कालिदास व्यक्ति तथा अभिव्यक्ति
कालिदास 'काली' के नहीं 'कालि' के भक्त हैं
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डॉ. कुसुम पटोरिया कालिदास ने सहृदयों, समीक्षकों व समालोचकों की सर्वाधिक प्रशंसा प्राप्त की है। उनकी एक-एक कृति पर लाखों पृष्ठ लिखे जा चुके हैं, परंतु उनका काव्य जितना सुपरिचित है, जीवन उतना ही अनिर्णीत। महामापोध्याय डॉ. प्रभाकर नारायण कवठेकर की नई पुस्तक 'कालिदास : व्यक्ति व अभिव्यक्ति' है। कालिदास 'कालि' के दास (भक्त) हैं। 'कालि' महाकाल शंकर के पुत्र कार्तिकेय हैं। कालिदास ने कार्तिकेय की भक्ति में कुमारसंभव की रचना भी की है। कालिदास का साहित्य गणेश व दुर्गा दोनों से परिचित नहीं है। अतः 'कालि' कार्तिकेय ही हैं, गणेश नहीं। साथ ही कालिदास 'काली' के भक्त नहीं 'कालि' के भक्त हैं। कवठेकरजी की यह स्थापना सटीक है। डॉ. कवठेकर भी कालिदास का काल, ईसा पूर्व दूसरी सदी मानते हुए, पुरी के समीप स्थित उदयगिरि की पहाड़ियों से प्राप्त शैलचित्रों को, अतिरिक्त प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करते हैं। डॉ. कवठेकर ने 'चिनवतानि' शब्द का अर्थ चीन के रेशमी वस्त्रों से, जैन मुनियों का सत्कार माना है जो संभव नहीं है। 'चिनवतानि' खारवेल का विशेषण है, जिसका अर्थ है व्रतों का पालन करने वाला। यहीं रानीगुम्फा में यमपुर में एक शिकार का चित्र है, दूसरा उत्सव का, जिन्हें कवठेकरजी ने अभिज्ञान-शाकुंतल के चित्र माना है, जो हमारी विनम्र दृष्टि में अनुमान के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यद्यपि कालिदास को अग्निमित्र के शासनकाल में मानने पर, उनका काल ईपू द्वितीय शताब्दी निर्धारित किया जा सकता है। कालिदास यदि शुंगकालीन हैं, तो चाणक्य उनके आदर्श नहीं हो सकते, क्योंकि चंद्रगुप्त के गुरु चाणक्य व अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य दो भिन्न व्यक्ति हैं। इतिहासकारों के अनुसार अर्थशास्त्र में प्रतिपादित शासन-व्यवस्था गुप्तकालीन है। साथ ही श्रमणों के प्रति इतनी घृणा मौर्य-शासन में संभव नहीं थी। यह गुप्तकाल में ही संभव हो सकती है। कालिदास अग्निमित्र के राज्याश्रय में थे, तो उनका उज्जयिनी से सम्बद्ध होना भी निश्चित है। डॉ. कवठेकर ने इन्हें कालिसिन्ध नदी पर स्थित कालिसिन्ध नामक ग्राम का निवासी बताया है। मेघदूत में उल्लिखित सिन्धु ही कालिदास के नाम पर, कालिसिन्ध कहलाती है। महत्वपूर्ण यह है कि डॉ. कवठेकर ने शोध से सम्बद्ध स्थलों का स्वयं निरीक्षण किया है। लेखन में पुनरुक्तियाँ अधिक हैं। वर्तनी की अक्षम्य भूलें हैं। '
बुद्ध स्वयं बौद्धधर्म से अनभिज्ञ थे' जैसी पंक्तियों का स्पष्टीकरण आवश्यक है। बौद्धों के विषय में अनेक चिंत्य अवधाराणाएँ हैं। शोध के निष्कर्ष निश्चित ही विद्वानों के लिए चर्चा का विषय होंगे। डॉ. कवठेकर की निरंतर खोज वृत्ति और अक्षीण उत्साह अनुकरणीय है।पुस्तक : कालिदास व्यक्ति तथा अभिव्यक्तिलेखक : प्रो.(डॉ.) प्रभाकर नारायण कवठेकरप्रकाशक : नाग पब्लिशर्स, 11-ए (यूए) जवाहर नगर, दिल्ली।