'कहते हैं कि लोग प्रेम में गिर जाते हैं। मैं चाहता हूँ कि लोग प्रेम में गिरे या बहें नहीं बल्कि ऊँचा उठे।...नि:स्वार्थ प्रेम परमात्मा की प्रार्थना है।'- ओशो
FILE
बहुत से लोग चाहत करते हैं, लेकिन वे उसे प्रेम समझ लेते हैं। प्रेम में लोग आत्महत्या या हत्या भी कर लेते हैं, लेकिन यह सचमुच ही प्रेम तो कतई नहीं। किसी को पाने की चाहत कतई प्रेम नहीं हैं, यह हद दर्जे की प्रेम गिरावट है। किसी के लिए तड़प उठना भी प्रेम नहीं। किसी की याद सताना भी प्रेम नहीं। प्रेम झरने की तरह होता है कि जोभी उसके पास आएगा नहाकर ही जाएगा। योग में 'प्रेम योग' के संबंध में बहुत कहा गया है।
प्रेम योग का अर्थ भक्ति योग नहीं होता। प्रेम योग अर्थात स्वयं से प्रेम करना, सभी से प्रेम करना, सभी को स्वयं समझना और सभी को परमात्मा समझकर उससे प्रेम करना। आपका प्रेम किसी कार्य, व्यक्ति, स्थान या वस्तु के प्रति भी हो सकता है, लेकिन यहाँ प्रेम में लगाव, स्वार्थ या मोह कतई नहीं रहता बल्कि दया और करुणा का भाव रहता है।
किसी कार्य के प्रति सच्ची लगन होने से ही प्रेम का उदय होता है। जब व्यक्ति के भीतर प्रेम या निष्ठा अधिक दृढ़ हो जाती है, तब प्रेम योग का उदय होता। व्यक्ति के मन में ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ एवं अगाध श्रद्धा भी प्रेम योग है। किसी से जुड़ना प्रेम योग है। पुराणों में उल्लेख है कि प्रेम के योग को परमात्मा में लगा दो तो जीवन धन्य हो जाता है।
प्रेम योग में पारंगत होने की विधि : प्रमुख रूप से शिव, नारद और कृष्ण ये लोग प्रेम योगी थे। नारद ने तो प्रेम पर शास्त्र लिखें हैं। योग की विशेषता तो शुद्ध और पवित्र प्रेम में ही है। इस प्रेम का वर्णन नहीं किया जा सकता यह अनुभूति की बात है। पहले तो स्वयं से ही प्रेम करना सीखें।
फिर दूसरों को समझे अपने भाव और विचारों का अर्थात वह भी उसी दुख और सुख में जी रहा है जिसमें तुम। वह भी तुम्हारी तरह इस धरती के संताप और सुख झेल रहा है। उसकी बुद्धि और तुम्हारी बुद्धि में कोई खास फर्क नहीं। उसे तुम्हारी सहायता की जरूरत है। कोई क्रोध करता है या गाली देता है तो वह उतना ही रुग्ण हो चला है जितने की तुम। समझदारी का विकास करें तो सभी को स्वयं की जगह और स्वयं को सभी की जगह पाएँगे।
प्रेम योग का लाभ : सभी से विनम्रता पूर्वक व्यवहार करते हुए उनसे प्रेम से मिलना या उन्हें प्रेम करने से मन निर्मल रहता है। मन के निर्मल रहने से दुख और संताप मिटते हैं, इर्ष्या और द्वैष समाप्त होते हैं। प्रेम योग का शरीर और मस्तिष्क पर सकारात्मक तथा गहरा प्रभाव पड़ता है। यह भय और द्वंद्व मिटाता है। इसके अभ्यास से व्यक्ति सदा निरोगी, प्रसन्न और शांत रह कर विकास करता है।
संदर्भ : भारतीय संतों के प्रवचनों पर आधारित 'प्रेम योग' का वर्णन।