प्रवासी की कलम से
संघर्षमय जीवन का मार्मिक दस्तावेज
राजेन्द्र उपाध्याय बादल सरकार भारतीय रंगमंच की एक विभूति हैं। बादल सरकार पेशे से इंजीनियर रहे हैं। वे टाउन प्लानिंग के प्रशिक्षण के लिए सितंबर 1957 से सितंबर 1959 तक लंदन में रहे। विदेश में अकेले रहने का उनका यह अनुभव एक साथ कड़वा और मीठा था, जिसका बयान उन्होंने अपनी डायरी में किया, जो इतने वर्षों बाद वर्ष 2006 में 'प्रबासेर हिजिबिजि' नाम से बांग्ला में प्रकाशित हुई। इसी डायरी का अनुवाद हिंदी की जानी-मानी रंगकर्मी प्रतिभा अग्रवाल ने 'प्रवासी की कलम से' नाम से किया है। यह उनके संघर्षमय जीवन के एक कालखंड का अत्यंत मार्मिक और प्रामाणिक दस्तावेज है। इसमें उनके पत्रों का भी संग्रह किया गया है जिससे हम उनके व्यक्तित्व के साथ-साथ उनके संवेदनशील रंगकर्मी की संरचना को समझने की शुरुआत भी कर सकते हैं। ग्रंथ में एक जगह उन्होंने लिखा है कि जो बातें दूसरों से कही जा सकती थीं, वे पत्रों के माध्यम से कही गई हैं और जो किसी से नहीं कही जा सकीं, वे डायरी में उतर आईं और जो डायरी में भी नहीं कहीं जा सकीं वे कविताओं का बाना पहनकर व्यक्त हुई हैं। इसमें संग्रहीत कविताएँ भी एक संघर्षशील रंगकर्मी को समझने में बड़ी मदद करती हैं। अनुवादक ने इस सारी सामग्री को काल क्रमानुसार रखा है। एक जगह वे लिखते हैं-'जीवित रहने के लिए मनुष्य को क्या विश्वास की जरूरत होती है? भगवान में विश्वास, आदर्श में विश्वास, काम में विश्वास, मनुष्य में विश्वास, विप्लव में विश्वास, अपने ऊपर विश्वास, प्रेम पर विश्वास?' इनमें से कौन सा विश्वास आज मुझमें है? क्या कह सकता हूँ? जीवन में विश्वास? वह भी है क्या? असल में जीवित रहने का अर्थ कितना सा है। सन 1957 से 1967 तक के दौर की राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में एक संवेदनशील मन की छटपटाहट भी इनमें उजागर होती है। पुस्तक में अगर कुछ चित्र भी दे दिए जाते तो इसका महत्व और बढ़ जाता। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा प्रकाशित 300 पृष्ठ की इस पुस्तक का 300 रुपए मूल्य उचित रखा गया है। रंगमंच के आम छात्रों के लिए इसका पेपरबैक संस्करण निकाला जाना चाहिए।पुस्तक : प्रवासी की कलम सेलेखक : बादल सरकार अनुवाद : प्रतिभा अग्रवालप्रकाशक : राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली मूल्य : 300 रुपए