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Written By WD

'चश्मेबद्दूर' से पहचान बनाना चाहती हूं : तापसी पन्नू

फिल्म चश्मेबद्दूर
फिल्म 'चश्मेबद्दूर' से तापसी पन्नू बॉलीवुड में एंट्री करने जा रही है। 'चश्मेबद्दूर' 1981 में आई 'चश्मेबद्दूर' की रिमेक है। फिल्म का निर्देशन डेविड धवन कर रहे हैं। तापसी इस फिल्म से बॉलीवुड में एंट्री कर रही हैं। तापसी दक्षिण भारत की कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं। पेश है तापसी पन्नू से मुलाकात

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अभी तक के फिल्मी सफर के बारे में क्या कहेंगी?
यदि आप चार साल पहले मुझसे यह सवाल करते तो मैं साफ-साफ कह देती कि मुझे अभिनय नहीं करना है, क्योंकि मैं जैसी थी उसी तरह से लोगों के साथ पेश आती थी। वैसे मैं तीन साल की उम्र से ही डांस सीखती रही हूं। मैंने जयपुर घराने की कनिका घोष से आठ साल तक कत्थक डांस ‍सीखा है, इसलिए मुझे कैमरे का कभी डर नहीं रहा। मैंने पहले ही बताया कि मुझे मॉडलिंग के ऑफर आए थे। मुझे रैंप पर जाना पसंद नहीं था, क्योंकि हम दूसरों के बनाए हुए कपड़ों को पहनकर उनके लिए रैंप पर जाते हैं। मॉडलिंग मुझे बोर लगने लगी। मैं अपने नाम को आगे लाना चाहती थी।

दूसरी बात यह है कि मैंने कभी भी अपने आपको मॉडल के रूप में नहीं देखा, इसलिए मैंने सिर्फ प्रिंट के लिए ही विज्ञापन किए हैं तो मैं कुछ अलग करने की सोच रही थी, तभी मुझे दक्षिण की फिल्मों का ऑफर मिल गया। जब मेरी पहली फिल्म हिट हो गई तो सारे समीकरण बदल गए। अब तक तमिल, तेलुगु व मलयालम की मेरी दस फिल्में रिलीज हो चुकी हैं। अब मुझे दर्शक पहली बार हिन्दी फिल्म 'चश्मेबद्दूर' में देख सकेंगे।

वैसे इस फिल्म से पहले मुझे 'बुड्‍ढा होगा तेरा बाप' में भी अभिनय करने का मौका मिला था, लेकिन उन दिनों में अपनी ‍तमिल व तेलुगु फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त थी और मुझे फिल्मों के ऑफर ठुकराने पड़े। फिल्म 'बुड्ढा होगा तेरा बाप' के निर्देशक पुरी जगन्नाथ के दिमाग में मैं थी, इसलिए जब फिल्म 'चश्मेबद्दूर' का निर्माण करने वाली कंपनी वायकॉम ने उनसे अभिनेत्री का नाम सुझाने के लिए कहा तो उन्होंने मेरा नाम सुझाया। जब मेरे पास 'चश्मेबद्दूर' का ऑफर आया तो बेहतरीन पटकथा व पात्र को देखते हुए मैंने यह रोल स्वीकार कर लिया।

व्यस्त रहने के बाद भी 'चश्मेबद्दूर को स्वीकार करने के पीछे सोच?
अपनी भाषा तो अपनी ही होती है और जब अपनी ही भाषा में काम करने का मौका मिल रहा हो तो उसे ठुकराना आसान नहीं होता, पर इस किरदार को निभाने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की है। फिल्म की कहानी मेरे ही इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में तीन लड़के हैं और तीनों मेरे ही आगे-पीछे घूम रहे हैं, इसलिए मैंने फिल्म को स्वीकार किया।

'चश्मेबद्दूर' रिमेक है, रिमेक से बॉलीवुड में एंट्री?
यही तो अच्छी बात रही। मुझे रीमेक फिल्म में काम करने से कोई ऐतराज भी नहीं है। 'चश्मेबद्दूर' उस वक्त की सफलतम फिल्म रही है तो रिमेक फिल्म उस कॉन्सेप्ट पर बनी है जो कि पहले से ही दर्शकों द्वारा पसंद किया जा चुका है, लेकिन निर्देशक डेविड धवन ने वर्तमान पीढ़ी के दर्शकों का ख्याल करते हुए इस फिल्म में कुछ बदलाव किए हैं। कुछ नए सीन जोड़े हैं तो वहीं इस बार एक नई प्रेम कहानी जोड़ी गई है और इस प्रेम कहानी में ऋषि कपूर नजर आएंगे।


किरदार के बारे में बताएं?
मैंने इसमें सीमा का किरदार निभाया है, जो कि मॉर्डन लड़की है। वह अपना रास्ता ढूंढना जानती है। रोने वाली लड़की नहीं है, बल्कि रूलाने वाली है जबकि पुरानी 'चश्मेबद्दूर' फिल्म में नेहा हमेशा रोती रहती थी, पर समय के बाद समाज में जो बदलाव आया है, वह आपको इस फिल्म में भी नजर आएगा। सीमा आज की लड़कियों जैसी है और इसी खास बात ने मुझे इस फिल्म से जुड़ने के लिए बहुत प्रेरित किया।

पुराने किरदार और नए किरदार में अंतर?
बहुत अंतर है। तीस साल पहले प्रदर्शित फिल्म में दीप्ति नवल साड़ी पहने हुए चमको पावडर बेचते हुए नजर आई थीं। यदि आज मेरा पात्र इसी तरह से नजर आता तो किसी को पसंद नहीं आता क्योंकि आज युवा पीढ़ी की लड़कियां साड़ी बहुत कम पहनती हैं। दूसरी बात इस बार फिल्म की पृष्ठभूमि दिल्ली नहीं बल्कि गोआ है।

पुरानी 'चश्मेबद्दूर' देखी?
इस फिल्म का ऑफर मिलने के बाद मैंने पुरानी 'चश्मेबद्दूर' देखी थी।

सीमा और तापसी समानताएं?
मैंने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री हासिल की है। इंजीनियरिंग कॉलेज में लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या न के बराबर होती है तो इं‍जीनियरिंग कॉलेज में तमाम लड़के उसी तरह मुझे पटाने की कोशिश किया करते थे जिस तरह से फिल्म 'चश्मेबद्दूर' में सीमा को तीन लड़के कर रहे हैं। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मुझे अक्सर अपने इंजीनियरिंग कॉलेज के दिन याद आ रहे थे।

डेविड धवन फिल्म की स्क्रिप्ट कलाकारों को नहीं देते हैं, कोई परेशानी आई?
डेविड धवन एक बेहतरीन एडिटर हैं, उसके बाद वे निर्देशक बने, इसलिए वे पहले से स्क्रिप्ट नहीं देते हैं। उन्हें पता होता है कि कौनसा सीन किस तरह से कब फिल्म में आएगा। शूटिंग के दौरान वे जिस तरह से सेट पर कलाकार से काम करवाते हैं, वह अपने आपमें बहुत अनूठा है। उनके अंदर एनर्जी इतनी ज्यादा है कि युवा निर्देशक भी मात खा जाए। देखा जाए तो वे ही हमारी फिल्म के स्टार हैं।

वे हमें सीन बताते थे कि उन्हें क्या चाहिए। उसके बाद हमें पूरी स्वतंत्रता होती थी कि हम किस तरह से काम करें और वे उस वक्त कैमरा एंगल पर ध्यान देते थे, लेकिन एक बार टेक कहने के बाद तो उनका सारा ध्यान हमारी परफार्मेंस पर होता था। डेविडजी हमेशा फन चाहते थे, ऐसा करते समय वे कई बार उत्साह के साथ कैमरे के सामने आ जाते थे।

सिद्धार्थ, द्विवेंदु शर्मा, और अली जाफर तीनों में से किसे नंबर वन कहेंग
तीनों बेहतरीन कलाकार हैं। तीनों में तुलना करना मुश्किल है। मैं दक्षिण भारतीय फिल्मों में काफी काम कर चुकी हूं और सिद्धार्थ भी दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम कर रहे हैं। मैं उन्हें अच्‍छी तरह से जानती भी हूं, इसलिए मुझे उनका पक्ष लेना चाहिए, लेकिन द्विवेंदु शर्मा दिल्ली से हूं और भी दिल्ली की हूं तो मुझे उनका पक्ष लेना चाहिए।

अली जाफर भी काफी अनुभवी कलाकार हैं, द्विवेंदु शर्मा पुणे फिल्म संस्थान के प्रशिक्षित कलाकार हैं। कुल मिलाकर यदि मैं कहूं तो इन तीनों कलाकारों की तुलना नहीं की जा सकती है। इन तीनों मुकाबले मैं अपने आपको सबसे ज्यादा कमजोर मानती हूं।

दक्षिण भारत फिल्में करने में भाषा की समस्या?
भाषा की समस्या बहु‍त आई, पर धीरे-धीरे मैंने तेलुगु भाषा सीखी। अपनी तीसरी फिल्म की डबिंग मैंने खुद ही की।

बॉलीवुड और टॉलीवुड में फर्क महसूस किया?
साउथ में जो अनुशासन है, वह यहां पर नहीं है।