• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. व्रत-त्योहार
  4. »
  5. विजयादशमी
  6. रावण रचित शिव ताण्डव स्तोत्र
Written By WD

रावण रचित शिव ताण्डव स्तोत्र

रावण रचित शिव ताण्डव स्तोत्र
WD

जटाटवीगलज्जप्रवाहपावितस्थल
गलेऽवलम्ब्य लम्बिताभुजंगतुंगमालिकाम्‌
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वय
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललापट्टपावक
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

धरा धरेंद्र नंदिनी विलाबंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटक्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटा भुजं गपिंगस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुर
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालयनिबद्धजाटजूटक
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌
सुधा मयुख लेखयविराजमानशेखर
महकपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

कराल भापट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडलनिरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुर
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्ल नील पंकप्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदमखच्छिद
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अगर्वसर्वमंगलकलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌
स्मरांतकपुरातकं भावंतकं मखांतक
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रभ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाहव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवशिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंमौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोसुहृद्विपक्षपक्षयोः
तृणारविंदचक्षुषोप्रजामहीमहेन्द्रयो
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरवसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिवहन्‌
विमुक्तलोललोचनललामभाललग्नक
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखभवाम्यहम्‌॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नमनोमुदं विनोदिनींमहनिश
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

प्रचण्ड वाडवानप्रभाशुभप्रचारण
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वालोचनो विवाहकालिकध्वनि
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तस्तव
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथगति
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥

पूजाऽवसानसमयदशवक्रत्रगीत
शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे
तस्य स्थिरारथगजेंद्रतुरंगयुक्ता
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

॥ इति शिव तांडव स्तोत्रसंपूर्णम्‌॥