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Written By WD

तेरा जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना

विशाल मिश्रा

तेरा जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना -
दीये जलते हैं, फूल खिलते हैं
बड़ी मुश्किल से मगर
दुनिया में दोस्त मिलते है

FILE
तीन-साल साल के बच्चों से लेकर 65-70 तक की आयु के वृद्धजन को निराशा से मुक्त कर खिलखिलाते हुए देखा है मैंने उसे। बच्चों को टॉफी खिलाकर, उनके साथ खेलकर और उदास बुजुर्गों को सभी ओर की दुख-तकलीफों का हवाला आदि देकर जब उनसे सकारात्मक बातें करता तो वह भी खिलखिलाकर हंस पड़ते और उसे ले जाकर चाय पिलाने को भी राजी हो जाते।

एग्जाम के दिनों में भी कोई भी टफ पेपर हो। ना ही खुद टेंशन करता और हमारे से भी उसे कोसों दूर रखता। बोलता सब हो जाएगा यार देख लेंगे। 4-5 सेक्शन याद कर लेते हैं 2 क्वेशन का रट्‍टा लगा देते हैं। वो देखो एक वो बैठा है कैसा पागल हो रिया है किताब में घुस-घुसकर। अभी तक उसने खाना भी नहीं खाया। कल देखना पेपर के बाद सबसे ज्यादा यही रोएगा।

साइकिल में हवा भी भराने जाएंगे तो पहले पुरानी हवा निकाल देंगे। पूछें क्यों। हवा पूरी नई भरो। पैसे तो 50 पैसे लेगा ही सही तो फिर हवा आधी क्यों भरें। व्यक्तित्व इतना शानदार कि बीटेक करने वाला इंजीनियरिंग का छात्र और आईआईएम के लिए क्लियर करने वाले छात्रों से उसकी दोस्ती थी। अधिकतर समय उनके साथ ही बीतता था। जबकि वह खुद मात्र जैसे-तैसे ग्रेजुएशन ही कर सका था।

शादी के 4-5 वर्ष बाद भी उसे डैडी बोलने वाला कोई नहीं था। परंतु कभी उसके चेहरे पर शिकन नहीं देखी। ऐसे हंसमुख और खुशमिजाज व्यक्ति को टेंशन के कारण हर्ट अटैक आया हो कोई नहीं मानेगा। लेकिन पता नहीं उस मनहूस दिन 11 मई को क्या मंजूर था। सुबह स्वीमिंग पूल गया। वहां से लौटकर हाथ-पैर में दर्द होने का बोलकर बिस्तर पर लेट गया।

एक घंटे बाद उठा। आराम नहीं पड़ने पर भाभी (पत्नी) ने टेबलेट दी। बमुश्किल आधे घंटे बाद बेचैनी की शिकायत करने लगा। नजदीक के क्लीनिक पर ले गए। डॉक्टर ने मौके की नजाकत को देखते हुए उसका ईसीजी कर बताया मेजर अटैक है और तुरंत बड़े अस्पताल ले जाने को कहा। जैसे-तैसे भाभी जी ने खुद को संभाला और साथ में टैक्सी में ले गए।

लेकिन अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों ने उसके न रहने की बुरी खबर सुनाई। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि आधे घंटे पहले अच्छा-भला घूम रहा विकास हम सबको छोड़कर इतनी दूर जा चुका था जहां से लौटकर कोई नहीं आता।

हम तीन दोस्तों में से एक विकास। कहीं भी हम घूमने जाते जगह भी समझ नहीं पड़ती तो वहीं से फोन कर उसकी सलाह लेते। या जब वह ऑफिस में होता कंप्यूटर पर कोई भी दिक्कत आई या नेट संबंधी परेशानी आएगी। तुरंत फोन लगाएगा यार ये प्रिंट कैसे लूं। इसका इमेज कैसे बनाऊं। आदि आदि। अब साथ हैं तो केवल उसके साथ बिताए लम्हे, तरह-तरह की बातें, हंसी-ठहाके, मल्टी की छत पर लेटकर आधी-आधी रात तक गाने सुनना आदि।

एक बार तो किसी बात पर कहा-सुनी भी हो गई। वह तो नाराज हुआ और मैं भी। मेरेको गुस्सा इसलिए आया ‍कि बात जरासी है और वह उसको गलत वे में ले रहा है। उसने मुझे कुछ कहा इसका मुझे बुरा नहीं लगा। लेकिन वह बुरा मान रहा है इससे मैं नाराज था, खैर रात में खूब कहा-सुनी हो गई। सुबह कॉलेज के एन्युअल फंक्शन में जाना था। मैंने सोचा चलता तो हूं उसके घर साथ लेने उसे, जो होगा देखी जाएगी।

जाते ही उसको उठाया, मैंने कहा चलो फंक्शन में चलना है। तो बोलता हां यार चलना तो है। क्या टाइम हुआ। फिर बोलता रात में जो हुआ उसके लिए सॉरी।

ऐसा था हमारा रॉयल और लॉयल फ्रेंड विकास उर्फ विक्की।

अहमद फ़राज़ का शेर है -

खरीद सकते तो उसे अपनी ‍ज़िंदगी देकर खरीद लेते फ़राज़
मगर कुछ लोग क़ीमत से नहीं किस्मत से मिला करते हैं