- डॉ.ज्योति संघवी, एमडी (शिशु रोग) पुणे असि. प्रोफेसर, श्री अरविन्दो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, इंदौर
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हमारे प्राचीन ग्रंथों, वेदों, पुराणों में दाँतों के संबंध में काफी कुछ लिखा गया है। आदि देवता श्री गणेश भगवान के प्रसिद्ध अर्थवशीर्ष के मंत्रों में अनेक नामों के साथ 'एक दंत' का भी उल्लेख है। दाँतों से जुड़े मुहावरों की संख्या भी कम नहीं है। दाँत पीसना, दाँतों तले उँगली दबाना, सहित कई मुहावरे प्रचलित हैं।
दाँत हमारे शरीर का एकमात्र अवयव है जो जन्म के बाद अन्य बाहरी अंगों की तरह तुरंत दिखाई नहीं देता है। प्रकृति ने इसके दो सेट हमें दिए हैं। पहले सेट बीस दाँतों का होता है, जिसे हम दूध के दाँत कहते हैं। दूसरे सेट में पक्के दाँत होते हैं जिनकी संख्या बत्तीसहोती है। दूध के दाँत छठे, सातवें या आठवें माह में निकलना शुरू होते हैं और दो-ढाई साल तक अपने-अपने स्थान पर जमने लगते हैं। दाँत निकलने के आठ-पंद्रह दिन या एक महीना पहले ही उसके लक्षण दिखने लगते हैं। बच्चा कुछ अधिक बेचैन और चिड़चिड़ा हो जाता है। हल्का बुखार आ सकता है। वह अपनी नन्ही-नन्ही उँगलियाँ चबाने की कोशिश करता है। हर चीज उठाकर मुँह में लेता है, जिसकी वजह से गंदगी पेट में जाती है। दाँत आने के समय दस्त लगने का कारण है।
नन्हे से जबड़े के भीतर से नन्हा-सा दाँत बाहर आता जरूर है, पर जबड़े के कड़े आवरण को तोड़ कर बाहर निकलना कोई आसान काम नहीं है। ऐसे समय मसूड़ों में सरसराहट होती है। मसूड़े हल्के-हल्के दबाने से इसमें आराम मिलता है। उम्र के छठे या सातवें साल में पक्के दाँत निकलना शुरू होते हैं। जिनकी संख्या बत्तीस होती है। यद्यपि पक्के दाँत दूध के दाँतों के स्थान पर निकलते हैं, तथापि दूध के सभी दाँत एक साथ नहीं गिरते हैं। इस कारण दस से पंद्रह वर्ष की उम्र तक कुछ दूध के और दूध पक्के दाँत मुँह में एक साथ मिल-जुलकरअपने काम को अंजाम देते हैं। सभी दाँत एक समान नहीं होते हैं।
उन्हें सौंपे गए काम के अनुसार उनका रूप और उनकी बनावट अलग-अलग होती है। दूध के दाँतों का बहुत महत्व है। ये दाँत बच्चे को चबाने और बोलने में सहायक होते हैं। भविष्य में पक्के दाँतों के लिएजगह भी यही दाँत बनाते हैं। इसलिए इनकी देखरेख करना बहुत जरूरी है। आगे चलकर यही बत्तीसी भी नींव बनाते हैं।
भ्रांतियाँ * दाँत आने के वक्त स्तनपान नहीं कराना चाहिए। * दाँत आगे के समय हल्का बुखार आना, दस्त लगना एक असामान्य घटना है। * दाँत आने के वक्त मसूड़ों पर दर्द निवारक दवा (जैल) लगाना चाहिए। * दाँ आसानी से आ जाएँ, उसके लिए सायरप या इंजेक्शन देना चाहिए। * दूध के दाँत अगर सड़ने लग जाएँ तो इलाज नहीं करवाना चाहिए क्योंकि वह तो गिर जाएँगे।
दाँतों की सही देखभाल * शिशु को दूध पिलाने के बाद मुलायम कपड़े से मसूड़ों को साफ करना चाहिए। * रात को बॉटल से दूध नहीं पिलाना चाहिए। * पेसीफायर (बिटनी) का उपयोग नहीं करना चाहिए। * दूध के दाँत में अगर सड़न लगने लगे तो तुरंत उपचार करवाना चाहिए। * सही तरीके से ब्रश करने की आदत डालें। * दूध के दाँत यदि जल्दी गिरने लगे या बहुत देरी से आएँ तो, डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। यह असामान्य है। * दाँत निकलते समय तेज बुखार हो या ज्यादा दस्त लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
दाँत कुदरत की अनमोल देन है। इसकी हिफाजत जन्म के समय से शुरू कर देना चाहिए। सुंदर दाँत माला में गुँथे मोतियों की तरह आकर्षक दिखाई देते हैं और आपके बच्चों के व्यक्तित्व को चार चाँद लगा देते हैं।