चलते तो अच्छा था : यात्रा-संस्मरण
राजकमल प्रकाशन
पुस्तक के बारे में '
चलते तो अच्छा था' ईरान और अजरबैजान के यात्रा-संस्मरण हैं। असगर वजाहत ने केवल इन देशों की यात्रा ही नहीं की बल्कि उनके समाज, संस्कृति और इतिहास को समझने का प्रयास भी किया है। उन्हें इस यात्रा के दौरान विभिन्न प्रकार के अनुभव हुए हैं। उन्हें अजरबैजान में एक प्राचीन हिन्दू अग्नि मिला। कोहेकाफ की परियों की तलाश में भी भटके और तबरेज में एक ठग द्वारा ठगे भी गए।पुस्तक के चुनिंदा अंश'
ईरान की सड़कों और बाजारों में दुकानों के नामों के विज्ञापन और दूसरे व्यावसायिक विज्ञापनों के बोर्ड इतने कलात्मक होते हैं कि कहना ही क्या? ऐसी डिजाइन ले-आउट, ग्राफिक्स वर्क, रंगों का संयोजन और संक्षिप्तता अगर और कहीं देखने को मिलती है तो पश्चिमी यूरोप या अमेरिका में। ईरान में किताबों के कवर, नाटक के पोस्टर, फिल्म के इश्तेहार भी बहुत कलात्मक होते हैं। *** तेहरान समाचार पत्रों के दफ्तरों, संग्रहालयों, प्रकाशनों, सिनेमा हॉलों, थिएटरों, कॉन्फ्रेंस, स्कूलों, विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों के कारण देश का सबसे बड़ा बौद्धिक केंद्र बन गया है। तेहरान में एक ग्रुप, 'तेहरान ऐवेन्यू' के नाम से सक्रिय है। इसमें लेखक, कवि, चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुकार सभी शामिल हैं।*** जूबा के पास एक प्राचीन 'अग्नि मंदिर' भी है और उसे देखना भी जरूरी था। इसके अलावा शहर में तुर्की ढंग से पुरानी मस्जिद और हम्माम की इमारतें भी देखना चाहता था। मित्र टैक्सी चालक ने मुझे टैक्सी पर बैठाया और गुधियाल चे नदी के उस पार पहाड़ों पर स्थित यहूदियों की बस्ती की तरफ रवाना हो गए।*** पहली बात इन लड़कियों के संबंध में बहुत स्पष्ट लगी और वह यह कि ये अन्य लड़कियों से भिन्न हैं और इनकी अपनी अलग पहचान है। पहचान भी साधारण नहीं है बहुत प्रमुख पहचान है। आमतौर पर उनका कद लंबा है लेकिन लंबाई इतनी नहीं जो बुरी लगे। कद और काठी का संयोजन संभवत: क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की वजह से बहुत सही और प्रभावशाली अनुपात में है। ऐसा नहीं कि शरीर का एक हिस्सा अतिरिक्त रूप से दूसरे हिस्सों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता हो। शरीर की विशेष बनावट की वजह से उनके चलने-फिरने, खड़े रहने में एक राजकीय ठसक भी आ गई है जो बहुत गरिमामयी लगती है।समीक्षकीय टिप्पणीयात्राओं का आनंद और स्वयं देखने तथा खोजने का संतोष 'चलते तो अच्छा था' में जगह-जगह देखा जा सकता है। असगर वजाहत ने ये यात्राएँ साधारण ढंग से एक साधारण आदमी के रूप में की हैं जिसके परिणामस्वरूप वे उन लोगों से मिल पाए हैं, जिनसे अन्यथा मिल पाना कठिन था। 'चलते तो अच्छा था' यात्रा-संस्मरण के बहाने यह पुस्तक हमें कुछ गहरे सामाजिक और राजनीतिक सवालों पर सोचने के लिए मजबूर करती है।चलते तो अच्छा था : यात्रा-संस्मरणलेखक : असगर वजाहतप्रकाशक : राजकमल प्रकाशनपृष्ठ : 144मूल्य : 175 रुपए