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पीड़ा के स्वर : सच के आसपास

सच्ची अनुभूतियों से उपजी कहानियाँ

book review | पीड़ा के स्वर : सच के आसपास
कृष्ण कुमार भारती
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श्री मुरलीधर वैष्णव जोधपुर में जिला उपभोक्ता न्यायालय में न्यायाधीश हैं। वैष्णव जी ने अपने लम्बे अनुभव में सरकार, प्रशासन, पुलिस व आम जनता की मानसिकता व विचार-व्यवहार को करीब से जाँचा-परखा है। उन्होंने अपनी कहानियों में विवेकपूर्ण तरीके से इन सभी वर्गों की कमजोरियों को उघाड़ा है। उन्होंने अपनी संवेदनाओं को साहित्य की अनेक विधाओं में व्यक्त किया है। कहानी के साथ-साथ लघुकथा व बालसाहित्य लेखन में भी उनका स्तरीय योगदान है।

लगातार तबादलों के चलते वैष्णव जी को विभिन्न जीवन-शैलियों व संस्कृतियों को करीब से देखने का अवसर मिला। 'माँद से ड्रॉइंग रुम तक' कहानी में जहाँ नगरीय संस्कृति की संवेदनहीनता चित्रित हुई है वहीं 'तीसरा वज्रपात' में आदिवासी जीवन की विडम्बनाओं को दर्शाया गया है।

वैष्णव जी की कहानियों का दृष्टिकोण आदर्शोन्मुख यथार्थवाद है। यह न तो कोरा आदर्शवाद है और न ही नग्न यथार्थवाद। उनका प्रयत्न मानव जाति को संभावित खतरों के प्रति सजग करने का है न कि निराश व हतोत्साहित करना। इन कहानियों में वर्णित विषय लेखक के देखे-भोगे हैं। लेखक के शब्दों में 'ये सच्चे अनुभूत किस्से अच्छी-खासी भीतरी हलचल के बाद ही पीड़ा के स्वर के रूप में उभरे हैं।'

कहानी 'माँद से ड्रॉइंग रुम तक' जंगलों की अंधाधुंध कटाई के फलस्वरूप वन्य जीवन के असंतुलन को दर्शाती है। पशु की इंसानियत और इंसान की पाशविकता इस कहानी में व्यक्त हुई है। कहानी वन्य जीवों के अधिकारों को उठाती है। हम मानवाधिकारों की बात करते हैं, स्त्री-दलित-आदिवासियों के अधिकारों की बात करते हैं परंतु सभ्यता के विकास-क्रम में पशु-पक्षियों पर मानव की बर्बरता के सवाल पर खामोश क्यों हैं, कहानी यह प्रश्न छोड़ जाती है।

'तीसरा वज्रपात' कहानी आदिवासी जन-जीवन व लोक-संस्कृति की झलक लिए है। आदिवासी स्त्री चरित्र थांवरी के माध्यम से लेखक आदिवासी स्त्री जीवन की विडम्बनाओं को रेखांकित करने में सफल रहा है।

'हर पल जीना है' आदर्शवादी अध्यापक आलोक की कहानी है। जो गाँव में शिक्षा का आलोक फैलाता है, हरिजनों व मुस्लिमों के विवाद को सुलझाकर भाईचारे से रहने की प्रेरणा देता है। 'अन्तिम झूठ' शीर्षक कहानी में शीला एक साहसी, बुद्धिमान व चरित्रवान महिला है जो अपनी सूझ-बूझ से न केवल अपने पति के हत्यारों को सजा दिलवाती है अपितु अपने बेटे को एक बड़ा आदमी बनाती है। पुलिस व अपराधियों की साँठ-गाँठ यहाँ खुलती है। शीला का अंतिम बयान समूची प्रणाली पर गहरी चोट करता है।

'वापसी' कहानी आदिवासी क्षेत्रों में चल रही धर्मांतरण की गतिविधियों पर प्रकाश डालती है। 'विरासत' शीर्षक कहानी में एक सेवानिवृत्त अधिकारी की दारुण स्थिति का मार्मिक चित्रण हुआ है। लम्बी कानूनी प्रक्रिया और वकीलों की भ्रष्ट नीतियों के कारण आम आदमी की कमर टूट जाती है और अन्ततः उसे न्याय के नाम पर अन्याय ही मिलता है। कानून के अंधेपन, बहरेपन और लूलेपन को दर्शाती है यह कहानी।

'मै अकेला नहीं' में नपुंसक प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ लड़ते कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारी की पीड़ा व संघर्ष को प्रस्तुत किया गया है। मजिस्ट्रेट कमलनाथ के दक्षतापूर्ण कार्य से पुलिस व अदालत की ऊपरी कमाई बन्द हो जाती है, वकीलों का काम-काज ठप्प हो जाता है। उसे संविधान में आस्था का पुरस्कार उच्चाधिकारियों की नाराजगी व डाँट-डपट के रूप में प्राप्त होता है। परंतु अपनी जिम्मेदारियों के प्रति समर्पित कमलनाथ तमाम बाधाओं के बावजूद समझौता नहीं करता और अन्ततः विजयी होता है।

संग्रह में संकलित सभी कहानियाँ साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सरिता, मुक्ता जैसी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। निसंदेह ये कहानियाँ पाठक को अन्याय के प्रति आक्रोशित करती हैं, पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक करती हैं और संवेदनहीनता से मुक्त कर मानवीय संबंधों की गरिमा को पहचानने की परख देती हैं।

पुस्तक- पीड़ा के स्वर,
लेखक- मुरलीधर वैष्णव,
प्रकाशक- श्री करणी प्रकाशन, सोजत शहर (राजस्थान)
मूल्य- 125 रुपए,
पृष्ठ संख्या- 80