनस्पतियों को प्रदान करता है इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है। इस दिन पूरनपोली बनाई जाती है तथा कड़वा नीम का सेवन आरोग्य के लिए अच्छा माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा' कहा जाता है। गुड़ी का अर्थ 'विजय पताका' होता है।
 
नवसंवत्सर से ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नवसंरचना के लिए ऊर्जस्वित हो रही है। मनुष्य, पशु-पक्षी एवं प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग कर सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।
 
ब्रह्म पुराण में गुड़ी पड़वा से संबंधित वर्णन मिलता है कि, जिसके अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भार‍त वर्ष में काल गणना प्रारंभ हुई थी। कहा है कि- चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि, शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति। -ब्रह्म पुराण
 
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्रि घट स्थापना, ध्वजारोपण आदि विधि-विधान किए जाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। इस ऋतु में संपूर्ण सृष्टि में सुंदर छटा बिखर जाती है। ‘प्रतिपदा' के दिन ही पंचांग तैयार होता है। 
 
महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग' की रचना की। इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत काल गणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। 
 
 
नवसंवत्सर का इतिहास बताता है कि इसी दिन आज से 2070 वर्ष पूर्व 'उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य' ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। इस पराक्रमी वीर महावीर का जन्म अवंति देश की प्राचीन नगर उज्जयिनी में हुआ था जिनके पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं। इस दम्पति ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान भूतेश्वर से अनेक प्रार्थनाएं एवं व्रत उपवास किए। इस तरह महाराज विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे 'विक्रमी शक संवत्सर' कहा जाता है। सबसे प्राचीन काल गणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया।