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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025 (18:46 IST)

Dhanteras 2025: धनतेरस की कथा, पूजा सामग्री, पूजन विधि, धनवंतरि और यमराज का मंत्र

Dhanteras 2025
Dhanteras 2025: कार्तिक माह के कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पावन पर्व मनाया जाता है। इस बार धन तेरस का यह त्योहार 18 अक्टूबर 2025 शनिवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन माता लक्ष्मी के अलावा भगवान धनवंतरि और यमदेव की विशेष रूप से पूजा करते हैं। आओ जानते हैं इस उत्सव की पूजा के शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री और विधि।
 
18 अक्टूबर 2025 धन तेरस के शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ- 18 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:18 बजे से।
त्रयोदशी तिथि समाप्त- 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 01:51 बजे तक।
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त
शाम 07:15 बजे से रात्रि 08:19 बजे तक।
प्रदोष काल: शाम 05:48 बजे से रात्रि 08:19 बजे तक।
यम दीपम समय: प्रदोष काल में।
धनतेरस खरीदारी का शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त: दिन में 11:43 से दोपहर 12:29 तक।
लाभ का चौघड़िया: अपराह्न 01:32 से 02:57 तक।
अमृत का चौघड़िया: अपराह्न 02:57 से 04:23 तक।
लाभ का चौघड़िया: शाम 05:48 से 07:23 तक।
धनतेरस पर शुभ योग
ब्रह्म- Oct 18 01:48 AM – Oct 19 01:47 AM
इन्द्र- Oct 19 01:47 AM – Oct 20 02:04 AM

 
पूजा के लिए धनवंतिर मंत्र:  ॐ धन्वंतराये नमः॥
पारंपरिक पौराणिक मंत्र इस प्रकार है- 
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
अर्थात्  परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्वभयनाशक हैं, सर्वरोग का नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं, उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को नमन है।

यमराज का मंत्र 
1
'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम।

2
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।।
 
धनतेरस पूजा की सामग्री:-
1. देवताओं की स्थापना के लिए: 
*देवताओं की प्रतिमा/चित्र: भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी, कुबेर देव और गणेश जी की मूर्तियाँ या चित्र।
*चौकी/पटिया: पूजा के लिए लकड़ी की चौकी या पटिया।
*वस्त्र: चौकी पर बिछाने के लिए लाल या पीला स्वच्छ वस्त्र।
 
2. धनतेरस पूजा की आवश्यक वस्तुएँ:
*कलश: एक पानी से भरा कलश (तांबा या पीतल का हो तो उत्तम)।
*जल: गंगाजल या शुद्ध जल।
*रोली और चंदन: तिलक लगाने के लिए।
*अक्षत (चावल): साबुत चावल (टूटे हुए नहीं)।
*पुष्प और माला: ताजे फूल और फूलों की माला।
*कलावा (मौली): बांधने के लिए। *
*धूप और दीप: धूपबत्ती, अगरबत्ती और 13 मिट्टी के दीपक (गाय के घी या तेल से)।
*कपूर: आरती के लिए।
 
3. धनतेरस पूजा में भोग और प्रसाद के लिए:
*मिठाई: खील, बताशे (माँ लक्ष्मी को प्रिय), मेवे, और अन्य मिठाई।
*साबुत धनिया: यह धन वृद्धि का प्रतीक माना जाता है, इसे पूजा में अवश्य रखें।
*फल: मौसमी फल।
 
4. धनतेरस धन और समृद्धि के प्रतीक:
*नई धातु की वस्तु: इस दिन खरीदी गई कोई भी नई धातु की वस्तु (सोना, चांदी, पीतल का बर्तन, सिक्का आदि)।
*सिक्के: पूजा में रखने के लिए कुछ सिक्के (चांदी या सामान्य)।
*कौड़ी/कमल गट्टे: माँ लक्ष्मी को अर्पित करने के लिए।
*नई झाड़ू: इसे माँ लक्ष्मी का रूप मानकर पूजा में शामिल करें।
*दक्षिणा: पूजा के बाद पंडित या गरीबों को देने के लिए।
*अन्य सामान्य सामग्री: सुपारी, लौंग, इलायची, पान का पत्ता (यदि उपलब्ध हो)।
 
5. धनतेरस विशेष: यम दीपदान के लिए:
*एक बड़ा दीपक (यम का दीपक)
*सरसों का तेल या तिल का तेल।
*गेहूँ या धान का ढेर (दीपक को रखने के लिए)।
 
(ध्यान दें: पूजा सामग्री की उपलब्धता और स्थानीय परंपरा के अनुसार सूची में थोड़ा बदलाव हो सकता है।)
Dhanteras 2025
धनतेरस की पूजा विधि | Dhanteras puja vidhi:-
- धनतेरस के दिन में माता लक्ष्मी के साथ, गणेशजी, कुबेर देव और भगवान धन्वन्तरि की पूजा होती है, दोपहर में खरीदारी करते हैं और प्रदोषकाल में यमदेव की पूजा होती है।
- इस दिन प्रात: उठकर नित्यकर्म से निवृ‍त्त होकर पूजा की तैयारी करें। घर के ईशान कोण में ही पूजा करें। पूजा के समय हमारा मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए।
- पूजन के समय पंचदेव की स्थापना जरूर करें। सूर्यदेव, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु को पंचदेव कहा गया है। पूजा के समय सभी एकत्रित होकर पूजा करें। पूजा के दौरान किसी भी प्रकार शोर न करें।
- इस दिन धन्वंतरि देव की षोडशोपचार पूजा करना चाहिए। अर्थात 16 क्रियाओं से पूजा करें। पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।
- इसके बाद धन्वं‍तरि देव के सामने धूप, दीप जलाएं। फिर उनके के मस्तक पर हलदी कुंकू, चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं।
- पूजन में अनामिका अंगुली गंध अर्थात चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी आदिलगाना चाहिए। इसी तरह उपरोक्त षोडशोपचार की सभी सामग्री से पूजा करें। पूजा करते वक्त उनके मंत्र का जाप करें।
- पूजा करने के बाद प्रसाद चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
- अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है।
- मुख्‍य पूजा के बाद अब मुख्य द्वार या आंगन में प्रदोष काल में दीये जलाएं। एक दीया यम के नाम का भी जलाएं। रात्रि में घर के सभी कोने में भी दीए जलाएं।
- इस दिन शाम के बाद मुख्य द्वार पर 13 और घर के अंदर भी 13 दीप जलाने होते हैं।
- शाम को प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीपदान करें। यम के नाम का दीपक परिवार के सभी सदस्यों के घर आने और खाने-पीने के बाद सोते समय जलाया जाता है। इस दीप को जलाने के लिए पुराने दीपक का उपयोग किया जाता है जिसमें सरसों का तेल डाला जाता है। यह दीपक घर से बाहर दक्षिण की ओर मुख कर नाली या कूड़े के ढेर के पास रख दिया जाता है।
 
धनतेरस की कथा:-
भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई मानी जाती है। समुद्र मंथन एक पौराणिक घटना है जिसमें देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया था। इस मंथन के दौरान कई महत्वपूर्ण वस्तुएं और शक्तियां प्रकट हुईं, जिनमें से भगवान धन्वंतरि भी एक थे। जब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए, तो देवताओं ने उनसे अमृत प्राप्त कर अमरत्व की प्राप्ति की।