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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

भारत में क्रांति क्यों नहीं होती?

अन्ना हजारे आंदोलन
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वह क्या वजह है कि इस देश में पिछले 5 हजार वर्षों से क्रांति नहीं हो पाई है? दुनियाभर में क्रांतियां होती है, लेकिन भारत में क्रांति क्यों असफल हो जाती है? या क्रांति को असफल कर दिया जाता है

प्रकृति और सामाजिक तानेबाने को खत्म कर इस देश में शराब क्रांति, इंटरनेट क्रांति, मोबाइल क्रांति, फैशन क्रांति, बाजार क्रांति और सब तरह की क्रांतियां होती है। इन सभी क्रांतियों से क्या सचमुच ही देश का भला हुआ है?

यह कभी बहस नहीं होती कि बौद्ध क्रांति इस देश में असफल हुई या असफल कर दी गई। 1857 की क्रांति असफल हुई या कुछ लोगों ने असफल कर दी? ऐसी कई क्रांतियां हैं जिन्हें असफल कर दिया गया। हमें आजादी नहीं मिली हमें आजादी दी गई? क्या आप समझते हैं कि हमने क्रांति करके आजादी हासिल की? यह कुछ सवाल जिन पर चर्चा नहीं होती।

सवाल और संदर्भ भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन का है। क्यों नहीं वह एक क्रांति का रूप ले पाया और वह भी राजनीकि पार्टी की राह पर चल पड़ा। क्या सभी आंदोलनों का हश्र यही होता है?

भारत आजादी के बाद से चौराहे पर खड़ा है। उसे पता नहीं कि अब किधर जाना है। पिछले सैकड़ों वर्षों में ऐसे कई मौके आए जबकि उसने अपने आप को चौराहे पर खड़ा पाया। अब किधर जाएं?

भारत की जनता को धकेला गया उन-उन रास्तों पर जिन रास्तों को या तो विदेशियों ने बनाया था या जिनकों बाजार ने बनाया। आज भी भारत खुद के बनाए हुए नहीं, दूसरों के बनाए हुए रास्तों पर धकेले जाने के लिए तैयार खड़ा है। आखिर क्यों?

ऐसा नहीं है कि भारत के पास अपना खुद का कोई विचार नहीं है, कोई आइडियोलॉजी नहीं है? है, लेकिन उन सारे लोगों को जनता, राजनेता, धार्मिक नेता और व्यापारियों ने हाशिए पर धकेल रखा है, क्योंकि भारत पिछले हजार वर्षों से विदेशियों का भक्त बना हुआ है। यह आदत आजादी के 65 साल बाद भी जस की तस बनी हुई है। वही अंग्रेजी कानून, वही अंग्रेजी शिक्षा और वही अंग्रेजी मानसिकता।

भटके हुए लोग : आप क्या समझते हैं कि भारत का युवा बहुत बुद्धिमान है? सचमुच आप सही समझे। जरा फेसबुक को टटोलिए। ट्वीटर को देखिए और इससे पहले आप अपनी स्कूली शिक्षा, कॉलेज का माहौल और जॉब प्लेसमेंट की प्रक्रिया को भी समझे। यदि आप समझदार हैं तो समझ जाएंगे कि हम क्या पढ़ते, क्या लिखते और क्या समझते हैं। हमारी सोच का दायरा कितना है।

जरा पूछिए इन युवाओं से खुद के देश के इतिहास के बारे में, राजनीति के बारे में और खासकर उन लोगों के बारे में जो अविष्कारक थे, वैज्ञानिक थे और दार्शनिक थे। इतनी दूर क्यों जाते हैं आप, कितने लोगों को मालूम है कि आजादी के आंदोलन में शहीद हो गए लोगों की ‍कुल संख्‍या कितनी थी? राहुल गांधी जैसे नेताओं की परीक्षा लो...तो पता चलेगा कि वह कितने पढ़ाकू हैं या उन्हें अपने देश के बारे में कितनी जानकारी है।

आज का युवा जहां रूढ़ीवाद, परंपरागत, कर्मकांडी सोच और बाबाओं के चक्कर में फंसा हुआ है, वहीं वह पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर नशे और सेक्स में लिप्त हो चला है तो दूसरी और नक्सलवादी और सांप्रदायिकता गतिविधियों में वह भारत के उद्धार की बात सोचने लगा है...क्यूं.? चारों ओर देखने पर लगता है कि सभी गायक बनना चाहते हैं, डांसर बनना चाहते हैं। कौन है जो देश के उद्धार की बात सोचता है? अन्ना के पास जो लोग इकट्ठे हुए हैं वह इनमें से नहीं भी हो सकते हैं या वह सरकार और सरकारी तंत्र से त्रस्त लोग भी हो सकते हैं। ऐसा कहना गलत है कि सभी रिटायर्ड लोग इकठ्ठे हो गए थे।

क्यों असफल होते हैं आंदोलन : इस सवाल की जांच की जानी चाहिए और इसके उत्तर ढूंढे जाने चाहिए कि आखिर क्यों कोई आंदोलन असफल होकर एक नया रूप धर लेता है और वह भी उसी व्यवस्था का अंग बन जाता है जो पिछले 65 नहीं 250 वर्षों से चली आ रही है।

कांग्रेस एक आंदोलन था, लेकिन अब वह एक पार्टी है। देश की सबसे भ्रष्ट पार्टी। जेपी का आंदोलन भी आंदोलन ही था लेकिन उनके आदर्शों पर चलकर कौन सी पार्टी ने देश के सिस्टम को बदल दिया? सब का सब वही है। हम वहीं 1947 के चौराहे पर खड़े हैं।

देश कि जनता बहुत जल्द ही संघर्ष से घबराकर, ऊबकर संघर्ष का रास्ता छोड़कर नए विकल्प पर विचार करने लग जाती है। आंदोलन के विरोधी लोग देश में इस तरह का नकारात्मक प्रचार करते हैं कि जिससे आंदोलनकर्मियों का मनोबल टूटने लगे। पुरे देश में भ्रम फैलाकर आंदोलनकर्मियों की छवि को खराब करने के प्रयास इसलिए किए जाते हैं कि जनता उनसे जुड़ना छोड़कर अपने पूराने ढर्रे पर लौट जाएं। इस देश में राजनीति, कूटनीति के अलावा कुछ नहीं होता इसलिए हमारे देश के राजनीतिक खुद को बचाए रखने में माहिर और चालक बन गए हैं। आप देखिए दिग्विजय सिंह का चेहरा। यही देश की राजनीति का असली चेहरा है, जो राजनीतिज्ञ नहीं बोलते हैं वहीं भी दिग्गी ही हैं।

विचारों में वर्तुल : बहुत जल्द ही परिवर्तित होने वाली इस देश की जनता की मानसिकता आत्मघातक कही जा सकती है। जब राजा चले गए और अंग्रेज आए तो लोगों ने राहत की सांस ली, फिर कुछ वर्षों बाद लोगों ने कहा इससे तो अच्छा राजाओं वाला काल था। जब अंग्रेज चले गए तो लोगों ने खुशियां मनाई।

30 साल के भीतर ही यह खुशियां काफूर हो गई। फिर लोगों ने कहा इससे तो अच्छा अंग्रेजों का काल था। लोग इस आशा से अन्ना के साथ जुड़े थे कि अब वक्त बदलेगा। लेकिन जनता को क्या मालूम कि जनता में से ही तो अन्ना निकलते हैं। जब जनता की सोच में वर्तुल है तो निश्चित ही एक और जनआंदोलन पार्टी बनकर ही रह जाएगा। अब यह खुद से ही सवाल करना चाहिए कि भटके हुए लोग देश को क्या दिशा दे पाएंगे?

क्यों नहीं हो सकती इस देश में क्रांति...ओशो के विचार पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें...
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