नए कृषि कानून को वापस लेने की मांग को लेकर किसानों के आंदोलन का आज 29 वां दिन है। सरकार और किसानों के बीच गतिरोध बना हुआ है और दोनों पक्षों के बीच बातचीत फिर से शुरु ही नहीं हो पा रही है। सरकार की ओर से कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल की ओर से भेज गए वार्ता के नए प्रपोजल के बाद अब संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से सरकार को बातचीत फिर से शुरु करने के लिए जवाब पत्र भेजा गया है।
-संयुक्त किसान मोर्चा का सरकार को भेजा गया जवाबी पत्र-
1-हमें अफसोस है कि इस पत्र में आपने यह पूछा है कि हमारा पिछला पत्र केवल एक व्यक्ति का मत है या कि सभी संगठनों का यही विचार है। हम आपको बता देना चाहते हैं कि डॉ दर्शन पाल जी के नाम से भेजा गया पिछला पत्र और यह पत्र संयुक्त किसान मोर्चा के इस आंदोलन में शामिल सभी संगठनों द्वारा लोकतांत्रिक चर्चा के बाद सर्वसम्मति से बनी राय है। इसके बारे में सवाल उठाना सरकार का काम नहीं है।
2-हमें बहुत दुख के साथ यह भी कहना पड़ रहा है कि भारत सरकार के अन्य कई प्रयासों की तरह आपका यह पत्र भी किसान आंदोलन को नित नए तरीकों से बदनाम करने का प्रयास है। यह किसी से छुपा नहीं है कि भारत सरकार पूरे देश के किसानों के शांतिपूर्ण, जमीनी और कानून सम्मत संघर्ष को अलगाववादियों और चरमपंथियों के रूप में पेश करने,संप्रदायवादी और क्षेत्रीय रंग में रंगने और बेतुका व तर्कहीन शक्ल में चित्रित करने की कोशिश कर रही है।
सच यह है कि किसानों ने साफगोई से वार्ता की है, लेकिन सरकार की तरफ से इस वार्ता में तिकड़म और चालाकी का सहारा लिया गया है। इसके अलावा, सरकार तथाकथित किसान नेताओं और ऐसे कागजी संगठनों के साथ समानांतर वार्ता आयोजित कर इस आंदोलन को तोड़ने का निरंतर प्रयास कर रही है जिनका चल रहे आंदोलन से कोई संबंध नहीं है।
3-हम हैरान हैं कि सरकार अब भी इन तीन कानूनों को निरस्त करने के हमारे तर्क समझ नहीं पा रही है। किसानों के प्रतिनिधियों ने तीन केंद्रीय कृषि अधिनियमों की नीतिगत दिशा,दृष्टिकोण,मूल उद्देश्यों और संवैधानिकता के संबंध में बुनियादी मुद्दों को उठाते हुए इन्हें निरस्त करने की मांग की है।
लेकिन सरकार ने चालाकी से इन बुनियादी आपत्तियों को महज कुछ संशोधनों की मांग के रूप में पलट कर पेश करना चाहा है। हमारी कई दौर की वार्ता के दौरान सरकार को स्पष्ट रूप से बताया गया कि ऐसे संशोधन हमें स्वीकार्य नहीं हैं। हम फिर साफ कर दें कि हम इस कानूनों में संशोधन की मांग नहीं कर रहे, बल्कि इन्हें पूरी तरह निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।
4-इन तीनों कानूनों के अलावा आपने न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जो प्रस्ताव भेजा है, उसमे ऐसा कोई भी स्पष्ट प्रस्ताव नहीं है जिसका जवाब दिया जाय। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आप "वर्तमान खरीद प्रणाली से संबंधित लिखित आश्वासन" का प्रस्ताव रख रहे हैं, जबकि किसान संगठन राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिश के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (सी2+50%) पर सभी फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। जब आप ऐसे कानून का ड्राफ्ट भेजेंगे तो हम बिना विलंब के उसका विस्तृत जवाब देंगे।
5-इसी तरह विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक के ड्राफ्ट पर आपका प्रस्ताव अस्पष्ट है और बिजली बिल भुगतान तक सीमित है। जब तब आप इस ड्राफ्ट में क्रॉस सबसिडी को बंद करने के प्रावधान के बारे में अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं करते, तब तक इस पर जवाब देना निरर्थक है। वायु गुणवत्ता अधिनियम पर "उचित प्रतिक्रिया" का आश्वासन इतना खोखला है कि उसका जवाब देना हास्यास्पद होगा।
6-हम आपको आश्वस्त करना चाहते हैं कि प्रदर्शनकारी किसान और किसान संगठन सरकार से वार्ता के लिए तैयार है और इंतजार कर रहे हैं कि सरकार कब खुले मन, खुले दिमाग और साफ नीयत से इस वार्ता की आगे बढ़ाए। आपसे आग्रह है कि आप निरर्थक संशोधनों के खारिज प्रस्तावों को दोहराने की बजाए कोई ठोस प्रस्ताव लिखित रूप में भेजें ताकि उसे एजेंडा बनाकर जल्द से जल्द वार्ता के सिलसिले को दोबारा शुरू किया जा सके।