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Written By समय ताम्रकर

चेन्नई एक्सप्रेस: फिल्म समीक्षा

चेन्नई एक्सप्रेस
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‘डोंट अंडरएस्टिमेट द पॉवर ऑफ कॉमनमैन’ यह संवाद शाहरुख खान ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में कई मर्तबा बोलते हैं, लेकिन चेन्नई एक्सप्रेस की टीम ने कॉमनमैन के कॉमन सेंस को अंडरएस्टिमेट करने की गलती कर दी है। लगता है कि शाहरुख खान दूसरे कलाकारों की इडली-डोसा छाप फिल्मों की सफलता को देख घबरा गए और उन्होंने भी उस लकीर पर चलने की कोशिश की। एंटरटेनमेंट के नाम पर कॉमन सेंस को किनारे रखा और नतीजे में ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ जैसी फिल्म सामने आती है, जिसमें मनोरंजन नामक इंजिन नहीं है।

इस फिल्म में शाहरुख ने अपने किरदार का ‘लकी’ नाम राहुल रखा, डीडीएलजे के सीन दोहराए, निर्देशक रोहित शेट्टी ने कारें उड़ाई, कॉमेडी के नाम पर आइटम्स रखें, आइटम सांग रखा, लेकिन सब बेकार। मनोरंजन के नाम पर जो हरकतें की गई हैं वो बिलकुल लुभाती नहीं है। यह फिल्म पूरी तरह से सपाट है।

कहानी बेहद साधारण है। राहुल (शाहरुख खान) को अपने दादा की अस्थियां रामेश्वरम में विसर्जित करना है। वह मौज-मस्ती के लिए गोआ जाना चाहता है, लेकिन अपनी दादी को चकमा देने के लिए वह मुंबई से चेन्नई एक्सप्रेस में सवार हो जाता है ताकि अगले स्टेशन से उतरकर वह गोआ की ओर चल पड़े।

जैसे ही ट्रेन चलती है, मीना (दीपिका पादुकोण) प्लेटफॉर्म पर दौड़ लगाती हुई आती है। राहुल अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसे बोगी में बैठा लेता है। पीछे तीन-चार लोग और आते हैं उनकी भी वह मदद कर देता है। बाद में उसे पता चलता है कि वो लोग गुंडे हैं और मीना का अपहरण कर गांव ले जा रहे हैं।

राहुल अपनी गलती पर शर्मिंदा होता है और मीना को बचाने की कोशिश में उसके गांव तक पहुंच जाता है। मीना के पिता गांव के डॉन रहते हैं और दूसरे गांव के एक डॉन से उसकी शादी करवाना चाहते हैं। मीना यह शादी नहीं करना चाहती है और राहुल को अपना प्रेमी बता देती है। इसके बाद राहुल और मीना भागते रहते हैं और डॉन के गुंडे उन्हें ढूंढते रहते हैं। मुंबई से रामेश्वरम की यात्रा में दोनों के साथ कई घटनाएं घटती हैं और प्रेम के बीज अंकुरित होते हैं।

इस कहानी में कई छेद हैं। रोहित शेट्टी की यह खासियत है कि वे प्रसंगों को इतना मजेदार रखते हैं कि दर्शक कहानी की कमियों को इग्नोर कर देता है, लेकिन चेन्नई एक्सप्रेस में रोहित का यह जादू नदारद है, लिहाजा बार-बार कमियों की ओर ध्यान जाता है। जैसे, दीपिका के गांव में जाकर शाहरुख फंस जाता है। मोबाइल उसके पास नहीं रहता। कही से मोबाइल का इंतजाम होता है तो उसे एक भी नंबर याद नहीं है। जबकि कितनी भी कमजोर याददाश्त हो, दो-चार नंबर तो याद रहते है।

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पुलिस उसकी नहीं सुनती क्योंकि वो डॉन से डरती है, लेकिन वह दूसरे गांव में रहने के बावजूद वहां की पुलिस की मदद नहीं लेता। उसकी कोशिश कभी यह नहीं दिखाती कि वह दीपिका के पिता के चंगुल से निकलने के प्रति गंभीर है।

चेन्नई एक्सप्रेस की एक ओर बड़ी खामी यह है कि दीपिका और शाहरुख को छोड़ कोई भी किरदार दमदार नहीं है। आमतौर पर रोहित शेट्टी ढेर सारे किरदारों को लेकर फिल्म बनाते हैं, लेकिन चेन्नई एक्सप्रेस में कैमरा शाहरुख-दीपिका पर इतना ज्यादा फोकस रहता है कि कोफ्त होने लगती है। किरदारों की कमी महसूस होती है।

फिल्म समीक्षा का शेष भाग... अगले पेज पर...


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फिल्म में ढेर सारे संवाद तमिल में हैं। रोहित जिन दर्शकों के लिए फिल्म बनाते हैं वे यह कभी नहीं चाहेंगे कि उन्हें हिंदी फिल्म में ज्यादातर संवाद तमिल में सुनने को मिले। यदि रोहित तमिलभाषियों को हिंदी बोलते हुए भी दिखा देते तो कोई हर्ज नहीं था। फिल्म की हीरोइन को तो उन्होंने हिंदी बोलते हुए दिखाया है जो तमिलभाषी है।

मसाला फिल्मों के रोहित शेट्टी काबिल निर्देशक माने जाते हैं। उन्हें पता रहता है कि किस मसाले का कब और कितनी मात्रा में उपयोग करना है, लेकिन चेन्नई एक्सप्रेस में उनका अनुपात गड़बड़ा गया है। इंटरवल के पहले उन्होंने मात्र एक गाना रखा है और दूसरे हिस्से में कई गाने हैं।

इस फिल्म से रोमांस भी नदारद है। शाहरुख खान रोमांस के बादशाह माने जाते हैं और कहानी की भी यह मांग थी कि मुंबई से रामेश्वरम्‍ की यात्रा के दौरान फिल्म के दोनों किरदारों में रोमांस पैदा किया जाए। लगभग दो-तिहाई से भी ज्यादा फिल्म गुजरने के दोनों किरदारों में प्रेम के बीज अंकुरित होते हैं, तब तक बात हाथ से निकल चुकी होती है। कई उटपटांग प्रसंग देख कर दर्शक थक चुका होता है।

इंटरवल के पहला वाला हिस्सा उबाऊ है। प्रसंगों को बहुत लंबा रखा गया है। खासतौर पर ट्रेन में शाहरुख-दीपिका और गुंडों के दृश्यों की लंबाई बहुत ज्यादा है। कई दृश्य ऐसे हैं जिनका कहानी से कोई वास्ता ही नहीं है। मसलन जंगल में शाहरुख और एक बौने पर फिल्माया गया दृश्य।

दीपिका के रात में सपने देखने वाला दृश्य, शाहरुख-दीपिका का गाने गाकर बातें करना, दीपिका को गोद में उठाकर शाहरुख का मंदिर की सीढ़ियां चढ़ना जैसे कुछ उम्दा दृश्य भी हैं, लेकिन इनकी गिनती कम हैं। खास बात यह है कि कॉमेडी के नाम अश्लीलता और फूहड़ता से दूरी बना कर रखी गई है।

एक औसत स्क्रिप्ट और औसत निर्देशन से उठकर शाहरुख खान ने अपने कंधों पर फिल्म खींचने की भरपूर कोशिश की है, लेकिन उनके लिए भी यह भार कुछ ज्यादा ही है। अपनी चिर-परिचित स्टाइल में उन्होंने अभिनय किया है और क्लाइमेक्स में उनका अभिनय बेहतरीन है। कहा जा सकता है वे एकमात्र कारण हैं जिनकी वजह से फिल्म में थोड़ी रूचि बनी रहती है।

कॉकटेल, ये जवानी है दीवानी जैसी फिल्मों आधुनिक लड़की के किरदार निभाने के बाद दीपिका ने देसी गर्ल का रोल निभाया है। उच्चारण और अभिनय के लिए उन्होंने काफी मेहनत की है और परिणाम सुखद रहा है। कॉमिक सींस में उनकी टाइमिंग भी अच्छी रही है। सत्यराज और निकितिन धीर के लिए करने को ज्यादा कुछ नहीं था। फिल्म का म्युजिक हिट तो नही है, लेकिन तितली, वन टू थ्री फोर सुनने और देखने में अच्छे लगते हैं।

रोहित शेट्टी, शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण के नाम से जिस कमर्शियल और एंटरटेनमेंट से भरपूर फिल्म की अपेक्षाएं पैदा होती हैं उस पर ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ खरी नहीं उतरती। यह एक्सप्रेस की तरह नहीं बल्कि लोकल गाड़ी की तरह चलती है।

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बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स, रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट
निर्माता : गौरी खान, करीम मोरानी
निर्देशक : रोहित शेट्टी
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, सत्यराज, निकतिन धीर, प्रियमणि
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * सर्टिफिकेट नंबर : सीसी/डीआईएल/2/152/2013 (दि.29/7/2013)
अवधि : 2 घंटे 22 मिनट 49 सेकंड
रेटिंग : 2/5