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Written By WD

वायु प्रदूषण से मरने वालों का प्रश्न

वायु प्रदूषण से मरने वालों का प्रश्न - Air Pollution
राजकुमार कुम्भज
वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्‍या में वैश्विक स्तर पर एक-तिहाई लोगों की मौत घरेलू ऊर्जा से होने वाले प्रदूषण के कारण ही होती है, वहीं एशियाई देशों में घरेलू ऊर्जा से प्रदूषण ही मौत की सबसे बड़ी वजह बन गई है। जाहिर है कि विकासशील देशों में वायु प्रदूषण से मौत का खतरा अपेक्षाकृत अधिक है, क्योंकि विकासशील देशों में जनसंख्‍या का दबाव ज्यादा है और हवा की गुणवत्ता बेहद खराब पाई गई है।
 
जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ केमिस्ट्री के शोध प्रमुख रसायन शास्त्री जोस् लेलीवेल्ड की अगुआई में अध्ययनकर्ता टीम ने वैश्विक वायुमंडलीय रसायन विज्ञान मॉडल के साथ दुनियाभर के ‍तमाम देशों की जनसंख्या और स्वास्‍थ्य, सांख्यिकी के आंकड़ों का सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद उपरोक्त निष्कर्ष निकाला है।
 
इसी महत्वपूर्ण अध्ययन से ही हमें यह भी ज्ञात हुआ है कि एशियाई देशों में जहां घरेलू ईंधन की वजह से हवा में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है ‍जिसकी वजह से सांस संबंधित बीमारियां जैसे टीबी, अस्‍थमा और फेफड़ों के कैंसर भी बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका, यूरोप और यूरेशिया में कृषि कार्यों के लिए इस्तेमाल होने वाले यंत्रों तथा सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों की वजह से हवा जहरीली होकर बीमारियों का सबब बन रही है। 
 
इस अध्ययन से, कम से कम इस तथ्य की पुष्टि तो हो ही रही है कि विकसित देश भी विकासशील देशों के समकक्ष वायु प्रदूषण के लिए बड़े स्तर पर जिम्मेदार हैं। अन्यथा अभी तक होता यही आया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के मुद्दे पर ये देश अपना बचाव करते हुए बच निकलते हैं। इसके लिए सुझाया गया भारतीय समाधान कई-कई मर्तबा दोहराया जा चुका है कि जो भी देश, जिस भी स्तर पर जिम्मेदार हैं, वह देश उसी स्तर पर वायु प्रदूषण से उबरने की मोर्चाबंदी तुरंत शुरू कर दे। 
 
भारत की बात करें तो स्थिति जरा भी भिन्न नहीं है। जो स्‍थिति वैश्विक स्तर पर विकसित और विकासशील देशों की है, वही स्थिति हमारे यहां शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की है। जिस तरह विकसित देशों में वाहनों और यंत्रों के कारण वायु प्रदूषण की स्थितियां बेकाबू होती जा रही हैं, ठीक वैसे ही भारतीय शहरों की हवा भी बेतहाशा दौड़ने वाहनों से जहरीली होती जा रही है। इसी तरह जैसे एशियाई देशों में ईंधन का धुआं, प्रदूषण का मुख्य कारण है, ठीक वैसे ही भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन का धुआं, हवा को जहरीली बना रहा है।
 
ऐसे में भारत की जिम्मेदारी बड़ी और ज्यादा गंभीर चुनौतीपूर्ण हो जाती है, क्योंकि हमें विकसित और विकासशील दोनों ही प्रकार के देशों में किए जा रहे उपायों को अपनाना पड़ेगा। प्रारंभिक तौर पर हमें हमारे गांवों की हवा को शुद्ध रखने के लिए इस बात का खासतौर से खयाल रखना होगा कि ईंधन के बतौर लकड़ी, कोयले का कम से कम इस्तेमाल हो और भारतीय सड़कों पर बेतहाशा दौड़ते वाहनों को कैसे सीमित व नियंत्रित किया जाए? जीवन के लिए वायु प्रदूषण 21वीं सदी का सबसे बड़ा संकट सिद्ध हो रहा है।
 
'नेचर' जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों के चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण को रोकने हेतु यदि अविलंब और कारगर उपाय नहीं किए गए तो वर्ष 2050 तक हर बरस तकरीबन 66 लाख लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में प्रदूषित हवा की वजह से हर बरस तकरीबन 33 लाख लोग मर जाते हैं। 
 
अगर वायु प्रदूषण के विरुद्ध कोई सक्षम कार्रवाई नहीं की गई तो वर्ष 2050 तक हर बरस मरने वालों की संख्‍या दोगुनी हो जाएगी। आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा नुकसान भारत का ही होने वाला है, लिहाजा भारत को अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझते हुए तत्काल ही कुछ सार्थक व ठोस उपाय करना होंगे। वायु प्रदूषण से मरने वालों की ये संख्‍या बड़ी भी है और भयावह भी।
 
माना कि वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण को मापना कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि वायु में घुले कणों की विषाक्तता उनके स्रोत पर ही अधिक निर्भर करती है जिसका पता लगा पाना बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण काम है। वैसे भी देखा जाए तो वायु गुणवत्ता की निगरानी, जन-जीवन से जुड़े हर क्षेत्र की कैसे की जा सकती है। शायद हर क्षेत्र की निगरानी कर पाना संभव है। 
 
संभवत: इसीलिए वायु प्रदूषण के संदर्भ में हर क्षेत्र की निगरानी नहीं की जाती है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी विषाक्तता दिन-प्रतिदिन परिवर्तित होती रहती है और उक्त परिवर्तन के लिए कोई एक नहीं बल्कि अनेकानेक कारण जिम्मेदार होते हैं। उन कारणों की जानकारी सीमित होने से भी समाधान के साधन भी सीमित हो जाते हैं, फिर भी अपने-अपने स्तर पर हम आंतरिक-प्रदूषण स्तर कम करके लाखों लोगों का जीवन बचाने में अपना संवेदनशील सहयोग तो कर ही सकते हैं।
 
जीवन जीने के लक्ष्य में भोजन और पानी से कहीं ज्यादा जरूरी तत्व हवा है जिसके बगैर एक पल भी जिंदा रह पाना असंभव है। बावजूद इसके कि, इस सच और तथ्य को सभी जानते हैं, फिर भी अपने-अपने भौतिक-सुखवाद की पूर्ति में मनुष्य ने ही प्रकृति का असंतुलित दोहन किया और हवा जैसे अनिवार्य और अदृश्य तत्व को जहरीला बना दिया। स्मरण रखा जा सकता है कि भारत के शहरों में, दिल्ली और कोलकाता, वायु प्रदूषण की दृष्टि से खतरनाक स्‍थि‍ति में पहुंच गए हैं।
 
वायु प्रदूषण का अध्ययन और अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्ष 2050 तक वायु प्रदूषण से मरने वालों की सबसे बड़ी संख्या दिल्ली और कोलकाता के लोगों की ही होगी। अन्यथा नहीं है कि फिलहाल भारत में हर बरस तकरीबन 6.50 लाख लोग वायु प्रदूषण से मरते हैं जिसमें आधे शहरी क्षेत्र के होते हैं और आधे ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं अर्थात भारत में वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों की सां‍ख्यिकी, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बराबर है अर्थात शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए किए जाने वाले तमाम उपाय भी बराबर ही होना चाहिए। अर्थात विकसित देशों और विकासशील देशों में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जो भी और जैसे भी समाधानों पर काम हो रहा है, हमें उन पर गंभीरता से ध्यान देते हुए उन्हें अपनाने की जरूरत को बेहतर समझना होगा तभी हम इस मूल्यवान मनुष्य जीवन को बचा पाने में सफल हो सकेंगे।
 
'नेचर' पत्रिका में प्रकाशि‍त इस ताजा सर्वेक्षण में यह भी खुलासा किया गया है कि वर्ष 2010 में केवल पॉवर जनरेटर से होने वाले वायु प्रदूषण से सिर्फ भारत में ही तकरीबन 90 हजार लोगों की जानें चली गई थीं। उक्त सर्वेक्षण से ही हमें ज्ञात होता है कि चीन, भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। 
 
भारत और चीन को वायु प्रदूषण की वजह से हुई मौतों और बीमारियों के कारण हर बरस तकरीबन 2,000 अरब डॉलर का नुकसान होता है। 7 अरब लोगों की वैश्विक आबादी पर, जलवायु परिवर्तन से प्रभा‍वित विकास और वैश्विक स्वास्थ्य में पिछली आधी सदी की उपलब्धियों को नुकसान पहुंचने का खतरा बढ़ता जा रहा है। 
 
बहुत संभव है कि देश ने गरीबी उन्मूलन और स्वास्थ्य क्षेत्र में पिछले 3-4 दशकों में जो उपलब्धियां हा‍सिल की हैं, उन सभी उपलब्धियों को जलवायु परिवर्तन नेस्तनाबूद कर दे। 
 
भारत सरकार की एक स्वी‍कारोक्ति में कहा गया है कि वायु प्रदूषण से पैदा हुई बीमारियों के कारण पिछले एक दशक में देश में 35 हजार लोगों की मौतें हो चुकी हैं। हालांकि हमारा पर्यावरण मंत्रालय अभी तक यही कहता आया है कि वायु प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों का कोई पक्का सबूत उपलब्‍ध नहीं है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पिछले कुछ समय से भारत में वायु प्रदूषण को लेकर चिंता व्यक्त करता आ रहा है। उसका मानना है कि वायु प्रदूषण के कारण वक्त से पहले 88 फीसदी मौतें उन देशों में होती हैं जिनकी आय का स्तर निम्न अथवा मध्य स्तर का है। उसने भारत और चीन को सर्वाधिक वायु प्रदूषित देशों के बतौर रेखांकित किया है।‍ लिहाजा आतंकित होने की बजाय प्रदूषण के विरुद्ध लड़ाई तेज करने की जरूरत है।