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Last Updated : मंगलवार, 12 जून 2018 (00:03 IST)

FIFA WC 2018 : रूस में कौन बनेगा 'ठोकर की दुनिया' का बादशाह?

FIFA WC 2018 : रूस में कौन बनेगा 'ठोकर की दुनिया' का बादशाह? - FIFA World Cup 2018
विश्व कप फुटबॉल यानी रोमांच की हदों को पार करने वाला एक ऐसा उत्सव, जिसकी दीवानगी समूचे विश्व को अपने आगोश में भर लेती है। महीनेभर तक दुनिया के हर खेलप्रेमी की निगाह उस छोटे से मैदान में होने वाले रोमांच में सिमटकर रह जाती है, जहां हर दिन सनसनी होती है, दिलों की धड़कनें तेज होती हैं और पसंदीदा टीम के हार जाने पर आंसू बह निकलते हैं। विश्व की सर्वश्रेष्ठ 32 टीमें रूस में 14 जून से शुरू होने जा रहे विश्व कप फुटबॉल के 21वें संस्करण के लिए अपने जूतों के लैस कस चुकी हैं। दुनिया के इस अनूठे महामेले से ठीक 72 घंटों के बाद पर्दा उठने ही वाला है।
 
 
वंशजों की खोपड़ी से ही खेलना सीखा फुटबॉल : हर विश्व कप नए सितारों को जन्म देता है और पुराने सितारों को श्रेष्ठता की कसौटी पर तौलता है। मैच के कई यादगार लम्हें इतिहास बनते हैं, सो अलग। इस विश्व कप की बात की जाए तो पूरी दुनिया एक तरफ होगी और दूसरी तरफ होगी लैटिन अमेरिका की दो टीमें- ब्राजील और अर्जेंटीना। यदि लैटिन अमेरिकी दंतकथाओं को जरा सा भी मान लिया जाए तो यह बात सिद्ध हो जाती है कि मनुष्य ने पहली बार फुटबॉल अपने वंशजों की खोपड़ी से ही खेलना सीखा था।
मायंस के काल में फुटबॉल का आविष्कार हुआ : ग्वाटेमाला, मैक्सिको और पेरू की सीमा के बीच अमेजन के घने जंगलों में आज से हजारों वर्ष पहले दक्षिण अमेरिका की 3 सभ्यताएं पनपीं। पहली थी मायंस, दूसरी इंका और तीसरी एजटेक। इतिहास गवाह है कि मायंस के काल में फुटबॉल का आविष्कार हुआ। तीनों सभ्यताओं के चिन्ह आज भी वर्तमान पेरू, कोलंबिया, ब्राजील, मैक्सिको, इक्वाडोर और कोस्टारिका में देखे जा सकते हैं।
 
फुटबॉल 'दिल' से भी खेला जाता है और 'दिमाग' से भी : आज भी हम ब्राजील या अर्जेंटीना का फुटबॉल देखते हैं या फिर यूरोपियन देश का फुटबॉल देखते हैं, तो फर्क तत्काल समझ में आ जाता है कि फुटबॉल 'दिल' से भी खेला जाता है और 'दिमाग' से भी। जो सभ्यता दक्षिण अमेरिका में पनपी थी, उसी का नतीजा है कि ब्राजीलियन और अर्जेंटाइन नाचते-गाते दर्शकों की उपस्थिति के बीच वैसा ही 'टच फुटबॉल' खेलते हैं, जो हम सिर्फ सपनों में ही सोच सकते हैं। गोल करना किसी भी फुटबॉलर कर लक्ष्य होता है, किंतु विपक्ष के किसी खिलाड़ी को छुए बगैर किस प्यार से गोल किया जाता है, यदि इसे सीखना हो तो आपको सीधे दक्षिण अमेरिका ही जाना होगा।
पेले ने सीख ली थी बाइसिकल किक से गोल मारने की कला : महान फुटबॉलर पेले ने ही ब्राजील की राष्ट्रीय टीम में आने से पहले सांतोस क्लब के लिए खेलते हुए 'बाइसिकल किक' से गोल दागना सीख लिया था। जगालो जैसे दिग्गज के साथ खेलते हुए पेले ने दुनिया को पहली बार लैटिन अमेरिकी फुटबॉल की झलक दिखला दी थी। पेले ब्राजील की उस टीम का हिस्सा थे जिसने 1958, 1962, 1970 के विश्व कप को जीतकर जूल्स रिमे ट्रॉफी हमेशा-हमेशा के लिए अपने पास रखने का सम्मान पाया था।
 
ब्राजील या अर्जेंटीना के बिना विश्व कप अधूरा : ब्राजील या अर्जेंटीना विश्व कप चैंपियन बने, यह चर्चा का विषय नहीं है। लेकिन यह भी अंतिम सच है कि कोई भी विश्व कप इन दो लैटिन अमेरिकी टीमों के बिना पूरा नहीं हो सकता। आज भी यह हालत है कि ब्राजील के तमाम खिलाड़ी यूरोप में खेलते हैं। इतिहास गवाह है कि इंग्लैंड (1966) और फ्रांस (1998) के बाद कोई भी यूरोपियन देश मेजबान होते हुए चैंपियन नहीं बन सका है।
ब्राजील ने 2002 में भरपाई की : 1994 में अमेरिका में हुए विश्व कप फाइनल में भी ब्राजील चैंपियन बना था जबकि 1998 में फाइनल में वह पेरिस में फ्रांस से हार गया था लेकिन उसकी भरपाई ब्राजील ने 2002 में जर्मनी को हराकर पूरी कर ली थी।
 
मेराडोना बन गए थे फुटबॉल के भगवान : यदि ब्राजील रिकॉर्ड 5 बार विश्व कप जीता है तो अर्जेंटीना भी पीछे नहीं रहा है। 1986 के मैक्सिको विश्व कप में चैंपियन बनने के बाद वह इटेलिया-90 के फाइनल में जर्मनी से अंतिम सेकंड में 0-1 से हार गया था, लेकिन यह वह विश्व कप था जिसने उस 'जीनियस' मेराडोना की बिगड़ी हुई छवि देखी थी, जो कि 1986 के विश्व कप के बाद 'फुटबॉल का भगवान' बन चुका था।
अर्जेंटीना ने इसके बाद भी अमेरिका से लेकर कोरिया-जापान तक (2002 विश्व कप) अपनी दावेदारी में कोई कमी नहीं आने दी। तब गैब्रियला बातिस्तुता और क्लाडियो कनीजिया जैसे धुरंधर स्ट्राइकरों की मदद से अर्जेंटीना ने यूरोपीय ताकतों को हिलाकर रख दिया था। अर्जेंटीना की महान फुटबॉल परंपरा पिछले विश्व कप (2014, मेजबान ब्राजील) तक जारी रही और जर्मनी से फाइनल में केवल 1 गोल से हारकर चैंपियन बनते-बनते रह गई।
 
जर्मनी सबसे प्रबल दावेदार : यूरोपियन देशों को देखें तो उसमें से मौजूदा वर्ल्डकप चैंपियन जर्मनी को छोड़कर कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह रूस में आयोजित 21वें विश्व कप को जीतने का हकदार है। फीफा रैंकिंग में नंबर 1 जर्मन टीम ने क्वालीफाइंग मुकाबलों में एक भी मैच नहीं हारा है। फुटबॉल के जानकार दिग्गज, आर्थिक विश्लेषक और सट्‍टा बाजार जर्मनी पर 9/2 का भाव लगा रहे हैं।
ये भी हैं खिताब के प्रबल दावेदार : जर्मनी के अलावा फीफा रैंकिंग में दूसरे नंबर की टीम ब्राजील को भी दावेदार माना जा रहा है। इन दोनों के अलावा 5वें नंबर की अर्जेंटीना, 7वें नंबर की फ्रांस, तीसरे नंबर की बेल्जियम, 10वें नंबर की स्पेन, चौथे नंबर की 4 पुर्तगाल और 12वें नंबर की इंग्लैंड टीम भी खिताब की दौड़ में शामिल हैं। 'ठोकर की दुनिया का बादशाह' कौन होगा, इसका फैसला तो 15 जुलाई की रात को ही सामने आएगा।
 
20 मुकाबलों में 9 खिताब लैटिन अमेरिकी देशों के पाले में : 40 के दशक में इटली 2 बार जीता और फिर उसे यह सौभाग्य 1982 के बाद सीधे 24 बरस बाद 2006 में जर्मनी में आयोजित विश्व कप में प्राप्त हुआ। दुर्भाग्य से इटली की टीम 21वें विश्व कप खेलने की पात्रता ही हासिल नहीं कर पाई है। इस विश्व कप से पहले खेले अब तक के 20 विश्व कप मुकाबलों में 9 खिताब लैटिन अमेरिकी देशों के पाले में ही गया है।
जर्मनी और स्पेन में टक्कर देने की कूवत : ब्राजील या अर्जेंटीना को यदि कोई यूरोपियन देश चुनौती दे सकता है उसमें सबसे पहला नाम जर्मनी व दूसरा नाम स्पेन का ही होगा। वैसे तो इंग्लैंड, हॉलैंड, क्रोएशिया, डेनमार्क भी इस दौड़ में शामिल हैं। स्पेन व जर्मनी के पास प्रतिभाओं का कभी अकाल नहीं रहा लेकिन दो समस्याओं ने इन दोनों टीमों का पीछा कभी नहीं छोड़ा। पहली फिटनेस और दूसरा दुर्भाग्य।
 
इंग्लैंड के साथ जुड़ा रहा दुर्भाग्य : इंग्लैंड के साथ भी 'दुर्भाग्य' ने चोली-दामन का साथ निभाया। 1966 में एक विवादास्पद गोल के बाद विश्व चैंपियन (इतिहास में सिर्फ 1 बार) बनने वाले इंग्लैंड ने अभी तक विश्व कप फाइनल में स्थान नहीं बनाया है। यह उस देश की त्रासदी का परिचायक है जिसकी प्रीमियर लीग दुनिया की सबसे महंगी और आकर्षक मानी जाती है फिर भी उसके स्टार खिलाड़ी स्पेन जाकर खेलना पसंद करते हैं।
6 लाख फुटबॉल के दीवाने बनेंगे गवाह : रूस में 14 जून से शुरू होने वाला फुटबॉल का यह महासमर 15 जुलाई तक चलेगा जिसमें दुनिया की सर्वश्रेष्ठ 32 टीमों के 736 खिलाड़ियों पर दुनिया के अरबों लोगों की निगाहें लगी होंगी। रूस के 11 शहरों के 12 खेल मैदानों पर होने वाले फुटबॉल घमासान को देखने के गवाह 6 लाख होंगे और दुनिया की पूरी आबादी के 70 से 80 प्रतिशत लोग किसी न किसी माध्यम से रोमांच के इस समुद्र में गोता लगाएंगे।