उल्लेखनीय है कि पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भी पुत्रदा एकादशी कहते हैं। पौष माह की पुत्रदा एकादशी उत्तर भारतीय प्रदेशों में ज्यादा महत्वपूर्ण जबकि श्रावण माह की पुत्रदा एकादशी दूसरे प्रदेशों में ज्यादा महत्वपूर्ण है।
पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करना उत्तम माना जाता है। संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की भी पूजा की जाती है। यदि पूर्णमनोयोग से नि:संतान दंपति इस व्रत को करें तो उन्हें संतान सुख अवश्य मिलता है। संतान की प्राप्ति तथा उसके दीघार्यु जीवन के लिए पुत्रदा एकादशी का खास महत्व होता है। यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है निर्जला और फलाहारी या जलीय व्रत। यदि आप स्वस्थ और उपवास करने में सक्षम हैं तो निर्जला व्रत रखें अन्यथा फलाहारी व्रत रखकर विधिवत पूजा के बाद समय पर इसका पारण करें।
पूजा का शुभ मुहूर्त :
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 15 अगस्त 2024 को 10:26 बजे से।
एकादशी तिथि समाप्त- 16 अगस्त 2024 को 09:39 बजे तक।
ब्रह्म मुहूर्त- प्रात: 04:24 से 05:08 तक।
प्रातः सन्ध्या- प्रात: 04:46 ए एम से 05:51 तक।
अमृत काल- प्रात: 06:22 ए एम से 07:57 तक।
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:59 ए एम से 12:51 तक।
विजय मुहूर्त- दोपहर 02:36 पी एम से 03:29 तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:59 पी एम से 07:21 तक।
सायाह्न सन्ध्या- शाम 06:59 पी एम से 08:04 तक।
पारण का समय : 17 अगस्त 2024 को पारण (व्रत तोड़ने का) समय- प्रात: 05:51 से 08:05 तक।
पुत्रदा एकादशी कथा-Putrada Ekadashi Katha 2024
इस एकादशी की कथा के अनुसार भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुती होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी।
राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था। वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा। जिस घर में पुत्र न हो, उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है, इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात् उसके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।
एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया, परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है। इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं।
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वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों? राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे।
उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया। राजा को देखकर मुनियों ने कहा- हे राजन्! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो।
राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं और किसलिए यहां आए हैं? कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन्! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज, मेरे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए।
मुनि बोले- हे राजन्! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया।
कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं पुत्र की प्राप्ति के लिए सभी को पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए।