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बेबस राजनीति

बेबस राजनीति - daddu ka darbar
दद्दू का दरबार... 


प्रश्न : दद्दू, सत्ताधारी और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रादेशिक और राष्ट्रीय नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर अशिष्ट भाषा में लगाए गए आरोप-प्रत्यारोप, टीवी-मीडिया द्वारा आयोजित बहसों में इन दलों के प्रवक्ताओं की कर्कश चिल्लपो, अमीरी-गरीबी के बीच लगातार बढ़ती खाई, सुरसा की तरह मुंह फैलाता भ्रष्टाचार, भ्रष्ट नेता-अधिकारियों का आपसी स्वार्थ हेतु गठबंधन, राजनीति का अपराधीकरण, जनता का अहम हिस्सा बनकर बैठे देश के संसाधन लूटते अनेक स्वार्थी और लालची लोग। इन सबके बीच फंसी वर्तमान राजनीति की स्थिति को देखकर क्या आपको कोई कहावत याद आती है? 
 
उत्तर : बस यही कि ‘रजिया फंस गई गुंडों में’।