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Last Updated : सोमवार, 24 जनवरी 2022 (23:42 IST)

पुस्‍तक समीक्षा: 'ठेला’ बेबाकी से प्रेषित होती कविताएं

पुस्‍तक समीक्षा: 'ठेला’ बेबाकी से प्रेषित होती कविताएं - Thela, book review, mahendra kumar sanghi, poem, poetry
- सदाशिव कौतुक
कवि महेंद्र कुमार सांघी दद्दूएक दिन अपना ठेलाधकाते हुए मेरे निवास पर आ गए। ठेला को देखा और पढ़ा तो अच्छा लगा। ठेला का ब्लड प्रेशर जीरो था, जैसे कि जीरो ब्लड प्रेशर की तरह देश चल रहा है।

इस संग्रह की कविता की इस पंक्ति जीरो ब्लड प्रेशर की तरह देश चल रहा है ने देश की सही स्थिति का आकलन कर दिया है। एक ही पंक्ति देश की रुग़्ण अवस्था को परिभाषित करने के लिये काफी है।

व्यंग्य की जो विशेषता होनी चाहिये उसका निर्वाह इस कविता ने बखूबी किया है। कम शब्दों में बड़ी से बड़ी बात कह जाना ही तो कविता का मुख्य गुण है। वैसे ही एक कविता में जिक्र है- जिसकी लाठी उसकी भेंस

हालांकि बोलचाल की आम भाषा में कहा जाने वाला यह मुहावरा काफी प्रचलित है, परंतु सही जगह कहा जाना चाहिये और इस कविता में प्रसंगवश कहा जाना सही चोट करता है।

एक कविता में सांघी जी कहते हैं सिर पर बाल हों कम पर तंदुरुस्ती हो ज्यादा

बड़ी सटीक बात कही गई है। नेताओं पर तंज कसते हुए एक कविता की पंक्तियां हैं ‌–मच्छर के काटे और बुखार का इलाज है पर नेता के काटे का नहीं

इतनी बेबाकी से नेताओं के बारे में कह जाना साहस का काम है, क्योंकि सच को सच कहना भी जोखिम का काम है। कितनी बड़ी बात कह दी कि रोज कालिख पुतने पर भी उजले नजर आते हैं’ जब ऐसे हालात बनते हैं तब लगता है कि लोगों की आंखों में जाला आ गया हैं।

कवि का मतदाता को निर्जीव होने की संज्ञा दे देना जन जाग्रति के लिये रामबाण व्यंग्य है। इस और एक कवि ही अंगुली उठा सकता है। कवि ने प्रजातंत्र के चार स्तम्भों के साथ एक पांचवा स्तंभ और जोड़ दिया और वह है मतदाता।

प्रजातंत्र को संचालित करता है मतदाता परंतु चुनाव हो जाने के पश्चात उसकी हालत दयनीय हो जाती है इसका हमने बीते 70 वर्षों में अच्छा अनुभव लिया है। प्रजातंत्र में रह रहा हूं/ वादे खाकर जिंदा हूं/ प्रजातंत्र का पांचवा खम्बा हूं

कितनी सटीक बात कहकर पिछले 70 वर्षों की विसंगतियों का चिठ्ठा खोल कर रख दिया है। नेताओं के दो अस्त्र अपराध और हिंसा का भी अच्छा सत्य प्रकट किया गया है।

इस संग्रह की कविताओं का दूसरा रूप भी है और वह है संस्कार और सीख। वे हास्य व्यंग्य कविताओं के माध्यम से समाज को सजगता प्रदान करने का मह्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। वह भी निर्भीक होकर। निर्भीकता लेखक का पहला गुण होना चाहिये और वह सांघीजी की रचनाओं में है। कहीं कहीं अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है पर वे शब्द भी रोचक जान पड़ते हैं।

आपके संग्रह में प्रेम कविताएं भी हैं परंतु वे भी हास्य-व्यंग्य का पुट लिये हुए हैं। पति पत्नी का रोचक संवाद है तो कहीं महंगाई पर प्रहारक तंज है। व्यंग्य की कदमताल के साथ शिक्षाप्रद विचार भी परिलक्षित हुए हैं। शहर में रहना कितना जोखिमपूर्ण है इसकी बानगी भी आपने दी है। दोस्ती और दुश्मनी साथ साथ चलती है।

वर्तमान में तनाव भरा जीवन जीने के कारण मनुष्य की मुस्कान गायब सी हो गई है। ऐसी हास्य-व्यंग्य की कविताओं का ठेला जब कभी समाज के सामने प्रस्तुत हो जाता है तो मरुस्थल में कुछ क्षणों के लिये ऐसी कविताएं बदली की तरह बरस जाती हैं और तनावों की तपन से कुछ राहत देती हैं। कवि महेंद्र सांघी बधाई के पात्र हैं। वे लिखते रहें और लेखन के माध्यम से समाज को दिशा प्रदान करते रहें।

(समीक्षक सदाशिव कौतुक इंदौर के वरिष्ठ कवि हैं।)