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तुमने कितनी निर्दयता की
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नीरज तुमने कितनी निर्दयता की !सम्मुख फैला कर मधु-सागर,मानस में भर कर प्यास अमर,मेरी इस कोमल गर्दन पर रख पत्थर का गुरु भार दिया।तुमने कितनी निर्दयता की !अरमान सभी उर के कुचले,निर्मम कर से छाले मसले,फिर भी आँसू के घूँघट से हँसने का ही अधिकार दिया।तुमने कितनी निर्दयता की !जग का कटु से कटुतम बन्धन,बाँधा मेरा तन-मन यौवन,फिर भी इस छोटे से मन में निस्सीम प्यार उपहार दिया।तुमने कितनी निर्दयता की !