नोटबंदी की 'डैडलाइन', एकजुट होने लगा है विपक्ष
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर को जब नोटबंदी की घोषणा के साथ ही देशवासियों से 50 दिन का समय भी मांगा था कि इस अवधि के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा। इस बीच, कभी टूटते कभी एकजुट होते विपक्ष ने नोटबंदी के खिलाफ विरोध का बिगुल तो फूंका लेकिन उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली। हालांकि जनता लंबी-लंबी लाइनों में लगकर भी सरकार की नोटबंदी के साथ खड़ी नजर आई। इसलिए भी विपक्ष के विरोध की हवा निकल गई।
लेकिन, 30 दिसंबर को मोदी द्वारा दी गई 50 दिन की अवधि समाप्त हो रही है, साथ ही बैंकों के हालात में भी कोई खास अंतर नहीं आया है। निकासी की साप्ताहिक सीमा 24 हजार से ज्यादा नहीं बढ़ाई गई है। एटीएम से भी व्यक्ति एक दिन में 2500 से ज्यादा नहीं निकाल पा रहा है। इतना जरूर हुआ है कि अब लाइनें पहले जैसी नहीं रहीं। एटीएम पर नकदी लोगों को आसानी से मिल रही है, लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में खासकर ग्रामीण इलाकों में स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आया है। कहीं-कहीं से तो अब भी बैंकों की लाइनों में मौत की खबरें आ रही हैं। कहीं ग्रामीण एटीएम में ही रात बिताकर नकदी के लिए इंतजार कर रहे हैं।
नोटबंदी के खिलाफ विपक्ष एक बार फिर लामबंद हो रहा है। 50 दिन बाद इसके और आक्रामक होने के आसार हैं। 27 दिसंबर को भी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, द्रमुक, झारखंड मुक्ति मोर्चा तथा कुछ अन्य दलों के नेताओं ने नोटबंदी के मुद्दे पर बैठक की, जिसके बाद तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि देश के गरीब आदमी से 50 दिन मांगे थे, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। मोदी ने अपना वादा निभाने में नाकाम रहे हैं। ममता ने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देंगे?
राहुल गांधी भी नोटबंदी के बाद नरेन्द्र मोदी पर लगातार हमला बोल रहे हैं। इस बैठक के बाद राहुल ने कहा कि नोटबंदी का निर्णय काले धन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए किया था, लेकिन वह इस लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रही है। नोटबंदी के चलते नोट बदलने का एक और भ्रष्टाचार शुरू हो गया। 30 दिसंबर के बाद कांग्रेस नोटबंदी और उसके बाद उपजी अव्यवस्थाओं के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन भी करने जा रही है।
उधर बिहार में लालू यादव भी नोटबंदी के खिलाफ खम ठोंक रहे हैं। लालू का कहना है कि नोटबंदी के खिलाफ लड़ाई को वे अंजाम तक पहुंचाएंगे। लालू को इस बात का मलाल है कि इस मुद्दे पर पूरा विपक्ष एकजुट नहीं है। इस पर उनका कहना है कि अहंकार के कारण विपक्ष एकजुट नहीं हो पा रहा। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी, मायावती की बसपा, शरद पवार की एनसीपी आदि कई ऐसी पार्टियां हैं जो नोटबंदी का विरोध तो कर रही हैं, लेकिन वे कांग्रेस के साथ खड़ी नहीं होना चाहतीं। मायावती और मुलायम संभव है कि यूपी चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के साथ खड़ा नहीं दिखना चाहते, लेकिन एनसीपी का विपक्षी एकजुटता से अलग रहना लोगों को रास नहीं आ रहा है। हो सकता है कि 30 दिसंबर के बाद विपक्ष के मोर्चे में बाकी दल भी जुड़ जाए।
यह तय है कि 30 दिसंबर के बाद यदि नरेन्द्र मोदी सरकार ने यदि जनता के हित में कोई घोषणाएं नहीं की तो विपक्ष और आक्रामक होगा और सरकार की मुश्किलों को और बढ़ाएगा। कोई बड़ी बात नहीं कि आगामी बजट सत्र में भी इसका असर दिखाई दे।