रोचक जानकारी : ऐसे बनती है दियासलाई
- परिधि जैन
दियासलाई मोम लगे कागज या दफ्ती से बनाई जाती है। इनके एक सिरे पर कुछ जलने वाले पदार्थों का मिश्रण लगा होता है।
दियासलाई का निर्माण जॉन वॉल्कर ने 1827 में किया था। इसे लकड़ी के टुकड़े पर गोंद, स्टार्च, एंटीमनी सल्फाइड, पोटैशियम क्लोरेट लगाकर बनाया गया था। पर यह सुरक्षित नहीं थी। सुरक्षित दियासलाई 1844 में स्वीडन के ई. पोश्च द्वारा बनाई गई थी।
आज दियासलाई मुख्य रूप से दो तरह की होती है।
पहले तरह की माचिस को घर्षण माचिस कहते हैं। इसे किसी खुरदुरी सतह पर रगड़कर आग पैदा की जा सकती है।
सबसे पहले लकड़ी की तीली के एक-चौथाई भाग को पिघले हुए मोम या गंधक में डुबोया जाता है। फिर उस पर फॉस्फोरस ट्राइसल्फाइड का मिश्रण लगाया जाता है। उसके ऊपर एंटीमनी ट्राइसल्फाइड और पोटेशियम क्लोरेट का मिश्रण लगाया जाता है। घर्षण हो, इसके लिए इस मिश्रण में कांच का चूरा या बालू मिला दिया जाता है। जब तक सफेद हिस्सा नहीं रगड़ा जाए या आग न पकड़े, तब नीला हिस्सा नहीं जलता। इसी पदार्थ द्वारा तीली के दूसरे हिस्सों में भी आग पहुंचती है।
इस प्रक्रिया द्वारा बनाई गईं तीलियां बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं।
सुरक्षित दियासलाई दूसरी किस्म की दियासलाई है। यह दियासलाई की डिब्बी पर लगे रसायन की रगड़ खाकर ही जलती है। सुरक्षित दियासलाई का निर्माण ऊपर दी गई प्रक्रिया के अनुसार ही होता है। बस इसमें फॉस्फोरस ट्राइसल्फाइड का प्रयोग नहीं किया जाता है। उसकी जगह पर इसमें लगे लाल फॉस्फोरस लगाया जाता है। इसमें खासियत यह होती है कि बिना रगड़े दियासलाई में आग पैदा नहीं होती। हमारे घरों में इन्हीं दियासलाइयों का उपयोग होता है।
साभार- देवपुत्र