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Ear Infection In Rainy Season : जानिए बारिश में कैसे बचें कान की बीमारियों से?

Ear Infection In Rainy Season : जानिए बारिश में कैसे बचें कान की बीमारियों से? - suggestions to prevent ear infection in rainy season
कान में इन्फेक्शन वैसे तो किसी भी मौसम में हो सकता है, लेकिन बारिश का मौसम अन्य मौसम की तुलना में अधिक इन्फेक्शन पैदा करने वाला होता है। ऐसे में आपके लिए पेश है जरूरी सुझाव, जो आपको कान की बीमारियों व इन्फेक्शन से बचाने में मदद करेंगे। 
 
कान की बीमारियां - 
 
बारिश में संक्रमण फैलने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। संक्रमण के कारण ही बारिश में कान के रोग भी पनपते हैं, जो फैलने पर आपके लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं। आइए जानें विस्तार से...
 
मनुष्य के कान महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्रिय हैं, जो मुख्यतः दो कार्य करते हैं :
 
1. सुनना या शब्द श्रवण 2. शरीर को बैलेंस करना
 
कान के शरीर रचना की दृष्टि से तीन भाग हैं :
 
(1) बाह्य कर्ण, (2) मध्य कर्ण व (3) अंतःकर्ण।
 
अंतःकर्ण की रचनाओं में विकार आने पर प्रमुखतः चक्कर आना, चलने में परेशानी एवं उल्‍टी होना या उल्‍टी होने की इच्छा होना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें कान में आना जैसे लक्षण सामने आते हैं। कान के प्रत्येक अंग की सामूहिक ठीक क्रिया के द्वारा मनुष्य ठीक प्रकार से सुनता है। इन अंगों में से कान के पर्दे से लेकर मध्य कर्ण एवं अंतःकर्ण के अंगों में विकार होने पर विभिन्न प्रकार की श्रवणहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है।
 
सामान्यतः कान से मवाद आने को मरीज गंभीरता से नहीं लेता, इसे अत्यंत गंभीरता से लेकर विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श एवं चिकित्सा अवश्य लेना चाहिए अन्यथा यह कभी-कभी गंभीर व्याधियों जैसे मेनिनजाइटिस एवं मस्तिष्क के एक विशेष प्रकार के कैंसर को उत्पन्न कर सकता है।
 
कान में मवाद किसी भी उम्र में आ सकता है, किंतु प्रायः यह एक वर्ष से छोटे बच्चों या ऐसे बच्चों में ज्यादा होता है जो मां की गोद में ही रहते हैं। तात्पर्य स्पष्ट है जो बैठ नहीं सकते या करवट नहीं ले सकते। कान से मवाद आने का स्थान मध्य कर्ण का संक्रमण है।
 
मध्य कर्ण में सूजन होकर, पककर पर्दा फटकर मवाद आने लगता है। मध्य कान में संक्रमण पहुंचने के तीन रास्ते हैं, जिसमें 80-90 प्रतिशत कारण गले से कान जोड़ने वाली नली है। इसके द्वारा नाक एवं गले की सामान्य सर्दी-जुकाम, टांसिलाइटिस, खांसी आदि कारणों से मध्य कर्ण में संक्रमण पहुंचता है।
 
बच्चों की गले से कान को जोड़ने वाली नली चूंकि छोटी एवं चौड़ी होती है, अतः दूध पिलाने वाली माताओं को हमेशा बच्चे को गोद में लेकर सिर के नीचे हाथ लगाकर, सिर को थोड़ा ऊपर उठाकर ही बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। ऐसी माताएं जो लेटे-लेटे बच्चों को दूध पिलाती हैं उन बच्चों में भी कान बहने की समस्या उत्पन्न होने की ज्यादा आशंका रहती है।
 
आयुर्वेद की दृष्टि से सर्दी-जुकाम आदि हों तो निम्न उपाय तत्काल प्रारंभ कर देना चाहिए। सरसों के तेल को गर्म कर पेट, पीठ, छाती, चेहरे, सिर पर सुबह-शाम मालिश करना चाहिए।
 
दुनियाभर में ऐसे लाखों लोग मिल जाएंगे, जो बहरेपन के शिकार हैं। कम सुनाई देना या फिर बिलकुल भी सुनाई न देना बहरापन कहलाता है।
 
इसकी शुरुआत बहुत हल्के से होती है फिर धीरे-धीरे यह बहरेपन जैसी गंभीर समस्या बनकर उभर आती है। अगर आपको किसी के द्वारा जोर से बोलने पर भी सुनने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, तो आपको सुनने की समस्या हो सकती है।
 
सलाह आपके लिए -
 
* अगर आपको सुनाई देना कम हो गया हो या कान में इंफेक्शन हो तो तुरंत विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें।
 
* तेज आवाज में लगातार इयरफोन से संगीत न सुनें।
 
* घर पर कानों की सफाई की कोशिश ना करें यह काम विशेषज्ञ से ही कराएं।
 
* कानों में हेयरक्लिप्स, सेफ्टी पिन, माचिस की तीली एवं तीखी वस्तुएं डालने से बचें, इनसे कानों का पर्दा फट भी सकता है।
 
* बिना चिकित्सक के परामर्श के दर्दनिवारक दवाओं, एंटीबायोटिक आदि का सेवन न करें।
 
* प्रेशर हॉर्न का इस्तेमाल न करें।
 
* जब तेज आवाज से बचना मुमकिन ना हो तब कानों में रूई लगाएं।
 
* कम सुनाई दे तो ऑडियोमेट्री जांच कराएं।
 
* गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल का प्रयोग बंद करें।
 
* रात में ईयर फोन से यथासंभव बचें।