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Written By WD

राजनीति में आकर आंदोलन गिरवी नहीं रखे हैं-मेधा पाटकर

राजनीति में आकर आंदोलन गिरवी नहीं रखे हैं-मेधा पाटकर -

इन्दौर। मुंबई उत्तर पूर्व से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार मशहूर आंदोलनकारी मेधा पाटकर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अनिल त्रिवेदी के समर्थन में चुनाव प्रचार करने इन्दौर आईं। इस अवसर पर उन्होंने वेबदुनिया के कार्यालय आकर खास बातचीत की। पेश है मेधा पाटकर और इन्दौर से आम आदमी पार्टी उम्मीदवार अनिल त्रिवेदी से वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक और वेबदुनिया की टीम की बातचीत।

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मेधा पाटकर ने कहा कि हमने आंदोलनों को गिरवी नहीं रखा है, बल्कि हम इसके साथ ही राजनीति में आए हैं। उन्होंने अरविंद केजरीवाल के दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के फैसले का बचाव करते हुए कहा यह निर्णय गलत नहीं था, इसलिए क्योंकि स्थिति ऐसी बनी थी। इस्तीफे के पीछे एक पूरा विश्लेषण था।

उन्होंने कहा कि तीन‍ विधायकों ने समर्थन नहीं देने का निर्णय लिया था। लोकसभा का चुनाव केवल महत्वाकांक्षा की दृष्टि से नहीं है, क्योंकि लोगों की आकांक्षा है कि देश बदले। दिल्ली में 49 दिन जो करके दिखाया, वह एक झलक थी। वह 50 साल में दूसरी पार्टियां नहीं कर सकीं।


आम आदमी पार्टी के पोस्टर पर केवल केजरीवाल के होने से संबंधित सवाल पर मेधा ने जोर देकर कहा कि पार्टी में कोई एक नेता नहीं है, हम इसी नेतागिरी को ही खत्म करने आए हैं। चेहरा एक हो या अधिक, इससे फर्क नहीं पड़ता, सभी अपना योगदान दे रहे हैं और निर्णय भी ले रहे हैं।

- मेधा जी, आपकी छवि आंदोलनकारी की रही है, क्या आपके राजनीति में आने से यह संदेश नहीं गया कि आंदोलन से देश की दशा नहीं बदली जा सकती है? इससे आंदोलनों से लोगों का विश्वास उठता है?
मेधा पाटकर : मुझे नहीं लगता कि इतनी सोच-विचार और इतने सालों के बाद दलीय राजनीति में कदम रखने जा रहे तब लोगों के मन में इतना गैर समझ हो सकता है। सही तो यह लोगों को यह समझने की जरूरत है राज्य का चरित्र ही बदल जाने के कारण आंदोलन अपनी जगह पर रहते हैं। हासिल भी काफी कुछ कर लेते हैं।

नीतियां बदलवा लेते है, नए कानून बनवा लेते हैं, फिर भी जो कमी रहती है वह आंदोलन की कमी नहीं रहती है, वह इस व्यवस्था की कमजोरी है। इस राजनीति में जो भ्रष्टाचारियों की ताकत बढ़ती जा रही है, उसका नतीजा है। यह बात साफ है हमने आंदोलन करते-करते ही राजनीति में पांव रखे हैं। आंदोलन गिरवी नहीं रखे हैं, आंदोलन समाप्त नहीं किए हैं।

हम चाहते हैं कि पहले जैसी राजनीति चलती और आंदोलन और सामाजिक कार्य साथ-साथ चलते थे, उसमें फर्क नहीं था। आज जो फर्क आया है, उसे ही मिटाना है। जनता की ही मानसिकता बनने के कारण हम उसमें उतरे हैं। पहले जनता में ऐसी मानसिकता नहीं थी। जनता ने ही हमें संदेश दिया कि इस राजनीति को बदलना जरूरी है, वह भी आंदोलन का एक हिस्सा होना चाहिए।

- जितनी प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, महत्व एक आंदोलनकारी की होती है, एक निरपेक्ष छवि होती है, उतनी एक राजनेता की नहीं होती है? सामाजिक आंदोलन के प्रति लोगों का नजरिया अलग होता है। अन्ना के ममता से जुड़ने से भी लोगों की भावनाओं को धक्का पहुंचा?
मेधा पाटकर : केवल दलीय राजनीति से परिवर्तन आएगा यह भी हमने नहीं माना है। एक सांसद बनने से जादू नहीं होने वाला है। सांसद को भी जनशक्ति के आधार पर ही लड़ना पड़ेगा, चाहे वह ममता बनर्जी हो या अरविंद केजरीवाल।

हम समाज कार्य जैसी राजनीति करने की कोशिश की है। नर्मदा आंदोलन के समय भी हमें कहा गया ‍था कि आप बदल जाएंगे। वो हमने नहीं किया। पहले साधन हमने छोड़े नहीं हैं, आम आदमी पार्टी तो एक पोलिटिकल व्हीकल है। हमें हर बात साबित करनी है। आम आदमीपार्टी एक बनती हुई है। अन्ना हजारे जैसे लोग भी दलीय राजनीति से बाहर रहें तो उसमें भी कोई गलत नहीं है। कुछ लोगों को अभी भी राजनीति से बाहर रहना चाहिए। आंदोलन अराजनीतिक तो कभी होता है नहीं है। राजनीति में हस्तक्षेप करने का समय आया है।

- दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय आम आदमी पार्टी में शामिल होकर राजनीति की राह क्यों नहीं चुनी? क्या दिल्ली के नतीजों के बाद 28 सीटें आने के बाद ही पार्टी क्यों ज्वाइन की? लोकसभा में क्यों ज्वाइन किया?
मेधा पाटकर : मैं तो वहां जो प्रक्रिया चल रही थी, उसकी गवाह थी, क्योंकि उनसे बातचीत होती रहती थी। उन्होंने 31 कमेटियां बनाई थीं, जिसके आंदोलन के कई सारे साथी थे। मैं आंदोलन में व्यक्तिगत नहीं हूं बल्कि कई सदस्य और संस्थाएं हैं। हमने लोकतांत्रिक तरीके से यह निर्णय लिया है। हमने पहले निर्णय लिया था कि हम बाहर ही रहेंगे। हमने कभी इन्हें धिक्कारा नहीं था।

हमने पहले समर्थन की सोचा था, लेकिन फिर इसमें यह सहमति बनी कि हमें भी उम्मीदवार के रूप में कुछ लोगों कोखड़ा होना चाहिए, अगर सत्ता की ग्लैमर की बात होती तो हम कबसे राजनीति में आ जाते। सत्ता में आने की ‍प्रक्रिया सही चल रही है। आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने बाद भी आंदोलनों से उभरे हुए मुद्दों पर ही निर्णय लिया है, जैसे पानी, शिक्षा, कांट्रेक्ट लेबर का हो, एफडीआई का हो। पार्टी सही व्हीकल प्रोवाइड कर रही है। इससे जुड़ने में कोई बुराई नहीं है।

- केजरीवाल के दिल्ली इस्तीफे से दिल्ली में लोगों में आम आदमी पार्टी के प्रति भरोसा टूटा है? वे इसे शहादत नहीं मान रहे हैं? लोकसभा चुनाव की महत्वाकांक्षा के चलते आपने दिल्ली की सत्ता छोड़ी? क्या केजरीवाल का इस्तीफे का‍‍ निर्णय गलत था?
मेधा पाटकर : मुझे नहीं लगता कि यह निर्णय गलत था, इसलिए क्योंकि स्थिति ऐसी बनी थी। इस्तीफे के पीछे एक पूरा विश्लेषण था। तीन‍ विधायकों ने समर्थन नहीं देने का निर्णय लिया था। लोकसभा का चुनाव केवल महत्वाकांक्षा की दृष्टि से नहीं है, क्योंकि लोगों की आकांक्षा है कि देश बदले। दिल्ली में 49 दिन जो करके दिखाया, वह एक झलक थी। वह 50 साल में दूसरी पार्टियां नहीं कर सकीं।

- क्या ऐसा नहीं होता कि आप अविश्वास प्रस्ताव आने देते? मुख्यमंत्री रहते हुए लोकसभा चुनाव लड़ते?
मेधा पाटकर : समय कम था, कैसे लड़ सकते थे। दो-चार आगे-पीछे हो जाते हैं, भाजपा-कांग्रेस चाहते थे कि कठपुतली की तरह हम वहां रहें। पहली बार ऐसा हुआ कि युवा मुख्यमंत्री को बोलने नहीं दिया गया। कांग्रेस-भाजपा का गठबंधन ऐसे कई मौकों पर होता है। भ्रष्टाचारी मुद्दे पर जैसे संसदन में दिखाई दिया था अन्ना आंदोलन के समय वैसा दिखाई दिया। इससे लोगों को कई बातें समझ में भी आईं। राष्ट्रीय स्तर पर तो हस्तक्षेप करना ही था, इसमें कोई दो राय नहीं थी। वहां अगर बैठे रहते तो नेतृत्व कमजोर होता। कठपुतली बने रहना ठीक नहीं था। आम आदमी पार्टी से लोगों की अपेक्षा रही है, इसलिए टीका-टिप्पणी करते हैं।

- लोकसभा चुनाव में कितनी सीटों का अनुमान हैं?
मेधा पाटकर : अनुमान सीटों का नहीं है। अनुमान समर्थन का है। हमें देशभर में पुरजोर समर्थन मिलेगा। कहीं ‍पार्टी के विरुद्ध भी वोटिंग होगी। ईमानदार लोग वोट देंगे तो हमें इसका अंदाजा तो लगेगा कि देश में कितने लोग ईमानदार हैं।
अनिल त्रिवेदी - जनता मोहभंग की प्रक्रिया से गुजर रही है। आप देखेंगे कि कांग्रेस और भाजपा की सीटें दो अंकों में सिमट जाएंगी।

- आपको नहीं लगता कि ज्यादा लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए और तैयारी उतनी नहीं थी? पार्टी का नेटवर्क भी अभी तैयार नहीं हुआ और कुछ उम्मीदवार अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं?
मेधा पाटकर : पार्टी की एक रणनीति होती है, मायावती, ममता इतने कम प्रतिशत वोट मिलने के बाद भी कितने उम्मीदवार खड़े करती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर हस्तक्षेप कैसे हो।

वृजेंद्र झाला : लोग आम आदमी पार्टी को क्यों वोट दें?
अनिल त्रिवेदी : आम आदमी पार्टी को लोगों को वोट नहीं देना चाहिए। लोग आम आदमी पार्टी में अपनी आकांक्षाएं, अपने अपने असंतोष को का समाधान देख रहे हैं। इंदौर में लोग अपने आपको वोट देगा, किसी राजनीतिक पार्टी को नहीं देगा।

शराफत खान : मेधाजी क्या आपको राजनीति में और पहले नहीं आ जाना चाहिए था?
मेधा पाटकर : मुझे इसका कोई पछतावा नहीं है। पहले आ भी सकते थे। योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण पहले भी राजनीति में आने का कह चुके हैं। उस समय देश की मानसिकता ऐसी बनी नहीं थी। आंदोलन के बाद भी मुझे इसमें एक मार्ग दिखाई दी। हम हार-जीत के लिए राजनीति में नहीं आते हैं।
शराफत खान : पार्टी भी मायने रखती थी? आपको लगा कि आम आदमी पार्टी बेहतर पार्टी है तब मैं आऊं?
मेधा पाटकर : बाकी पार्टियों ने हमारा एजें‍डा सही दिल से उठाया ही नहीं। आप के तौर-तरीके भी आंदोलन की तरह ही रहे। कांग्रेस सेक्यूलर होकर भी हमारे जैसे आंदोलनों को लेकर कभी घोषणा पत्र तैयार नहीं किया। आप ने आंदोलनों का आव्हान किया।

नृपेंद्र गुप्ता : आपका जो लोकसभा क्षेत्र है, मुंबई उत्‍तर-पूर्व उसके लिए आप क्‍या करेंगे?
मेधा पाटकर : नर्मदा बचाओ आंदोलन से हमारे दो अन्‍य कार्यकर्ता भी खड़े हुए हैं न। कैलाशजी बड़वानी खरगोन से और आलोक अग्रवाल खंडवा से। हमारा एक सामूहिक नेतृत्‍व होगा, नर्मदा बचाओ आंदोलन का कार्य भी असम से लेकर केरल तक चलता रहा उसके लिए भी हमने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर समन्‍व्‍यय स्‍थापित किया ही था। अब नया नेतृत्‍व खड़ा हो रहा है और होना ही चाहिए। हम सब अपने अपने कार्य निभाएंगे ही।

भीका शर्मा : शहरों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है, वहीं सीमांत कृषक जिसके खेत से नर्मदा कुछ किलोमीटर दूर है, पानी के अभाव में अपनी खेती नहीं कर पा रहे हैं। अब एक ओर तो आप इन दोनों लोगों को पानी देने की बात करते हैं, और दूसरी तरफ बड़े बांधों का विरोध करते हैं। अब बांध बनाए बिना किसान तक आप पानी कैसे पहुंचाओगे?
मेधा पाटकर : हमारी भूमिका यह है कि बड़े बांधों से शुरुआत नहीं की जा सकती है, क्‍योंकि यह वैज्ञानिक भी नहीं है।

सवाल : आने वाले चुनाव को लेकर क्या माहौल है?
अनिल त्रिवेदी : मुझे लगता है कि यह समूचे देश की राजनीति के लिए एक टर्निंग पॉइंट होगा। यह पुनर्जागरण हो रहा है, देश का पुनर्जागरण। जाने कितना यूथ अपना काम-धंधा छोड़कर, रोजी-रोटी छोड़कर, बड़े-बड़े पैकेजेस छोड़कर जिस तेजस्वीता और कमीटमेंट के साथ इस मूवमेंट में लगा हुआ है, यह देखने वाली बात है, आंख खोलने वाली बात है। यह अंदर की जो ऊर्जा है। युवाओं का मतलब भारत की ऊर्जा का प्रकटीकरण हो रहा है। मैं अपने जीवनकाल में इंदौर के 500 गांवों में जा चुका हूं। मैं 200 गांवों में जा ही नहीं पाया। उन गांवों में जब मैं गया तो मुझे आशंका थी कि यहां आम आदमी पार्टी का कोई शख्‍स नहीं होगा, लेकिन मैंने पाया कि वहां आम आदमी पार्टी का अस्‍तित्‍व पैदा हो चुका था।

लोगों के नजरिए से पॉलिटिकल प्रोसेस हमारे लिए बड़ा जटिल विषय है कांग्रेस और बीजेपी केवल आधा देश हैट वर्तमान संसद में भी 35 राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतकर आई है। कांग्रेस बीजेपी इनमें से दो हैं। इसके पहले भी क्षेत्रीय ताकतों का ही उदय हुआ है, पर दिल्‍ली की घटना के बाद एक नया पुनर्जागरण हुआ है, एक नई राष्‍ट्रीय राजनीति का उदय हुआ है, जिसे आकार देने का काम हिन्दुस्‍तान का आम आदमी कर रहा है। कोई नेता नहीं, बल्कि आम आदमी चुनाव लड़ रहा है। स्‍वराज्‍य की जो अवधारणा है, चुनाव लड़ने का जो तरीका है, उसे पूरा बदलकर चुनाव लड़ रहे हैं।

- लेकिन आम आदमी पार्टी में भी कई तरह के मतभेद हमें दिखाई दे रहे हैं, जैसे आपके प्रशांत भूषण कहते हैं कि आप कश्‍मीर में जनमत संग्रह करवा लीजिए और बाकी हश्र कश्‍मीर की जनता पर छोड़ दीजिए?
अनिल त्रिवेदी : केवल कश्‍मीर ही नहीं समूचा सीमांत भारत छोटे-छोटे दलों में बंटा हुआ है, वहां राष्‍ट्रीय दलों की उपस्थिति ही नहीं है. आप मणिपुर का उदाहरण लीजिए, कि ब्‍लैक कमांडो के दम पर आप मणिपुर को कब तक चलाएंगे। आपको सीमाओं की सुरक्षा के लिए भारत की सीमांत क्षेत्रों के नौजवानों की आकांक्षाओं को जानना होगा। आज अगर हिमालय पर रहने वाला कोई व्‍यक्‍ति यदि किसी बड़ी पार्टी से ताल्‍लुक नहीं रखता है, तो क्‍या हमें उसके सपने तोड़ने का अधिकार है। आप भारत की राजनीति को ज़रा खोलकर देखिए।

- आपकी पार्टी में पैसा लेकर टिकट देने की बातें भी सामने आईं। लोगों ने टिकट लेकर भी मैदान छोड़ा है?
अनिल त्रिवेदी : पैसे के बिना चुनावों की राजनीति भारत में आम आदमी पार्टी ने शुरू की है।

- विवाद आपकी पार्टी में भी हैं?
अनिल त्रिवेदी : विवाद तो होंगे ही। जीवन एक संघर्ष है और इसमें विवाद होना स्‍वाभाविक है।

- आपकी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल उर्दू में लिखी टोपी को पहनकर मुसलमानों की बीच जाते हैं, इस तरह की राजनीति को कांग्रेस और बीजेपी भी करती आई है?
मेधा पाटकर : यदि आप किसी भी सम्‍प्रदाय या भाषा बोलने वाले लोगों के बीच जाते हैं, तो उनकी भाषा में उनसे कम्‍युनिकेशन करना कोई बुरी बात नहीं है।

- आपका देश विदेश में नाम है, लेकिन पार्टी आपका राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग क्यों नहीं कर रही है? पोस्टर पर अरविंद केजरीवाल ही दिखाई देते हैं, जबकि आपको तो दुनिया भर में बड़े आंदोलनकारी के रूप में जाना जाता है? आप सहित आम आदमी पार्टी के अन्य नेता पोस्टरों से गायब क्यों हैं?
मेधा पाटकर - मैं इस प्रकार के संतुलन की बात नहीं मानती। अरविंद जी पार्टी के संयोजक हैं और पार्टी में सभी अपना योगदान दे रहे हैं। पार्टी में कोई एक नेता नहीं है, हम इसी नेतागिरी को ही खत्म करने आए हैं। चेहरा एक हो या अधिक, इससे फर्क नहीं पड़ता, सभी अपना योगदान दे रहे हैं और निर्णय भी ले रहे हैं।


- विवाद तो आपकी पार्टी में भी हैं?
अनिल त्रिवेदी : विवाद तो होंगे। जीवन संघर्ष है, संघर्ष पर विवाद होगा। इतने सालों की सामंतशाही, इतने सालों की जड़ता। उनकी रगड़, रगड़ क्या ऐसे ही हो जाएगी। ‍पॉलिटिकल प्रोसेस में कितनी रगड़ है इस समय हिन्दुस्तान के अंदर, आप देखिए तो सही। हिन्दुस्तान में क्या हो रहा है।

- जहां आप एक तरफ अलग तरह की राजनीति की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल उर्दू में लिखी टोपी को पहनकर मुसलमानों की बीच जाते हैं, इस तरह की राजनीति को कांग्रेस और बीजेपी भी करती आई है?
अनिल त्रिवेदी : देखिए, यह सो कॉल्ड स्लोगन के ऊपर मत जाइए। ये तो हो रहा है होने दीजिए। इसका भी बदल होगा।

- बदल होगा आप कह रहे हैं, ये बदल कौन करेगा? आम आदमी पार्टी नहीं बदलेगी तो कौन बदलेगा?
अनिल त्रिवेदी : यह समुद्र मंथन चल रहा है, इसमें जहर भी निकलेगा, इसमें अमृत भी निकलेगा।

मेधा पाटकर : किसी भाषा जानने वाले के साथ आपको संवाद करने हैं तो उस भाषा में बोलना, लिखना, इसमें क्या गलती है।
अनिल त्रिवेदी : मेधा पाटकर आज कनाड़िया में भाषण देकर आई तो कोई यह सवाल नहीं उठाएगा कि मेधा पाटकर ने हिन्दू गांव के अंदर में भाषण क्यों देकर आई और शाजिया यदि चंदन नगर में भाषण देती है तो एकदम सवाल उठा दिया जाता है।

- क्योंकि मुसलमान को एक वोट बैंक के रूप में देखा जा रहा है और देखा जाता रहेगा?
अनिल त्रिवेदी : आप हिन्दू-मुसलमान के रूप में क्यों देखते हैं व्यक्तिनिष्ठ देखिए।
मेधा पाटकर : आज जो अस्तित्व है अलग-अलग समाजों का, उसको उल्टे हम मान रहे हैं। हम मान रहे हैं कि धर्म का एक स्थान है। हम मान रहे हैं कि जाति भी आज अस्तित्व में है, पर हम जातिवाद नकारते हैं।

अनिल त्रिवेदी : जनता मोहभंग की प्रक्रिया से गुजर रही है। पैसा,जाति-धर्म के समीकरण आने वाले चुनावों में ध्वस्त होते दिखाई देंगे और मैं कभी भी संख्या की बात नहीं करता, मैं संख्या की बात नहीं करता पर आने वाली जो सरकार बनेगी, उसकी सूत्रधार कांग्रेस-भाजपा नहीं होगी, यह बिलकुल स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

भीका शर्मा : अभी आपने कहा कि इंफोसिस चेंज नहीं लाएगा, टीसीएस चेंज नहीं लाएगा। अभी तक अडानी-अंबानी की बात चलती थी, अचानक आप इंदौर गए और आपने इंफोसिस की बात कर दी? क्या आपको लगता है कि बिना इंडस्ट्रीलाइजेशन के आप बल्क में इम्प्लायमेंट जनरेट कर पाएंगे? दूसरा बात यदि आप इंडस्ट्रीलाइजेशन नहीं करेंगे जो आप आम आदमी को सुविधा दे रहे हो, उसके लिए रेवेन्यू कहां से आएगा?

अनिल त्रिवेदी : देखिए, इंडस्ट्रीलाइजेशन की समझ का अंतर है। जो इंटरप्रेन्योरशिप इंदौर के आम आदमी के अंदर है, वह जितना प्रोडक्शन कर रहा है, उसे कोई मदद नहीं करना चाहता है, उसे उपेक्षित रखना चाहते हैं। वह एजें‍डे में नहीं है और आप इंतजार करने वाले इंडस्ट्रीयलाइज़ेशन की बात कर रहे हैं, सुनिए, मैं भी कह रहा हूं, मैं आपकी बात समझ गया। आप जो कह रहे हैं कि मैंने नारायण मूर्ति पर बात की है, वह आईटी पार्क बना रखा है, विकास के खंडहर जैसा, कोई वहां कंपनियां आना नहीं चाहती हैं।

भीका शर्मा : आपने इंफोसिस का नाम लिया, आपने नारायण मूर्ति का नाम लिया? आप नहीं चाहते कि इंफोसिस इंदौर आने के विरोधी हैं क्या?
अनिल त्रिवेदी : विरोधी का सवाल नहीं है, मैं प्रॉयरिटी की बात कर रहा हूं। 80 इंजीनियरिंग कॉलेज इंदौर के अंदर है, उसकी क्वालिटी ऑफ एज्यूकेशन कैसी है, क्यों कैंपस उसके अंदर नहीं आना चाहती हैं। क्यों युवा बेरोजगार हैं।

जयदीपजी : आम आदमी पार्टी के लड़ाई भ्रष्टाचार के विरुद्ध थी, वह मोदी के खिलाफ कब बन गई?
मेधा पाटकर, अनिल त्रिवेदी : मोदी तो भ्रष्टाचार के प्रतीक हैं। मोदी अपने आप से डरे हुए हैं। अंबानी और शीला दीक्षित के खिलाफ केस दर्ज करवाया है। हमने सरकारों के भ्रष्टाचार के खुलासे किए हैं महाराष्ट्र में आदर्श का घोटाला निकाला है। शरद पवार का लवासा घोटाले का खुलासा किया है।

जयदीपजी : अमेठी और रायबरेली से ज्यादा ध्यान आपका बनारस पर है?
मेधा पाटकर, अनिल त्रिवेदी : ऐसा कोई कारण नहीं है। हम सभी जगह लड़ रहे हैं। मोदी मीडिया में यह बहस तो चलवाते हैं कि वे देश के अगल प्रधानमंत्री होंगे, लेकिन यह बहस नहीं चलवाते हैं कि गुजरात का मुख्यमंत्री कौन होगा। राजनीति कांग्रेस और भाजपा की बपौती नहीं है।

- मोदीजी यह कहते हैं कि सरदार सरोवर बांध से गुजरात में खुशहाली आई हैं, क्या सचमुच खुशहाली आई है?
मेधा पाटकर : आप कच्छ के लोगों से पूछिए। मोदी ने पानी के नाम पर लोगों को फंसाया। मोदीजी ने पानी पहले अडाणी जैसी कंपनियों को दिया। कच्छ के लोग आम आदमी पार्टी का झंडा लेकर खड़े हुए हैं। प्यास बुझाने का पानी केवल विज्ञापन में दिखाया। योजना में बदलाव कॉर्पोरेट्‍स के पक्ष में लाए। इसी कारण अडाणी जैसी कंपनी को हजारों करोड़ रुपए 17 साल में कमाना संभव हुआ। नर्मदा के कमांड क्षेत्र की 4 लाख हैक्टेयर जमीन कमांड के बाहर लाने का फैसला किया। मप्र में ‍नर्मदा-शिप्रा लिंक योजना से औद्योगिक क्षेत्र में पानी लाना चाहते हैं, यह ओंकारेश्वर परियोजना में पहले था ही नहीं।

- आम आदमी पार्टी और आपके आंदोलन को विदेशी फंडिंग मिलती है?
मेधा पाटकर : नर्मदा बचाओ आंदोलन फॉरेन फंडिंग नहीं लेता है। हमने विदेशी अवॉर्ड भी लौटा दिए। अडाणी के ‍सीईओ ने यह मुद्दा उठाया था। वे सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट में हार गए और कास्ट पे करनी पड़ी। तब मोदीजी ने तत्कालीन गृहमंत्री आडवाणी ने पत्र लिखा कि इस बारे में पत्र लिखा। गृह मंत्रालय से दो बार जवाब दिया गया दो बार जांच की। इसमें कोई गैरकानूनी ‍नहीं निकला। जो एनजीओ फॉरेन फडिंग लेना चाहते हैं, उनके लिए नीति-‍नियम हैं। परिवर्तन से पार्टी का काम नहीं चलता है, यह बात अन्ना आंदोलन के समय उठी थी।

- अन्नाजी ने आरोप लगाया था कि मेरे नाम से सिम निकालकर फंडिंग की? इसके बारे में चिट्ठी भी लिखी और प्रेस कॉन्फ्रेंस में विवाद भी हुआ?
मेधा पाटकर : उसमें तो गैर उपयोग करने की मंशा नहीं थी। अन्नाजी के यहां भी कुछ लोग थे जिन्होंने सिम बनाकर बेची थी। आंदोलन में लगता है कि प्रचार-प्रसार के नए तरीके निकालने चाहिए, उसी प्रकार से किया था, उसको अन्यथा लेना अन्नाजी के लिए भी जरूरी नहीं था और वह उन्होंने लिया भी नहीं होगा, यह अच्छी बात हुई। अगर कुछ एनजीओ ने लिया होगा तो ट्रांसपेरेंसी और अकाउंटेबिली, उसका कानूनी दायरा, तो कोई कुछ नहीं, आज तो आज तक उनको जेल भेजते। पार्टी ने भी जो किया है, अन्य पार्टी से ज्यादा पारदर्शी से किया है। आज मोदीजी के प्रचार पर आंकड़ा आया है अखबारों में 12 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए, उसका तो हिसाब नहीं है।

- मोदीजी तो कह रहे हैं उसकी जांच करा लो?
मेधा जी : वे स्रोत बताएं ना। हम सत्ता में आए तो वह जांच कराएंगे ही।

- मेधा पाटकर एक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय छवि का व्यक्तित्व है, जिन्होंने देशभर इतनी बड़ी लड़ाई लड़ी, लेकिन आम आदमी पार्टी में उनको वह फुटेज और प्रचार में नहीं मिल रहा। राष्ट्रीय पोस्टरों-स्लोगन में अरविंद केजरीवाल के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता? आपको नहीं लगता कि राष्ट्रीय स्तर पर आम आदमी पार्टी को आपको बेहतर उपयोग करना था?
मेधा पाटकर: नहीं लगता, कोई दिक्कत नहीं। वे संस्थापक हैं पार्टी के। हम संगठन की अनुशंसा मानने वाले लोग हैं।

- एक तरफ आप कहते हैं कि मोदी एक व्यक्ति के रूप में लड़ते हैं। सोनिया गांधी कांग्रेस का रिमोट कंट्रोल है। आप कहते हैं कि हम सारे लोगों को साथ लेकर चलते हैं फिर सारे लोग पोस्टर पर साथ क्यों नहीं दिखाई देते हैं। सारे नेता आपके पोस्टरों में क्यों दिखाई नहीं देता। अरविंद केजरीवाल के साथ मनीष सिसौदिया, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, मेधा पाटकर के चेहरे दिखाई देते तो लगता कि यह पार्टी सबके साथ लेकर चलती है?
मेधा पाटकर : धीरे-धीरे हो जाएगा, जैसा जिसका योगदान होगा। बाद में जिसका जैसा योगदान होगा, वैसा उनके साथ होगा। मुझे लगता है कि यह साजिश है। आप ऐसा कहकर हममें दरार नहीं डाल सकते हैं। आम आदमी पार्टी में कोई नेतागिरी नहीं है। एक का चेहरा हो या दस का चेहरा हो कोई फर्क नहीं पड़ता है।

- आम आदमी पार्टी आंतरिक रूप से उतनी लोकतांत्रिक है, जितनी बाहरी लगती है? अरविंद केजरीवाल जो निर्णय लेते हैं, वहीं पार्टी का निर्णय होता है।
मेधा पाटकर : होनी पड़ेगी और होगी। अभी अरविंद केजरीवाल वाराणसी में लगे हुए तो पार्टी में डिसीजन नहीं होते क्या। अभी उम्मीदवार चुनने का काम किया, अलग-अलग कमेटी बनाकर निर्णय किए गए।