आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल जब पिछली बार बनारस आए थे और बेनियाबाग में सभा की थी, तब भी मोदी समर्थकों ने उन्हें काले झंडे दिखाए थे, स्याही फेंकी थी। अब वे दोबारा यहां आकर टिक गए हैं और मतदान तक कहीं नहीं जाने वाले। उन पर हमले अब और तेज हो गए हैं। दो दिन में दो बार उनका विरोध हुआ है। वे जहां भी गए हैं, उन्हें काले झंडे दिखाए गए हैं।
मजे की बात यह है कि बनारस के आम आदमी के मन में केजरीवाल का विरोध नहीं है। विरोध करने वाले पोलिटिकल मोटिवेटेड हैं, भाजपा के लोग हैं। इस तरह के विरोध का शायद मकसद यह है कि केजरीवाल और उनके समर्थकों का हौसला तोड़ा जाए, मगर हो उल्टा रहा है। इस तरह की गुंडागर्दी से केजरीवाल के प्रति सहानुभूति बढ़ रही है। साथ ही वे मीडिया में भी लगातार छाए हुए हैं। यहां का हर अखबार केजरीवाल की छोटी सी सभा को भी जितनी जगह देता है, उतनी जगह तो अजय राय की बड़ी सारी रैली को नहीं मिलती। नरेंद्र मोदी तो खैर पहले पेज के आइटम होते हैं। सो अखबार में जहां लोकल खबरें होती हैं, वहां सिर्फ केजरीवाल ही छाए हुए हैं।
केजरीवाल को मेहमूरगंज में एक मकान चुनाव के केंद्रीय कार्यालय के रूप में मिल गया है। यहां दरी पर बैठकर अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के तमाम बड़े नेता मीटिंग करते हैं। दूसरे दिन जब फिर अरविंद पर हमला हुआ तो प्रचार रोक कर यहीं मीटिंग चली। इस मकान में एसी नहीं है, कूलर नहीं है। कुछ कमरों में पंखे हैं। कुछ में वो भी नहीं है।
अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के बड़े नेता जिस जगह पर मीटिंग कर रहे हैं, वहां पंखा होते हुए भी नहीं चलाया जा रहा। सब पसीने से लथपथ हैं, मगर चेहरे पर शिकन तक नहीं है। बातचीत का विषय है अजय राय। अरविंद केजरीवाल के पास सारे आंकड़े हैं कि अजय राय के पास कितने भूमिहार वोट हैं और कितने खिसक चुके हैं। मीटिंग में कोई भी जा सकता है। कुछ कार्यकर्ता मीटिंग में जाने से रोकते हैं, मगर फिर चले जाने देते हैं। सुरक्षा जैसी कोई चीज़ कहीं नहीं है।
अगर कोई मोदी समर्थक चाहे तो इनके घर में आकर इन पर स्याही या कुछ और फेंक सकता है। यही आम आदमी पार्टी की सादगी है। नीचे ढेर सारी पुलिस है, मगर उनसे कोई काम नहीं लिया जा रहा। अपनेराम भी उस मीटिंग में हो आए हैं, देर तक खड़े-खड़े स्ट्रेटजी सुनते रहे। किसी को कोई एतराज नहीं हुआ। इसके बरखिलाफ अमेठी में स्मृति ईरानी ने टोक दिया था कि ये तो भाजयुमो कार्यकर्ताओं की इंटरनल मीटिंग है, इसमें मीडिया का क्या काम?
इसी मकान में टिके हुए हैं बाहर से आए कुछ कार्यकर्ता। लड़कियों की संख्या भी कम नहीं है। सबके सब सियासी कार्यकर्ता कम और एक्टिविस्ट ज्यादा नजर आते हैं। अभी हजारों की तादाद में कार्यकर्ता और आने वाले हैं। अरविंद जहां भी जाते हैं, मीडिया और आम लोगों की भीड़ लग जाती है। बनारस में मोदी के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। केजरीवाल के साथ वो जो कर रहे हैं, उसका उल्टा असर हो रहा है।