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Written By WD

मोहम्मद इस्मत- अभाव के बावजूद कामयाब

मोहम्मद इस्मत- अभाव के बावजूद कामयाब

Cbse Topper | मोहम्मद इस्मत- अभाव के बावजूद कामयाब
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मोहम्मद इस्मत मिसाल हैं उन लोगों के लिए जो हमेशा साधनों के अभाव का रोना रोते रहते हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति और कुछ करने का जज्बा होना चाहिए। सफलता तो मिल ही जाती है।

सीबीएसई की 12वीं के परीक्षा परिणाम इस्मत के लिए कामयाबी की दास्तान लेकर आए। इस्मत की मेहनत रंग लाई और उन्होंने इस परीक्षा में देश में पहला स्थान प्राप्त किया।

मणिपुर के थाउबल जिले के लियोंग गांव के रहने वाले मोहम्मद इस्मत के घर में न बिजली है, न इंटरनेट और न आधुनिक सुविधाएं। स्कूल पढ़ने के लिए भी उन्हें कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर जाना पड़ता था। बस इस्मत के पास एक चीज है, बुलंद हौसलें।

आखिर कौन हैं मोहम्मद इस्मत। ये वही मोहम्मद इस्मत हैं जिन्होंने 2012 की सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा में 99.6 प्रश अंक प्राप्त कर देशभर में पहला स्थान प्राप्त कर अपने नाम के राथ मणिपुर का नाम भी रोशन किया है।

इस्मत के पिता बशीर अहमद एक प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं। मोहम्मद इस्मत का बचपन अभावों के बीच बीता। दो वर्ष पहले उनकी मां का निधन हो गया। इस घटना से इस्मत घबराए नहीं और उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। रोजाना आठ से दस घंटे की पढ़ाई ने उन्हें टॉपर बनाया।

इस्मत ने प्राइवेट स्कूल जेनिथ अकादमी जाने से पहले केंद्रीय विद्यालय में पंजीकरण करवाया। इस्मत की प्रतिभा को जेनिथ अकादमी के अध्यापक एसएम सिंह ने पहचाना और इस्मत की आर्थिक रूप से मदद की। इस्मत अध्यापक की मदद के लिए भी उनका आभार मानते हैं। मोहम्मद इस्मत की इच्छा दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेज में पढ़ाई करने की है।

अपने पिता को आदर्श मानने वाले इस्मत का सपना आईएएस बनने का है। वे सोचते हैं कि जिन मुश्किलों का सामना उन्हें करना पड़ा, वैसा किसी को न करना पड़े।

इस्मत दसवीं की पढ़ाई करने के बाद इस्मत की इच्छा किसी अच्छे स्कूल में पढ़ने की थी, लेकिन वित्तीय परेशानियों के कारण यह नहीं हो सका, लेकिन इस्मत ने इसको अपनी कमज़ोरी नहीं समझा बल्कि अपनी ताकत बनाया और लिख दिया वह इतिहास जो अब कई प्रतिभावान छात्रों के लिए प्रेरणा बनेगा।

असंभव शब्द इस्मत के दिमाग में भी नहीं आता। उनका मानना है कि अगर इंसान निश्चय कर ले तो सबकुछ संभव है। इस्मत के इसी यकीन ने परीक्षा में उनकी मदद की। इस्मत चाहते हैं कि उनके गांवों के बच्चों को वे सुविधाएं मिले जो उन्हें पढ़ाई के दौरान नसीब नहीं हुई।

वे चाहते कि जिन परेशानियों का सामना उन्होंने किया ऐसा उनके गांव के बच्चों को न करना पड़े। इसी विचार को मन में लेकर वे प्रशासनिक सेवाओं में जाना चाहते हैं।