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Written By ND

हेल्दी हल्‍दी

हेल्दी हल्‍दी -
- डॉ. संजीवकुमार लाल

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कच्ची हल्दी लीवर के रोगों में मुफीद मानी जाती है। जिन लोगों का लीवर शराबखोरी के कारण क्षतिग्रस्त हो रहा हो उन्हें कच्ची हल्दी का सेवन करना चाहिए। सर्दियों में कच्ची हल्दी बहुतायत से मिलती है।

आयुर्वेद 'जीवन का विज्ञान है' जो हमें जीवन जीने की कला सिखाता है कि हमें आहार एवं विहार कैसे करना है। आहार में भी ऋतुओं के अनुसार कौन-कौन से आहार एवं औषध की व्यवस्था करें। ऐसा सूक्ष्म दृष्टिकोण आयुर्वेद की ही देन है जो पूर्णतः सिद्धांतों पर आधारित है। यदि शीत ऋतु में व्यक्ति शीत आहार एवं विहार जैसे कोल्ड ड्रिंक पीना, ठंडे प्रकृति वाले फलों आदि का सेवन या अधिक शीत में घूमना- ये शीतजन्य रोगों एवं शरीर की व्याधि क्षमता को कम करते हैं, अतः शीत ऋतुओं में उष्ण आहार एवं परिचर्या एवं उष्ण ऋतुओं में शीत आहार एवं परिचर्या का पालन करना बताया गया है।

यही नहीं, हमारे भोजन में ऐसे औषध द्रव्यों का समावेश किया गया है जिससे ऋतुजन्य व्याधियों को रोका जा सके। इसी परिप्रेक्ष्य में हल्दी का प्रयोग हमारे भोजन में किया जाता है। हल्दी का वानस्पतिक नाम कुरक्युमालाँगा है एवं इसके कंदों का औषध एवं आहार के रूपमें प्रयोग किया जाता है। इसका कंद स्वाद में कड़वा एवं इसकी प्रकृति उष्ण है, अतः शीत ऋतु में सेवन करने योग्य है। हल्दी उष्ण होने के कारण ग्रीष्म ऋतु में अल्प मात्रा में सेवन किया जाता है। इसी तरह से अदरक उष्ण होता है एवं आयुर्वेद में ग्रीष्म ऋतु एवं उष्ण काल में इसके सेवन को निषेध किया है। हल्दी का प्रयोग कफ बढ़ने पर या शीत लगने पर उष्ण दूध के साथ सेवन का प्रचलन इसी सिद्धांत पर आधारित है। हल्दी के औषधीय गुणों के आधार पर ही उसे आहार में भी स्थान दिया गया है। औषधीय गुणों के आधार पर यह जीवाणुनाशक, शोथहर, वर्ण विकार, यकृत विकारों में प्रयुक्त होता है।

शीत ऋतु में हल्दी के कुछ सामान्य प्रयोग

स्थान बदलने के कारण होने वाले रोग में कांजी में हल्दी चूर्ण डालकर पीने से उक्त रोग नष्ट होते हैं।

* सूखी खाँसी में : हल्दी चूर्ण को वासा के रस के साथ एवं मलाई मिलाकर देने पर खाँसी दूर होती है।

* श्वास रोग में : हल्दी को जलाकर काला चूर्ण बनाएँ एवं 2 ग्राम की मात्रा में मधु के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

* जुकाम में : हल्दी चूर्ण को काली मिर्च चूर्ण व गर्म दूध के साथ पीने पर लाभ प्राप्त होता है। यदि नाक से स्राव हो रहा हो तो हल्दी को जला कर धुआँ सूँघने को कहा जाता है। इससे म्यूकस मेंब्रेन से म्यूकस (कफ) की उत्पत्ति बंद हो जाती है। हल्दी पर अनेक शोध हुए हैं एवं उनके आधार पर निम्न कर्म भी पाए गए हैं। जैसे- एंटी इंफ्लेमेंटरी, एंटी प्रोटोझोअल, एंटी हिस्टामिनिक,

हायपोकोलेस्टर्मिक, एंटी एलर्जिक शीत एवं बसंत ऋतु में कफजन्य रोग जैसे श्वास, जुकाम, खाँसी आदि रोग उत्पन्न होते हैं। उन रोगों में हल्दी का प्रयोग उत्तम होता है। हल्दी शरीर की व्याधि क्षमता को बढ़ाती है जिससे शरीर रोगों से लड़ने में सक्षम होता है, अतः शरीर में एलर्जीजन्य रोगों में अच्छा कार्य करता है। टापीकल श्योसिनोफिलिया में इसके उत्तम परिणाम सामने आए हैं।

हल्दी का कर्म एंटी इंफ्लेमेंटरी भी है जिसका हमारे देश में परंपरागत रूप से प्रयोग शरीर में चोट आदि लगने पर दूध के साथ कराया जाता है। इसका शरीर में लेप लगाने से यह शरीर के वर्ण को ठीक करता है, अतः हल्दी इतनी अधिक उपयोगी होने से इसका नाम 'हेल्दी' होना चाहिए और संभवतः हमारे हल्दी के पेटेंट की लड़ाई भी इसी कारण से है, अतः शीत ऋतु में कम विकारों में हल्दी का प्रयोग अमृत तुल्य है।