शुद्ध धर्म के पाँच गुण
धर्म गंगा के किनारे...
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सुरेश व सुनील ताम्रकर शुद्ध धर्म के पाँच गुण होते हैं...। भली प्रकार समझाया हुआ, स्वयं करके देखने योग्य, अशुफलदायी, आओ करके देखने योग्य, निर्वाण तक ले जाने वाला एवं हर समझदार व्यक्ति के साक्षात योग्य हैं। ऐसे शुद्ध धर्म को कैसे धारण किया जाए, इसका सक्रिय अभ्यास करने के लिए जिज्ञासु साधक पिछले दिनों भोपाल में करवा डेम के पास सुरम्य वातावरण में स्थित केंद्र पर एकत्र हो रहे थे। धर्म गंगा में शामिल होने के लिए समाज के हर वर्ग से लोग आए थे- बूढ़े-जवान, अनपढ़-शिक्षित, स्त्री-पुरुष, नौकरीपेशा-व्यापारी, मजदूर-किसान एवं कलाकार इत्यादि। बैतूल जिले से आए किसान अन्धुजी एवं फिल्मकार आशीष कोतवाल की पृष्ठभूमि में जमीन-आसमान का फर्क था, शिविर काल के दौरान तो पूर्ण मौन का पालन हो रहा था... परंतु शिविर समाप्ति पर यह पाकर मन में संतोष का भाव जागा कि दोनों ने ही शिविर में अत्याधिक मन लगाकर काम किया। नहीं तो शिविर के आरंभ में आशीष को यह बहुत ही कठिन जान पड़ रहा था। उन्हें शक था कि सिगरेट की लत उन्हें यहाँ शायद टिकने न दे। धर्म का सुअख्यात होना किसान और कलाकार दोनों के लिए मददगार साबित हुआ। तभी तो गरीब-अनपढ़ भी इसे सरलता से समझ पाते हैं... कभी-कभी पुस्तकों का ज्ञान ही थोड़ी बहुत दीवारें खड़ी करता है। किसान अन्धुजी कहते हैं कि मैं एक पुराना साधक हूँ एवं इस विद्या से अत्याधिक लाभान्वित हुआ हूँ इसलिए बार-बार आता हूँ। हमारी खेत-किसानी में अत्यधिक उतार-चढ़ाव आते हैं। मन की समता डगमगाने लगती है, मगर इस साधना से मन में समता का वास बढ़ा है। हमारे क्षेत्र में पहले फसल चोरों का बड़ा आतंक था, लेकिन अब देखता हूँ कि जाने क्यों वे अब हमारे इधर नहीं झाँकते। ठीक ही है मन की निर्मलता अपना असर चारों और बिखराती ही है। फिल्मकार कोतवाल यहाँ आए थे अपनी किसी फिल्म की पठकथा के अनुभव के लिए ...कहते हैं- सपने में भी नहीं सोचा था ऐसी अनमोल, साफ-सुथरी एवं सर्वजन के अपनाने योग्य विद्या यहाँ सीखने को मिलेगी। 10 दिनों तक सिगरेट से दूर रहकर जी पाना उन्हें आश्चर्यचकित कर रहा था। अगले किसी शिविर में फिर शामिल होने के इरादे से वे भी अपने घर आत्मसंतोष के साथ लौट रहे थे...।