मैं पिता हो रहा हूं
धर्मेन्द्र पारे
सच पूछो तो इन दिनों मुझेसबसे बड़ा खतरा लगता हैअपने पिता हो जाने का।पिताजी जरा में खोल देते हैंसबके सामने कलेजा अपनासब ऊंच-नीच और वे बातें भीजो हैं घर-परिवार की।सच-सच बता देते हैं वेवे बातें भी, बताने में जिन्हेंहोती है शर्मिंदगी मुझे।मामला घर की माली हालत का होया हो बहू-बेटियों-बच्चों के चाल-चलन का।सच-सच बता देते हैं सबकोकि गांव में कौन-कौन है नंगाबेईमान के मुंह पर कह देते हैंसाफ-साफपर होती है मुझे अक्सर इससेबहुत दिक्कत।सधते काम कईबिगड़ जाते हैं पल भर में।पटवारी और बड़े हुक्कामबड़े दरवज्जे वाले पटेल औरमामा होटल वालाआता है जब भी मौकाजलती में खोंस देते हैं पूला।भुनभुनाते हैं पिता किइतना जुल्म, इतनी ज्यादतीसरासर अन्याय।उम्र के इस दौर तकमैं तो रहा दुनियादारजरूरत पड़ी तो किया सबको सलामजरूरत पड़ी तो सच को भी कहा झूठजरूरत पड़ी तो मिलाई हां में हांजरूरत पड़ी तो बोली कई बार जयजरूरत पड़ी तो निपोरे दांत भीजिनके लिए निकलती सदा गालीजरूरत पड़ी तो उन्हें भी कहा भैया प्रणाम।वे हत्यारे थे, वे अत्याचारी थे, वे थे सबसेखतरनाक।पर हुआ इधर क्या कुछकि होता नहीं ज्यादा सहनजो सोच भी नहीं सकताखड़ा हो जाता हूं उनके खिलाफमुंह फट जाता है चाहे जहांसूबेदार को कह आया-चोट्टे साले!और उस कलम वाले को-दल्ले!!खामियाजा भुगतता हूं फिर लगातारहोती है ग्लानिपत्नी कहती कि हो रही है बेटी अब बड़ीकुछ तो बनो दुनियादार।पिता की आदतें मेरे सामनेहॉरर फिल्म-सी दौड़ती हैं लगातार।खलनायक से लगते हैं पितामेरे वक्त के सफलतम दोस्तों,मैं पिता हो रहा हूं यानी समझते हो?